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अगर आप रूस-यूक्रेन संकट (Russia-Ukraine Crisis) पर नजर बनाए हुए हैं तो sanctions यानी प्रतिबंधों शब्द से भली भांति परिचित होंगे. अमेरिका लगातार रूस को ये धमकी दे रहा है कि अगर रूस, यूक्रेन पर हमला करता है तो वो रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा देगा.
इसे समझने के लिए सबसे पहले ये समझिए कि पूर्वी यूरोप युद्ध की कगार पर क्यों है? इस लेख में हम ये समझने कि कोशिश करेंगे कि sanctions किस तरह काम करते हैं और रूस कैसे इनसे मुकाबला कर सकता है?
वहीं ये भी कि जानेंगे कि
अमेरिका के प्रतिबंधों का टार्गेट क्या होगा?
क्या ये प्रतिबंध रूस की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह कुचल देंगे?
इस स्थिति में रूस की भारी-भरकम विदेशी जमा पूंजी का क्या रोल होगा?
sanctions यानी प्रतिबंध एक नहीं, कई तरह से रूस को नुकसान पहुंचा सकते हैं. विश्लेषकों के अनुसार, इनमें सबसे प्रभावी कूटनीति है, रूस के बैंकों को टार्गेट करना. वैश्विक कारोबार के ज्यादातर ट्रांजैक्शंस US dollars में होते हैं और रूस के टॉप बैंक इंटरनेशनल फाइनेंशियल सिस्टम से गहराई तक जुड़े हैं.
Sberbank, VTB और Gazprombank रूस के तीन सबसे बड़े बैंक हैं. इससे पहले भी अमेरिका ने विदेशी बैंकों पर प्रतिबंध लगाए थे. खासतौर से ईरान के बैंकों पर.
आर्थिक प्रतिबंधों के पालन और इसके अमल को लेकर काम करने वाली लॉ फर्म Crowell & Moring में पार्टनर कैरोलिन ब्राउन ने S&P Global से कहा, इस तरह की ब्लैकलिस्टिंग रूस की अर्थव्यवस्था पर विध्वंसकारी प्रभाव डाल सकती है.
अगर रूस पर ये प्रतिबंध लगाए जाते हैं, तो सरकार को बैंकों को उस संकट से निकालना होगा, जब निवेश करने वाली कंपनियां एक-एक करके बाहर निकलने लगेंगी.
इसमें से कुछ हद तक नुकसान की भरपाई फरवरी में हो गई, लेकिन युद्ध के खतरे की वजह से भड़के प्रतिबंधों का मतलब है कि निवेशक किसी भी वक्त निकल सकते हैं. रूसी रूबल, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले तेजी से गिर सकता है और ऐसे में रूस के लिए ये आर्थिक रूप से आपातपूर्ण स्थिति होगी और उसके लिए अपने फॉरेन रिजर्व में डॉलर को रोकना मुश्किल होगा.
इसी से जुड़ा दूसरा विकल्प अमेरिका और पश्चिमी यूरोपीय देशों के पास ये है कि वो रूस को SWIFT फाइनेंशियल सिस्टम से बाहर कर दें. SWIFT का मतलब है, Society for Worldwide Interbank Financial Telecommunications और इसका काम है, एक बैंक से दूसरे बैंक में पैसों का स्थानांतरण करना. ये विकल्प रूस को ज्यादातर इंटरनेशनल फाइनेंशियल ट्रांजैक्शंस से अलग कर देगा.
ईरान के बैंकों को इस नेटवर्क से उसके न्यूक्लियर प्रोग्राम की वजह से बाहर निकाल दिया गया था. इसका नतीजा ये हुआ कि ईरान को अपने ऑयल एक्सपोर्ट रेवेन्यूज के 50 प्रतिशत से ज्यादा का और विदेशी करोबार का 30 प्रतिशत नुकसान उठाना पड़ा.
इसके अलावा प्रतिबंधों का एक और विकल्प जिसपर सबसे ज्यादा मंथन किया जा रहा है वो है, रूसी तेल और ऊर्जा. अमेरिका उन तरीकों पर विचार कर रहा है जिससे रूस के एक्सपोर्ट रेवेन्यूज को कम किया जा सके. खासतौर से तेल और गैस को लेकर.
ईरान के मामले में अमेरिका ने ये सुनिश्चित किया था कि ईरान के तेल के ग्राहक समय के साथ उससे खरीदारी कम करते जाएं और धीरे-धीरे दूसरे एक्सपोर्टर्स से तेल खरीदें. इसी तरह की रणनीति का इस्तेमाल रूस के निर्यात के खिलाफ भी किया जा सकता है, लेकिन इस कदम की बड़ी कीमत भी चुकानी होगी.
