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गाजा की ओर से इजरायली शहरों पर दागे जाते सैकड़ों रॉकेट के साथ इजरायल-फिलिस्तीन के बीच हाल के वर्षों का सबसे बुरा संघर्ष शुरू हो गया है. इजरायल ने भी ठोस जवाब देते हुए, जैसा वह हर बार देता है, गाजा के ऊपर सैकड़ों एयर मिसाइल बरसाई हैं. दोनों ओर हताहत हुए नागरिकों की संख्या बढ़ती जा रही है. गाजा में मरे फिलिस्तीनियों की संख्या 200 के ऊपर है, वही सैकड़ों घायल हुए हैं. इजरायल में कम लेकिन मौतें हुई हैं.
टकराव की शुरुआत जेरुसलम में हुई जहां तनाव उस समय बढ़ गया जब अल-अक्सा मस्जिद पर पुलिस रेड और भगदड़ में फिलिस्तीनी घायल हो गये. मक्का और मदीना के बाद अल-अक्सा मस्जिद विश्व में मुस्लिमों के लिए तीसरी सबसे पवित्र जगह मानी जाती है. लेकिन यहूदी लोग इस जगह को 'टेंपल माउंट' कहते हैं जहां पर एक यहूदी टेंपल हुआ करता था, जिसे पहली शताब्दी में तोड़ दिया गया. तब यह क्षेत्र रोमन साम्राज्य के अंतर्गत था.
ओरिजिनल यहूदी टेंपल के पश्चिमी दीवार पर ऐतिहासिक दावे ने उसे यहूदियों का पवित्रतम स्थल बना दिया है .फिलिस्तीनी मस्जिद में रमजान की दुआ मांगने इकट्ठा हुए थे. सड़कों पर संघर्ष तब शुरू हो गया जब इजरायली कट्टर दक्षिणपंथी धार्मिक समूह और फिलिस्तीनी लोगों का आपस में टकराव हुआ. संघर्ष को और ज्यादा बढ़ाने में सबसे बड़ी वजह रही गाजा की तरफ से जेरुसलम की ओर रॉकेट दागा जाना. ऐसा हमला कई सालों से नहीं हुआ था.
इजरायल पूरे जेरुसलम पर राजधानी शहर होने का दावा ठोकता है जबकि फिलिस्तीनी नागरिक पूर्वी जेरुसलम को फिलिस्तीन की राजधानी मानते हैं. 1967 युद्ध में इजरायल द्वारा पूर्वी जेरुसलम और वेस्ट बैंक पर कब्जे के पहले पूर्वी जेरुसलम जॉर्डन के नियंत्रण में था .जेरुसलम पर अंतिम संप्रभुता को लेकर दोनों पक्षों के बीच सहमति बननी अभी बाकी है.
इजरायली पुलिस ने दक्षिणपंथी यहूदी समूह को अपने रैली का रास्ता बदलने का निर्देश दिया ,जिसके बाद उन्होंने उसे कैंसिल कर दिया. लेकिन पुलिस के इस निर्देश ने उन्हें मस्जिद के अंदर और फिलिस्तीनी क्षेत्र में घुसने से नहीं रोका. वहां कट्टर यहूदी सेटलर्स के द्वारा इस क्षेत्र पर कब्जे और फिलिस्तीनियों को बेदखल करने के मुद्दे पर नियमित अंतराल पर इजरायली- फिलिस्तीनी टकराव होता रहा है.
कई अरब 1967 के पहले पूर्वी जेरुसलम के क्षेत्र में आकर बस गए जब वें इजरायली गांवों से भागकर यहां आए थे. फिलिस्तीनी चरमपंथी समूह हराकत- उल- मुकवामा- अल- इस्लामिया( हमास) गाजा को नियंत्रित करता है. इस समूह को इजरायल आतंकवादी संगठन मानता है. इस समूह ने रॉकेट अटैक लॉन्च करने की धमकी दे रखी है अगर यहूदी सेटलर्स इस क्षेत्र से वापस नहीं जाते हैं.
कुछ लोग संघर्ष के बढ़ने के लिए केयरटेकर पीएम बेंजामिन नेतन्याहू को दोष दे रहे हैं .वे खुद भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं. पीएम उन कट्टर दक्षिणपंथी यहूदी सेटलर्स ग्रुप के साथ भी खड़े हैं जिन्होंने फिलिस्तीनियों को टकराव के लिए उकसाया था. पिछले 2 सालों में चौथे चुनाव के बाद भी इजरायल में स्थाई सरकार नहीं बनी है.
नेतन्याहू की पार्टी लिकुड ने सबसे ज्यादा सीटें जीती हैं लेकिन बहुमत के आंकड़े को पार नहीं कर पायी. इजरायली राष्ट्रपति रेवेन रिवलिन ने सबसे पहले नेतनयाहू को ही सरकार बनाने का न्योता दिया था. 30 दिनों के अंदर बहुमत के आवश्यक संख्या को जोड़ने के लिए गठबंधन करने में नेतनयाहू असफल रहे.
