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इटली में नई सरकार के लिए रविवार, 25 सितंबर को वोट (Italy election) डाले जा रहे हैं. अब तक के रुझानों और सर्वे को आधार बनाए तो जॉर्जिया मेलोनी (Giorgia Meloni) इटली की पहली महिला प्रधान मंत्री बनने जा रही हैं और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से इटली की सत्ता में पहली बार सबसे दक्षिणपंथी सरकार बन रही है. यही कारण है कि जॉर्जिया मेलोनी की जीत केवल इस कारण ऐतिहासिक नहीं होगी कि इटली को पहली बार महिला प्रधान मंत्री मिलेगी. उनकी जीत इसलिए भी ऐतिहासिक होगी क्योंकि कि वे एक ऐसी पार्टी- Fratelli d’Italia (Brothers of Italy)- का नेतृत्व करती हैं जो पूर्व फासीवादी नेता बेनिटो मुसोलिनी के शासन के बाद बनी किसी भी मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टी की तुलना में अति दक्षिणपंथी है.
हालांकि स्वीडन से लेकर फ्रांस तक के हालिया चुनावी नतीजों पर गौर करें तो यह ट्रेंड दिखेगा कि सिर्फ इटली ही नहीं पूरे यूरोप में ही दक्षिणपंथी पार्टियां मजबूत हुई हैं. हम एक-एक कर ऐसे ही देशों और वहां की दक्षिणपंथी पार्टियों के चुनावी प्रदर्शन पर नजर डालते हैं. साथ ही इस राजनीतिक ट्रेंड के पीछे के कारणों को समझने की कोशिश करते हैं.
इटली में हाल ही में प्रधान मंत्री मारियो ड्रैगी की सरकार गठबंधन में विद्रोह के बीच गिर गयी थी. मारियो ड्रैगी, जिन्हे व्यापक रूप से इटली की विश्वसनीयता और प्रभाव बढ़ाने का श्रेय दिया जाता है, की इस हार के बाद इटली में चुनाव हो रहे हैं जिसमें जॉर्जिया मेलोनी जीत की ओर बढ़ती दिख रही हैं.
10 सितंबर को सामने आए लेटेस्ट सर्वे में जियोर्जिया मेलोनी और उनकी पार्टी 25 प्रतिशत वोट के साथ सबसे आगे है. दूसरी तरफ एनरिको लेट्टा के नेतृत्व वाली डेमोक्रेटिक पार्टी को 22 प्रतिशत वोट मिले हैं. डेमोक्रेटिक पार्टी अन्य सेंटर और लेफ्ट की पार्टियों के साथ गठबंधन बनाने में विफल रही है, जिससे चुनाव जीतने की संभावना कम हो गई है.
स्वीडन की प्रधानमंत्री मैग्डेलेना एंडरसन ने हाल ही में हुए चुनाव में हार मान ली है. एंडरसन के नेतृत्व वाली सेंटर-लेफ्ट सोशल डेमोक्रेट्स 30.3% वोट के साथ देश की सबसे बड़ी पार्टी तो बनी है लेकिन सरकार बनाने से दूर रह गयी.
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने भले ही अप्रैल में हुए राष्ट्रपति चुनावों में जीत हासिल कर दूसरा कार्यकाल जीता हो, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि फ्रांस में भी दक्षिणपंथ का शानदार प्रदर्शन आने वाले वर्षों में उनके लिए बड़े सिरदर्द का कारण बनेगा.
बड़ी जीत का सपना देख रहे मैक्रों को जहां 58.55% वोट मिले, वहीं दक्षिणपंथी नेता Marine Le Pen ने भी 41.45% वोट अपने पाले में किए. Marine Le Pen का प्रदर्शन खास इसलिए भी है क्योंकि इमैनुएल मैक्रों की इस जीत का अंतर 2017 की तुलना में बहुत कम है, क्योंकि तब इमैनुएल मैक्रों ने 66.1 प्रतिशत वोट अपने नाम किये थे जबकि Marine Le Pen को 33.9 प्रतिशत हिस्सा मिला था.
अलग-अलग देशों में वोटरों की पसंद नेताओं के व्यक्तित्व, स्थनीय घटनाओं, क्षेत्रीय मुद्दों, पार्टी के प्रति वफादारी और चुनावी प्रणाली से प्रभावित होती है. यानी सारी राजनीति स्थानीय प्रकृति की होती है. इसके बावजूद राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यूरोप में दक्षिणपंथी पार्टियों के उदय में एक ट्रेंड देखा जा रहा है और उसके पीछे कुछ वजह ही है.
CNN की रिपोर्ट के अनुसार जर्मनी का प्रतिनिधित्व करने वाले यूरोपीय संसद के सदस्य गुन्नार बेक का कहना है कि “बढ़ती महंगाई (कॉस्ट ऑफ लीविंग) का संकट सरकारों और यूरोपीय संस्थानों को कमजोर कर रहा है. बेशक यूक्रेन में युद्ध ने चीजों को और खराब कर दिया है, लेकिन यूरोपीय ग्रीन डील और यूरोपीय सेंट्रल बैंक की मौद्रिक नीति जैसी चीजें युद्ध से पहले ही महंगाई को बढ़ा रही थीं. जीवन स्तर के गिरने का मतलब है कि लोग स्वाभाविक रूप से अपनी सरकारों और राजनीतिक संस्थाओं से असंतुष्ट हो रहे हैं."
Université Libre de Bruxelles के एसोसिएट प्रोफेसर Pietro Castelli Gattinara ने वॉक्स से बात करते हुए दावा करते है कि दक्षिणपंथ का उदय लोकतंत्र के भीतर एक वैश्विक घटना है, न कि केवल यूरोप में ऐसा हो रहा है.
उन्होंने कहा कि “यूरोप में निश्चित रूप से दिख रहा है, लेकिन यह उससे अलग नहीं है जो हम अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी, भारत में पीएम मोदी और ब्राजील में बोल्सोनारो के रूप में देखने को मिल रहा है. यह बस कुछ उदाहरण है.”
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