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"मैंने कई रॉकेट उड़ते हुए देखे, लेकिन उनमें से ज्यादातर आसमान में नष्ट कर दिए गए. शहर पर कोई रॉकेट नहीं गिरा. आमतौर पर एक सायरन एक मिनट के लिए बजता है और हम बंकर की ओर भागते हैं. फिर उसके बंद होने के बाद हम वापस ऊपर आ जाते हैं."
तेल अवीव (Tel-Aviv) में रहने वाले भारत से गए एक प्रवासी कामगार ने द क्विंट को बताया,
इजरायल (Israel) में रहने वाले अन्य विदेशियों की तरह भारत के प्रवासी भी "युद्ध की स्थिति के लिए अच्छी तरह से ट्रेंड हैं. लेकिन शनिवार, 7 अक्टूबर को फिलिस्तीनी मिलिटेंट ग्रुप हमास द्वारा इजरायल पर अचानक किए गए हमले ने उनमे भय, चिंता और घबराहट पैदा कर दी है. हमले के बाद इजरायल ने गाजा पट्टी की पूरी घेराबंदी कर दी, जिससे बड़े पैमाने पर मौतें और तबाही हुईं.
स्टोरी लिखे जाने तक इजरायल में कम से कम 1,200 और गाजा में 1000 से ज्यादा लोग मारे गए हैं- युद्ध पांचवें दिन में प्रवेश कर गया है.
द क्विंट ने इजरायल में फंसे भारतीयों से बात की कि वे युद्ध से कैसे निपट रहे हैं.
27 साल के भारतीय छात्र आदित्य करुणानिधि निवेदिता ने कहा, " इजरायल में मौजूद हमारे जैसे भारतीय छात्र, भारत सरकार से भारतीय नागरिकों के स्टेटस और हमारी सुरक्षा के बारे में उनके फैसले के बारे में सुनना चाहेंगे."
तमिलनाडु के तिरुवरुर जिले के रहने वाली आदित्य निवेदिता, गाजा से 41 किलोमीटर दूर - बेर्शेबा में नेगेव क्षेत्र के बेन-गुरियन यूनिवर्सिटी में पीएचडी के छात्र हैं.
आदित्य निवेदिता ने दावा किया कि अकेले उनके यूनिवर्सिटी में कम से कम 300 भारतीय छात्र हैं. कुल मिलाकर, इजरायल में भारतीय दूतावास के मुताबिक, जनवरी 2022 तक इजरायल में लगभग 900 भारतीय छात्र पढ़ रहे थे, जिनमें से ज्यादातर डॉक्टरेट और पोस्ट-डॉक्टरेट स्तर पर थे.
आदित्य निवेदिता शनिवार की उस डरावनी सुबह को याद करती हैं जब हमास ने इजरायल की ओर करीब 5,000 रॉकेट दागे और उसके जमीनी हमले के बाद संघर्ष छिड़ गया था. निवेदिता ने इससे पहले सोशल मीडिया पर 2.16 मिनट लंबा एक कथित वीडियो डाला था, जिसे तेजी से शेयर किए जा रहा है. वीडियो में वो कहती हैं,
मंगलवार, 10 अक्टूबर को उन्होंने द क्विंट को बताया कि ''स्थिति वैसी ही बनी हुई है.'' आदित्य कैंसर बायोलॉजी (ड्रग डिस्कवरी) में अपनी रिसर्च कर रही हैं और ढाई साल से इजरायल में हैं.
25 वर्षीय सृष्टि (बदला हुआ नाम) हाइफा यूनिवर्सिटी में न्यूरोबायोलॉजी की छात्रा हैं. वो पीएचडी कर रही हैं. उन्होंने कहा, "इजरायल की दो टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी- हाइफा और टेक्नियॉन एक पहाड़ी के नीचे स्थित हैं. यहां पर हम भारतीयों का एक बड़ा ग्रुप मौजूद है."
उन्होंने द क्विंट को बताया कि "सुबह गश्त कर रहे लड़ाकू विमानों की आवाज" सुनकर वह जगीं. उसके बाद वो तेजी से अपने यूनिवर्सिटी के प्रेसीडेंट, रेजिडेंट और इंटरनेशनल स्टूडेंट्स के साथ एक मीटिंग में हिस्सा लेने चली गईं. यहां उन्हें न केवल कैंपस के अंदर बल्कि आसपास के अपार्टमेंट्स और सड़कों के किनारे भी बंकर्स के बारे में बताया गया.
कर्नाटक की रहने वालीं 41 वर्षीय स्टाफ नर्स प्रमिला प्रभु पिछले छह वर्षों से इजरायल में हैं. उन्होंने द क्विंट को बताया, "इजरायल, गाजा और फिलिस्तीन जैसी जगहों पर रहने से हमें नियमित और लगातार युद्ध के हालातों की आदत हो गई है."