एक स्वतंत्र और संप्रभु फिलिस्तीन के लिए फिलिस्तीनी लंबा संघर्ष कर रहे हैं ,जिसका वादा यूनाइटेड नेशंस रेजोल्यूशन 1948 में था. इसी रेजोल्यूशन ने इजरायल और फिलिस्तीन दो राज्य बनाया था. फिलिस्तीनी पूर्वी जेरुसलम को अपनी राजधानी बनाने के साथ-साथ इजरायली कब्जे को समाप्त, अपने घरों-जमीनों से फिलिस्तीनियों की बेदखली पर रोक तथा फिलिस्तीनी क्षेत्र में यहूदी सेटलमेंट को समाप्त करना चाहते हैं .पूरे जेरुसलम पर इजरायल का नियंत्रण है, जिसे वह यूनिफाइड राजधानी के रूप में देखता है. जबकि यह शहर यहूदी और अरब दोनों लोगों में बटा हुआ है.
वेस्ट बैंक के रामाल्लाह में स्थापित फिलिस्तीनी अथॉरिटी और गाजा में फैले हमास के बीच राजनीतिक संघर्ष ने फिलिस्तीनियों को बांट कर उनके संघर्ष को कमजोर किया है. इजरायल के अरब मूल के नागरिक, जिनकी संख्या 10 लाख से भी ऊपर है, अपने फिलिस्तीनी बंधुओं के समर्थन में सामने आए हैं .अरब देशों के साथ इजरायल के बढ़ते फॉर्मल डिप्लोमेटिक संबंधों को लेकर फिलिस्तीनी लोग बेचैन हैं, जिन्हें लगता है कि यह उनके संघर्ष को कमजोर कर रहा है.
जब संघर्ष कम होता नहीं दिख रहा है तब इजरायल ने गाजा के चारों ओर जमीनी हमले के लिए सेना बुला ली है, जिनका कोडनेम 'गार्जियन ऑफ वॉल' है .हमास और इस्लामी जिहादी इजरायली एयर स्ट्राइक्स की बौछार झेल रहे हैं. दोनों संगठन गाजा के बाहर से ऑपरेट कर रहे हैं. उन्होंने एक टनल बना रखा है ,निकनेम मेट्रो, जहां वह हथियार छुपाते हैं तथा उसका इस्तेमाल बम शेल्टर तथा इजरायल में घुसपैठ के लिए करते हैं. इजरायली डिफेंस फोर्स धोखा देने के कला में माहिर है. उसने ट्वीट कर दिया कि सेना गाजा पर जमीनी हमला करने जा रही है. यह खबर आग की तरह हर बड़े मीडिया चैनल तथा सोशल मीडिया पर फैल गई.
टकराव को लेकर अंतरराष्ट्रीय राय इजरायल की कठोर निंदा से लेकर उससे संयमित कार्रवाई की मांग तक देखने को मिली है .जहां अमेरिका ने जल्दी से सीजफायर करने का दबाव बनाया है तो भारत ने संयम से काम लेने और बातचीत से मामले को सुलझाने की बात कही है. हालांकि भारत का फिलिस्तीन के प्रति समर्थन बहुत पहले से रहा है ,लेकिन हाल के वर्षों में इजरायल के साथ सामरिक संबंध उस स्तर पर पहुंच गए हैं जहां इस संघर्ष को रोकने के लिए नेतृत्वकारी भूमिका में सामने आना भारत के लिए मुश्किल है. विशेषकर उस समय जब विश्व कोविड-19 महामारी से लड़ने में व्यस्त है.
दुर्बल UN अप्रभावी ही रहेगा, क्योंकि अमेरिका इजरायल के खिलाफ किसी भी अंतरराष्ट्रीय कार्यवाही को मंजूरी नहीं देगा .इरान भी, जिसने हमास और इस्लामी जिहाद को समर्थन दिया है, इस मुद्दे पर अमेरिका के साथ JCPOA (न्यूक्लियर डील) के नेगोशिएशन को खतरे में नहीं डालेगा. इस संघर्ष के आगे और विकराल रूप लेने की संभावना है क्योंकि लेबनान स्थित हिजबुल्ला के भी इसमें उतरने का डर है.
( लेखक विदेश मंत्रालय में पूर्व सचिव तथा राजदूत रहे हैं. वे DeepStrat के फाउंडिंग डायरेक्टर हैं तथा इजरायल में DCM के रूप में सेवा दे चुके हैं. वर्तमान में वह ORF,दिल्ली में विजिटिंग फेलो है .यह एक ओपिनियन पीस है. यहां लिखे विचार लेखक के अपने हैं.द क्विंट का इससे सहमत होना जरूरी नहीं है)
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