रूस के नैचुरल गैस एक्सपोर्ट्स को निशाना बनाना सिर्फ रूस के लिए नहीं, दुनियाभर के देशों के लिए अनिश्चितताओं से भरा साबित होगा. खास करके यूरोप के लिए जो पिछले एक साल से पहले ही नैचुरल गैस की कमी का सामना कर रहा है. वहीं अगर रूस नैचुरल गैस की आपूर्ति को रोक देता है तो इससे कई देशों की अर्थव्यवस्थाएं और ऑस्ट्रिया, फिनलैंड, जर्मनी, पोलैंड जैसे देशों में रहने वाले लोगों का रोजमर्रा का जीवन बुरी तरह प्रभावित होगा.
ऊपर जिन sanction strategies का जिक्र किया गया है, इनके साथ समस्या ये है कि पुतिन के पास पहले से ही इनका बैकअप प्लान है. इस योजना के केंद्र में है रूस के foreign reserves का "de-dollarisation". इस प्रक्रिया को विश्लेषक "Fortress Russia" कहते हैं.
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, कोलम्बिया यूनिवर्सिटी के इकोनॉमिक हिस्टोरियन Adam Tooze ने कहा, यही वो बात है कि जो पुतिन को कूटनीतिक पैंतरों की आजादी देती है.
रूस के सेंट्रल बैंक की कुल जमा निधि में
16.4 प्रतिशत हिस्सा डॉलर है
30 प्रतिशत से ज्यादा जमा पूंजी यूरो
22 प्रतिशत गोल्ड
13 प्रतिशत renminbi
डॉलर का हिस्सा जून 2020 से कम है, जो तब 22.2 प्रतिशत था.
ये किसी से छुपा नहीं है कि पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अमेरिका के खिलाफ एक हो रहे हैं. बीजिंग विंटर ओलंपिक्स के ओपनिंग डे के दिन पुतिन और शी जिनपिंग ने एक संयुक्त बयान के साथ रूस और चीन के बीच एक नई कूटनीतिक भागीदारी की घोषणा की.
शी जिनपिंग ने यहां तक कहा कि पुतिन की उस मांग का भी समर्थन किया जिसमें पुतिन ने कहा था कि NATO को पूरब की तरफ और विस्तार नहीं करना चाहिए और यूक्रेन को सदस्यता बिल्कुल नहीं देनी चाहिए.
इसलिए युद्ध की स्थिति में और अमेरिकी प्रतिबंध लगने पर भी मॉस्को को बीजिंग का समर्थन मिलता रहेगा. फॉरेन पॉलिसी में "If Russia Invades Ukraine, Sanction China." शीर्षक के साथ एक लेख में Aaron Arnold ने कहा है कि रूस पर लगे उसके प्रतिबंध ज्यादा प्रभावी हों, इसके लिए अमेरिका ये कर सकता है कि चीन पर दूसरे दर्जे के प्रतिबंध लगा दे.
वह आगे लिखते हैं,
गोल्ड की बात करें तो ब्लूमबर्ग क्विंट की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी पूंजी पर निर्भरता को कम करने के लिए सालों तक चली एक लंबी ड्राइव ने गोल्ड के शेयर को बढ़ाने का काम किया. इसका नतीजा ये हुआ कि रूस के फॉरेन रिजर्व्स में गोल्ड पहली बार डॉलर से ऊपर है.
अगर रूस को डॉलर में कारोबार करने से प्रतिबंधित कर दिया जाए जैसी कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने चेतावनी दी है, तो foreign reserves में US dollars से ज्यादा गोल्ड कुछ समय तक स्थिति को संभाले रख सकता है.
यहां ये भी जानिए कि 2014 में Crimea पर कब्जे के बाद लगे प्रतिबंधों के अनुभव से रूस की अर्थव्यवस्था ने विदेशी निवेशकों पर अपनी निर्भरता को कम कर लिया है.
फाइनेंशियल टाइम्स के मुताबिक, रूसी सरकारी बॉन्ड्स की foreign ownership पिछले एक साल में 20 प्रतिशत तक कम हुई है.
इसलिए जब देश में विदेशी निवेश कम हुआ है तो इसने रूस को भविष्य के ऐसे झटकों को लेकर लचीला भी बना दिया है, जो प्रतिबंधों से ज्यादा बढ़ सकते हैं. विदेशी ऋणदाताओं से कॉरपोरेट लोन साल 2014 में करीब $150 billion डॉलर हुआ करता था. साल 2021 में ये आंकड़ा आधा रह गया.
(The Economist, Foreign Policy, the Financial Times और The New York Times के इनपुट के साथ)
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