उन्होंने कहा, "हम बड़ी मात्रा में फूड सप्लाई बनाए रखते हैं क्योंकि हमें युद्ध के लिए हमेशा तैयार रहना होता है. हम 20 दिनों से लेकर एक महीने तक चलने वाले भोजन और किराने का सामान स्टोर रखते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हम आपात स्थिति में जीवित रह सकें."
48 वर्षीय शिवा (बदला हुआ नाम), तेल अवीव में फंसे तेलंगाना के कई भारतीय प्रवासियों में से एक हैं. वो 10 वर्षों से ज्यादा समय से वहां रह रहे हैं. मूल रूप से हैदराबाद के बोडुप्पल के रहने वाले शिवा वर्तमान में एक सुपरमार्केट में केयरटेकर के रूप में काम करते हैं.
उन्होंने कहा कि भारतीय दूतावास उनके संपर्क में है, लेकिन घर पर उनकी पत्नी और दो बच्चे बीमार हैं.
इस बीच, तेलंगाना में प्रवासी मित्र मजदूर संघ के अध्यक्ष स्वदेश पार्किपंदला ने 10 अक्टूबर को द क्विंट को बताया कि तेलंगाना के 30-60 भारतीय प्रवासी इस समय तेल अवीव में फंसे हुए हैं.
इजरायल में भारतीय दूतावास के मुताबिक, जनवरी 2022 तक इजरायल में लगभग 15,000 भारतीय नागरिक थे. इनमें से ज्यादातर इजरायली बुजुर्गों की देखभाल के लिए नियुक्त केयरटेकर, हीरा व्यापारी, आईटी पेशेवर और छात्र थे.
7 अक्टूबर को, यरूशलेम में भारतीय दूतावास और फिलिस्तीन में भारत के प्रतिनिधि कार्यालय ने संयुक्त रूप से एडवाइजरी जारी की, जिसमें अपने-अपने देशों में भारतीय नागरिकों से "सतर्क रहने" और आपातकालीन स्थिति में "सीधे कार्यालय से संपर्क करने" का आग्रह किया गया.
आदित्य ने भी कहा कि वह इजरायल में भारतीय दूतावास के संपर्क में थीं. सृष्टि ने कहा कि छात्रों को "मानसिक स्वास्थ्य सहायता" के लिए "हेल्पलाइन नंबर" की पेशकश की गई थी.
भय और चिंता ने न केवल युद्धग्रस्त इजरायल में फंसे भारतीय नागरिकों को, बल्कि भारत में उनके परिवारों को भी परेशान कर दिया है.
प्रभु भारत में अपने परिवार को पॉजिटिव अपडेट देने का भी इंतजार कर रहीं हैं. उन्होंने कहा, "मैं यहां अपने दोस्तों के साथ हूं लेकिन मेरा परिवार - पति और दो बच्चे - भारत वापस आ गए हैं. मैं हर दिन उनसे बात करती हूं."
इस बीच, आदित्य की मां निवेदिता ने द क्विंट को बताया कि वह पिछले चार दिनों से अपने टीवी और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर नजर रख रही थीं.
निवेदिता ने कहा, "जब मैं खाना बना रही होती हूं तब भी मैं टेलीविजन न्यूज देख रही हूं. बेशक, हम डरे हुए हैं." उन्होंने कहा कि वह लगातार अपनी बेटी के संपर्क में हैं और 10 अक्टूबर की सुबह उनकी बेटी से आखिरी बार बात हुई थी.
उन्होंने कहा कि आदित्य ने उन्हें बताया कि उनके क्षेत्र में स्थिति बाकी जगह के मुकाबले शांतिपूर्ण है और भारतीय दूतावास छात्रों के संपर्क में है.
निवेदिता ने कहा, "मैं समझती हूं कि वह मुझे सांत्वना देने की कोशिश कर रही है. मैं डरी हुई हूं, लेकिन उसे दिखा नहीं सकती. एक मां के तौर पर मुझे इस कठिन समय में उसे ताकत देने की जरूरत है." उन्होंने भारत सरकार से "सही समय पर आवश्यक कदम उठाने" का अनुरोध किया.
सृष्टि के माता-पिता पहले उसके इजरायल जाने से झिझक रहे थे, वह भी "बेहद डरी हुई" हैं. उसने कहा, "एयरपोर्ट बंद है, और मेरे पास दिल्ली वापस जाने का कोई रास्ता नहीं है. हम असहाय स्थिति में हैं. न्यूज ही एकमात्र तरीका है जिससे मेरे परिवार को पता चलता है कि क्या हो रहा है - और यह अच्छा नहीं लग रहा है."
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