Pervez Musharraf को हुई फांसी की सजा कैसे माफ हुई थी?

परवेज मुशर्रफ ने कारगिर युद्ध के बाद नवाज शरीफ का तख्तापलट किया था.

उपेंद्र कुमार
दुनिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>Pervez Musharraf: तानाशाह राष्ट्रपति से निर्वासन, फांसी, माफी और अब मौत </p></div>
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Pervez Musharraf: तानाशाह राष्ट्रपति से निर्वासन, फांसी, माफी और अब मौत

(फोटोः क्विंट हिंदी)

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पाकिस्तान के पूर्व आर्मी चीफ और तानाशाह राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की दुबई के एक अस्पताल में रविवार को मौत हो गई. वह एमाइलॉयडोसिस बीमारी से पीड़ित थे. परवेज मुशर्रफ साल 2008 से ही निर्वासन में थे. हालांकि, बीच में साल 2013 में पाकिस्तान लौटे थे, लेकिन फिर साल 2016 में पाकिस्तान छोड़ सऊदी अरब में रहने लगे थे. परवेज मुशर्रफ पर पाकिस्तान में देशद्रोह और बेनजीर भुट्टों की हत्या समेत कई मुकदमें दर्ज थे.

साल 2002 से साल 2008 तक पाकिस्तान पर मुशर्रफ का ही शासन रहा. अमेरिका पर 9/11 के हमले के बाद शुरू हुए आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में अमेरिका का साथ देने का फैसला कर मुशर्रफ अंतरराष्ट्रीय राजनीति में छा गए. लेकिन, परवेज मुशर्रफ जब दूसरी बार साल 2007 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने तो इसको पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. मुशर्रफ के खिलाफ पाकिस्तान में प्रदर्शन होने लगे. इसको दबाने के लिए मुशर्रफ ने 2007 में संविधान को निलंबित कर दिया था, ताकि सर्वोच्च अदालत उनके शासन को कानूनी रूप से चुनौती ना दे सके. आखिरकार, बढ़ते दबाव और अपने खिलाफ हो रहे प्रदर्शन को देखते हुए मुशर्रफ ने अगस्त 2008 में राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया.

साल 2013 में मुशर्रफ के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज

साल 2008 में राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के बाद मुशर्रफ लंदन में निर्वासन की जिंदगी जीने लगे. लेकिन, फिर दोबारा वो पाकिस्तान की राजनीति में सक्रिय होने के लिए साल 2013 में पाकिस्तान लौटे.वे मई 2013 में होने वाले प्रधानमंत्री के चुनाव में अपनी पार्टी का नेतृत्व करना चाहते थे. लेकिन, इस चुनाव के लिए मुशर्रफ को अयोग्य घोषित कर दिया गया. फिर अंत में इस्लामाबाद के उनके बंगले में उन्हें नजरबंद कर दिया गया. उन पर कई आरोप लगाए गए. मुशर्रफ पर पहला आरोप लगा कि 2007 में जब बेनजीर भुट्टो चुनाव में हिस्सा लेने के लिए पाकिस्तान लौटीं तो मुशर्रफ उन्हें पर्याप्त सुरक्षा मुहैया करवाने में नाकाम रहे. इसके अलावा उन पर यह आरोप भी लगा कि साल 2007 में अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए उन्होंने वरिष्ठ जजों को जेल में बंद कर दिया था.

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दिसंबर 2013 में मुशर्रफ के ऊपर देशद्रोह का मुकदमा ठोक दिया गया. मार्च 2014 को उन्हें दोषी करार दिया गया. सितंबर 2014 में अभियोजन पक्ष ने अदालत के सामने सारे सबूत पेश कर दिए. हालांकि, इसके बाद मामला टलता रहा और मार्च 2016 में मुशर्रफ पाकिस्तान से बाहर चले गए. फिर नवंबर 2019 में अदालत ने मामले की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. लेकिन, दिसंबर 2019 में मुशर्रफ को फांसी की सजा सुना दी गई.

