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Nobel Peace Prize: शांति के लिए नोबेल पुरस्कारों की घोषणा हो चुकी है. जेल में बंद बेलारूस के मानवाधिकार एक्टिविस्ट एलेस बियालियात्स्की (Ales Bialiatski), रूस के मानवाधिकार संगठन मेमोरियल (Memorial) और यूक्रेन के मानवाधिकार संगठन सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज (Center for Civil Liberties) को 2022 का नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया है.
नोबेल शांति पुरस्कार के विजेताओं को सेलेक्ट करने वाली कमिटी- नॉर्वेजियन नोबेल कमिटी (Norwegian Nobel committee) की अध्यक्ष Berit Reiss-Andersen ने घोषणा करते हुए कहा कि "नार्वेजियन नोबेल समिति बेलारूस, रूस और यूक्रेन के पड़ोसी देशों में मानवाधिकार, लोकतंत्र और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के तीन चैंपियनों को सम्मानित करना चाहती है." साथ ही उन्होंने बेलारूस से एक्टिविस्ट एलेस बालियात्स्की को जेल से रिहा करने की मांग की है.
हालांकि Berit Reiss-Andersen ने रिपोर्टरों से बात करते हुए कहा कि यह पुरस्कार पुतिन विरोधी पुरस्कार नहीं है. उन्होंने कहा, "हम हमेशा किसी न किसी चीज के लिए पुरस्कार देते हैं, किसी के खिलाफ नहीं."
Ales Bialiatski एक प्रमुख बेलारूसी मानवाधिकार एक्टिविस्ट हैं, जो अभी बिना किसी मुकदमे/ट्रायल जेल में बंद हैं. 60 साल के बियालियात्स्की, बेलारूस के वायसना (जिसका मतलब वसंत है) मानवाधिकार केंद्र के फाउंडर हैं. इसे साल 1996 में बेलारूस के नेता अलेक्जेंडर लुकाशेंको द्वारा सड़क पर विरोध प्रदर्शनों को क्रूरता से कुचलने के प्रयासों के जवाब में स्थापित किया गया था.
2011 में कर चोरी के आरोपों में दोषी ठहराए जाने के बाद Bialiatski ने तीन साल जेल में बिताए, हालांकि उन्होंने हमेशा इस आरोप में इनकार किया है. बेलारूस में चुनाव में धांधली के आरोपों के बाद शुरू विरोध-प्रदर्शन के बीच उन्हें 2020 में फिर से हिरासत में लिया गया था, इस चुनाव ने लुकाशेंको को सत्ता में बनाए रखा था. बता दें कि लुकाशेंको - जिन्हें पश्चिम में यूरोप का अंतिम तानाशाह कहा जाता है - ने 1994 से बेलारूस पर शासन किया है.
नॉर्वेजियन नोबेल कमिटी के अनुसार "सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज ने यूक्रेन के नागरिक समाज/ सिविल सोसाइटी को मजबूत करने और अधिकारियों पर यूक्रेन को एक पूर्ण लोकतंत्र बनाने के लिए दबाव बनाने के लिए एक स्टैंड लिया है."
द गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार मेमोरियल को साल 1987 में पूर्व सोवियत संघ में मानवाधिकार एक्टिविस्टों ने स्थापित किया गया था. जो यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि कम्युनिस्ट शासन के उत्पीड़न के शिकार लोगों को कभी नहीं भुलाया जाए.
नॉर्वेजियन नोबेल कमिटी का कहना है कि यह संगठन "इस धारणा पर आधारित है कि नए अपराधों को रोकने के लिए पिछले अपराधों का सामना करना आवश्यक है. यह संगठन सैन्यवाद का मुकाबला करने और कानून के शासन पर आधारित मानवाधिकारों और सरकार को बढ़ावा देने के प्रयासों में भी सबसे आगे खड़ा रहा है.”
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