25 जुलाई 2002 को तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर नारायणन का कार्यकाल खत्म होने वाला था. कांग्रेस नेतृत्व UPA और बीजेपी नेतृत्व वाले NDA में राष्ट्रपति उम्मीदवार को लेकर गहमागहमी चल रही थी. इस बार अटल बिहारी वाजपेयी सरकार फूंक फूंक कर कदम उठा रही थी, क्योंकि एक वोट से गिरी वाजपेयी सरकार को ये अंदाजा था कि NDA घटक के सभी दलों को साथ नहीं लिया गया तो सरकार के लिए अच्छा नहीं होगा. दूसरा ये कि वाजपेयी सरकार के पास इतने वोट भी नहीं थे कि अपने दम पर वो राष्ट्रपति बना सके. लिहाजा, सभी की रायसुमारी के साथ NDA की तरफ से राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए इंदिरा गांधी के सलाहकार रहे पीसी अलेक्जेंडर का नाम फाइनल हुआ.
लेकिन, वाजपेयी सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे तेलगु देशम पार्टी के प्रमुख चंद्र बाबू नायडू ने पीसी अलेक्जेंडर के नाम पर वीटो लगा दिया. तब वाजपेयी सरकार ने मुलायम सिंह यादव द्वारा सुझाए गए नाम पर आगे बढ़ने का फैसला किया. इस नाम पर चंद्रबाबू नायडू भी सहमत हो गए. मुलायम सिंह यादव ने राष्ट्रपति उम्मीदवार के तौर पर जिस नाम को सुझाया था वो नाम था डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम.
मुलायम सिंह यादव कलाम को तब से जानते थे, जब वह केंद्र में रक्षामंत्री थे. तब कलाम उनके वैज्ञानिक सलाहकार हुआ करते थे. मुलायम सिंह और कलाम के बीच द्विभाषिये का काम कर चुके मौजूदा केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने एक संबोधन में बताया था कि जब भी मुलायम सिंह और कलाम साहब एक कमरे में होते थे, तो कलाम साहब मुलायम सिंह जी से हिंदी सीखा करते थे.
8 जून 2002 को राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए आम सहमति बन गई. दरअसल, कलाम को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाने के पीछे कई कारण थे. पहला पोखरण परीक्षण को लेकर राजनैतिक माइलेज लेना था, दूसरा कलाम एक सम्मानीय चेहरा थे और तीसरा एनडीए को लगता था कि कलाम के नाम पर विपक्ष एकजुट हो जाएगा. चौथा और महत्वपूर्ण कारण अल्पसंख्यकों को संदेश देना था, क्योंकि उसी वक्त गुजरात में गोधरा जैसा बड़ा कांड हुआ था, जो अल्पसंख्यकों में भय का कारण बन गया था. कलाम को उस समय तक अपनी उम्मीदवारी का पता नहीं था.
कलाम का नाम फाइनल होने के बाद वाजपेयी ने उनसे बात करने इच्छा जाहिर की. प्रधानमंत्री कार्यालय ने कलाम से संपर्क साधने की कोशिश की तो पता चला की कलाम चेन्नई की अन्ना यूनिवर्सिटी में लेक्चर देने के लिए गए हैं. 10 जून, 2002 को एपीजे अब्दुल कलाम को अन्ना विश्वविद्यलय के कुलपति डाक्टर कलानिधि का संदेश मिला कि प्रधानमंत्री कार्यालय उनसे संपर्क स्थापित करने की कोशिश कर रहा है. इसलिए आप तुरंत कुलपति के दफ्तर चले आइए, ताकि प्रधानमंत्री से आपकी बात हो सके. जैसे ही उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय से कनेक्ट किया गया, वाजपेई फोन पर आए और बोले- कलाम साहब देश को राष्ट्पति के रूप में आप की ज़रूरत है. कलाम ने वाजपेई को धन्यवाद दिया और कहा कि इस पर विचार करने के लिए मुझे एक घंटे का समय चाहिए. वाजपेई ने कहा आप समय जरूर ले लीजिए. लेकिन मुझे आपसे हां चाहिए. ना नहीं.