साल 2019 में मुशर्रफ को फांसी की सजा

विशेष कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा कि अगर मुशर्रफ की मौत फांसी की सजा से पहले हो जाती है, तो उनके शव को इस्लामाबाद के डी-चौक पर तीन दिनों के लिए लटकाया जाएगा. फैसले में कहा गया था कि ''हमने अभियुक्त को हर एक अपराध का दोषी पाया है. इसलिए उन्हें फांसी पर अंतिम सांस तक लटाकाया जाए. हम कानून प्रवर्तन एजेंसियों को यह निर्देश देते हैं कि वह दोषी व्यक्ति को कानून की तरफ से तय सजा देने का काम पूरा करे और अगर वह इससे पहले मृत पाए जाते हैं तो उनके शव को पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद के डी-चौक पर लाया जाए और वहां तीन दिन के लिए लटकाया जाए.''

विशेष अदालत की जिस बेंच ने परवेज मुशर्रफ के खिलाफ फैसला सुनाया था. उसका नेतृत्व पेशावर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस वकार अहमद सेठ कर रहे थे. इस बेंच में उनके साथ सिंध हाईकोर्ट के जस्टिस नजर अकबर और लाहौर हाईकोर्ट के जस्टिस शाहिद करीम शामिल थे. इस फैसले में जहां जस्टिस सेठ और जस्टिस करीम ने मुशर्रफ को दोषी पाया था, वहीं जस्टिस अकबर ने इससे अलग राय रखी थी. उस समय परवेज मुशर्रफ दुबई में थे, जहां उनका इलाज चल रहा था. फैसले के बाद मुशर्रफ ने एक वीडियो जारी कर खुद पर लगे आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताया था.

साल 2019 में पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार ऐसा मौका आया था, जब किसी सेनाध्यक्ष को मौत की सजा सुनाई गई थी. दिसंबर में फैसले के तुरंत बाद पाकिस्तान की ताकतवर सेना ने साफ कहा था कि वह अपने रिटायर्ड जनरल के साथ खड़ी है. सेना के मुताबिक स्पेशल कोर्ट के फैसले से आर्मी को काफी पीड़ा पहुंची है.

साल 2020 में मुशर्रफ की फांसी की सजा रद्द

लेकिन, साल 2020 में लाहौर हाई कोर्ट ने परवेज मुशर्रफ की फांसी की सजा को रद्द कर दिया था. लाहौर हाई कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने पूर्व आर्मी चीफ और राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को मौत की सजा सुनाने की पूरी प्रक्रिया को ही असंवैधानिक करार दिया था. बेंच ने एकमत से मुशर्रफ के पक्ष में फैसला सुनाया था.

अदालत में सरकार की पैरवी कर रहे एडिशनल अटॉर्नी जनरल इश्तियाक ए खान से हाई कोर्ट ने पूछा था कि मुशर्रफ के मामले की जांच के लिए विशेष अदालत का गठन कैसे किया गया? क्या इसके लिए कैबिनेट की मंजूरी ली गई? कैबिनेट में इस पर कब चर्चा हुई? सवालों के जवाब में एडिशनल अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि "यह सच है कि मुशर्रफ के खिलाफ मुकदमे की सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट के गठन का फैसला कैबिनेट की अनुमति के बिना हुआ." इन्हीं आधारों पर हाई कोर्ट ने मुशर्रफ की सजा को असंवैधानिक करार दिया.

हाई कोर्ट ने यह भी माना था कि, "आपातकाल भी संविधान का ही हिस्सा है. बेंच में शामिल जस्टिस नकवी ने सरकार से पूछा था कि, "अगर ऐसी स्थिति हो कि सरकार को इमरजेंसी लगानी पड़े तो क्या सरकार के खिलाफ भी राजद्रोह का मुकदमा दायर करना चाहिए."

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