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Maldives में विदेश मंत्री जयशंकर- यहां क्यों हो रहे हैं भारत विरोधी प्रदर्शन?

मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन क्यों कर रहे हैं भारत का विरोध, क्या हैं उनका चीन कनेक्शन ?

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दुनिया
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<div class="paragraphs"><p>मालदीव में चल रहे भारतविरोधी प्रदर्शन के पीछे का क्या है इतिहास?</p></div>
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मालदीव में चल रहे भारतविरोधी प्रदर्शन के पीछे का क्या है इतिहास?

(फोटो- द क्विंट)

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भारत और मालदीव ने शनिवार, 26 मार्च को स्वास्थ्य और शिक्षा समझौते पर उस समय हस्ताक्षर किए जब मालदीव (Maldive) में पिछले कई दिनों से भारत विरोधी प्रदर्शन चल रहा है. इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन कर रहे हैं.

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अड्डू शहर में मालदीव में अपने समकक्ष अब्दुल्ला शाहिद से मुलाकात की और क्षेत्रीय सुरक्षा और समुद्री सुरक्षा के मुद्दों पर भी चर्चा की.

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ट्वीट कर जानकारी दी है कि भारत ने एक्सपेंडेड कोस्टल रडार सिस्टम को मालदीव के रक्षा बल के प्रमुख को सौंप दिया है.

भारत विरोधी रैली को मालदीव संसद ने किया अस्वीकार 

23 मार्च को मालदीव की संसद ने राजधानी माले में प्लान किये गए भारत विरोधी एक रैली के खिलाफ लाये गए एक आपातकालीन प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया. इस रैली को मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन और उनकी प्रोग्रेसिव पार्टी और उसकी सहयोगी पीपुल्स नेशनल कांग्रेस ने बुलाया था.

रैली के खिलाफ लाये आपातकालीन प्रस्ताव में कहा गया है कि रैली राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाल रही थी और मालदीव व उसके एक पड़ोसी के बीच कलह पैदा कर रही थी. इसने मालदीव के राष्ट्रीय रक्षा बलों को रैली और इसी तरह के अन्य आयोजनों को रोकने के लिए कहा.

मालूम हो कि इस रैली का विषय "इंडिया आउट" था, जो दो साल पहले प्रदर्शनकारियों द्वारा बनाया एक नारा था. प्रदर्शनकारियों का दावा था कि राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह के नेतृत्व वाली एमडीपी सरकार ने मालदीव को भारत को "बेचा" है.
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मालदीव में क्यों बना भारत विरोधी माहौल 

मालदीव 500,000 लोगों का एक छोटा देश है. पिछले एक दशक या उससे अधिक समय में देश राजनीति से प्रभावित हुआ है. भारत और चीन ने पिछले 10 वर्षों के दौरान मालदीव में अपने वजूद के लिए संघर्ष किया है. देश ने लोकतंत्र द्वारा लाए गए राजनीतिक उतार-चढ़ाव का अनुभव किया है.

पिछले दो दशकों के दौरान यहां के राजनीतिक दलों ने चुनाव लड़ा जिसमें विदेश नीति ने एक बड़ी भूमिका निभाई है, क्योंकि यह छोटे देश के आर्थिक विकास से जुड़ा हुआ है.

मालदीव में, एमडीपी और उसके शीर्ष नेताओं, विशेष रूप से नशीद को भारत समर्थक के रूप में देखा जाता है, जबकि प्रतिद्वंद्वी यामीन को चीन समर्थक के रूप में .

2018 में पिछले राष्ट्रपति और संसदीय चुनावों में, एमडीपी को फिर से भारी वोट मिला. यामीन सरकार के दोषसिद्धि के कारण नशीद चुनाव नहीं लड़ सके और इब्राहिम सोलिह राष्ट्रपति बने. इसके तुरंत बाद यामीन को भ्रष्टाचार के आरोपों में दोषी ठहराया गया.

माले में एक मैत्रीपूर्ण सरकार के साथ, भारत द्विपक्षीय संबंधों का पुनर्निर्माण करने और यामीन राष्ट्रपति पद के दौरान छह साल के अंतराल के बाद अपने पिछले प्रभाव को फिर से हासिल करने में सक्षम रहा है.

मालदीव की सुप्रीम कोर्ट द्वारा उनकी सजा को पलटने के बाद दिसंबर 2021 में यामीन की लंबी नजरबंदी से रिहाई के कारण भारत विरोधी रैलियों में वृद्धि हुई. प्रदर्शनकारियों के पोस्टर में जिसे नेता की फोटो है, वो गयूम के सौतेले भाई हैं. यामीन इनमें से कुछ विरोध स्थलों पर मौजूद रहे हैं और कुछ रैलियों का नेतृत्व किया है.

अगले राष्ट्रपति और संसदीय चुनाव 2024 में हैं और यामीन अपने समर्थन आधार को मजबूत करने के लिए इस अभियान का उपयोग कर रहे हैं. एमडीपी को एक ऐसी पार्टी के रूप में चित्रित कर रहे हैं जिसने देश को गुलाम बना लिया है.

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