शाम तक NDA के संयोजक जॉर्ज फर्नान्डिस, संसदीय कार्य मंत्री प्रमोद महाजन, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन आयोजित कर कलाम की उम्मीदवारी का ऐलान कर दिया. कलाम शायद भारत के पहले गैर राजनीतिक राष्ट्रपति चुने गए. क्योंकि, कलाम की राजनीतिक अनुभवहीनता तब उजागर हुई जब उन्होंने 22 मई की आधी रात को बिहार में राष्ट्रपति शासन लगाने का अनुमोदन कर दिया, वो भी उस समय जब वो रूस की यात्रा पर थे.
साल 2005 के बिहार विधानसंभा चुनाव में किसी भी पार्टी के बहुमत न मिलने पर तत्कालीन राज्यपाल बूटा सिंह ने बिना सभी विकल्पों को तलाशे बिना बिहार में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर दी. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक बैठक के बाद उसे तुरंत राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए फैक्स से मास्को भेज दिया. कलाम ने इस सिफारिश पर रात डेढ़ बजे दस्तखत कर दिए.
लेकिन, पांच महीने बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को गैरसंवैधानिक करार दे दिया, जिसकी वजह से यूपीए सरकार और खुद कलाम की बहुत किरकिरी हुई. कलाम ने खुद अपनी किताब 'अ जर्नी थ्रू द चैलेंजेज' में लिखा कि वो सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले से इतना आहत हुए थे कि उन्होंने इस मुद्दे पर इस्तीफा देने का मन बना लिया था. लेकिन, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन्हें ये कह कर ऐसा न करने के लिए मनाया कि इससे देश और दुनिया में गलत संदेश जाएगा.
लेकिन, कलाम कूटनीति में आगे थे. जब 2005 में जनरल परवेज मुशर्रफ भारत आए तो वो राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से भी मिले. मुलाकात से एक दिन पहले कलाम के सचिव पीके नायर उनके पास ब्रीफिंग के लिए गए. पीके नायर ने कलाम को बताया कि सर कल मुशरर्फ आपसे मिलने आ रहे हैं. उन्होंने जवाब दिया, हां मुझे पता है. नायर ने कहा कि वो जरूर कश्मीर का मुद्दा उठाएंगे. आपको इसके लिए तैयार रहना चाहिए. कलाम ने झट से जवाब दिया उसकी चिंता मत करो. मैं सब संभाल लूंगा. अगले दिन ठीक सात बज कर तीस मिनट पर परवेज मुशर्रफ अपने काफिले के साथ राष्ट्रपति भवन पहुंचे. उन्हें पहली मंजिल पर नॉर्थ ड्राइंग रूम में ले जाया गया. कलाम ने उनका स्वागत किया. मुलाकात का वक्त तीस मिनट तय था.
कलाम ने बोलना शुरू किया कि राष्ट्रपति महोदय, भारत की तरह आपके यहां भी बहुत से ग्रामीण इलाके होंगे. आपको नहीं लगता कि हमें उनके विकास के लिए जो कुछ संभव हो करना चाहिए? जनरल मुशर्रफ के पास हां के अलावा और कोई शब्द नहीं था, वो कलाम के सामने अपने को निरुत्तर समझ रहे थे. कलाम बोलते रहे.
इस बार कलाम ने मुशर्रफ को ‘पूरा’ का मतलब समझाया. उन्होंने कहा कि मैं आपको संक्षेप में ‘पूरा’ के बारे में बताउंगा. पूरा का मतलब है प्रोवाइंडिंग अर्बन फैसेलिटीज टू रूरल एरियाज़.
कलाम अगले 26 मिनट तक मुशर्रफ को लेक्चर देते रहे कि ‘पूरा’ का क्या मतलब है और अगले 20 सालों में दोनों देश इसे किस तरह हासिल कर सकते हैं. तीस मिनट बाद मुशर्रफ ने कलाम से हाथ मिलाते हुए कहा कि धन्यवाद राष्ट्रपति महोदय. भारत भाग्यशाली है कि उसके पास आप जैसा एक वैज्ञानिक राष्ट्रपति है. नायर ने अपनी डायरी में लिखा कि कलाम ने आज दिखाया कि वैज्ञानिक भी कूटनीतिक हो सकते हैं.
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