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लेखक सलमान रुश्दी पर, 12 अगस्त को उस समय एक हमलावर ने चाकू से हमला (Salman Rushdie Attacked) कर दिया जब वे अमेरिका के न्यूयॉर्क में एक साहित्यिक कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे थे. 1947 में मुंबई (तत्कालीन बॉम्बे) में एक कश्मीरी-मुस्लिम परिवार में जन्मे सलमान रुश्दी अभी वेंटिलेटर पर हैं और उनके एजेंट ने जानकारी दी है कि रुश्दी अपनी एक आंख खो सकते हैं.
चलिए आपको बताते हैं कि कैसे एक किताब ने सलमान रुश्दी की जिंदगी रातों-रात बदल दिया, उन्हें मारने के लिए फतवे जारी किए गए, उनकी हत्या के लिए $3.3 मिलियन तक का इनाम रखा गया और उन्होंने अपनी जान बचाने के लिए नाम-पता बदलकर 9 साल में 'अज्ञातवास' में कैसे गुजारे?
सितंबर 1988 में अपने विवादास्पद किताब 'द सैटेनिक वर्सेज' के प्रकाशन के बाद से, मिडनाइट्स चिल्ड्रन (1981) के लिए बुकर पुरस्कार जीतने वाले ब्रिटिश-भारतीय लेखक सलमान रुश्दी को अपने जिंदा रहने के लिए असंख्य खतरों का सामना करना पड़ा है.
भारत में इस किताब के प्रकाशन के नौ दिन बाद राजीव गांधी सरकार द्वारा धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए इसपर बैन लगा दिया गया था. ब्रिटेन में भी इसके विरोध में जमकर प्रदर्शन हुआ. आगे इसे बांग्लादेश, दक्षिण अफ्रीका, सूडान, केन्या सहित कई देशों में बैन कर दिया गया था.
भले ही रुश्दी इस दौरान अपनी जान बचाने में कामयाब रहे, उनकी इस किताब के जापानी अनुवादक हितोशी इगारशी की 1991 में चाकू मारकर हत्या कर दी गई. 1991 में ही इतालवी अनुवादक एटोर कैप्रियोलो को चाकू मारकर गंभीर रूप से घायल कर दिया गया और नॉर्वे के प्रकाशक विलियम न्यागार्ड को 1993 में तीन बार गोली मारी गई थी.
1980 का दशक बीतने को था और कट्टरपंथियों ने उनकी हत्या के लिए 3 मिलियन डॉलर से अधिक के इनाम की पेशकश की थी. अगले 9 सालों तक सलमान रुश्दी छिपे रहे. लगातार अपना ठिकाना बदलते रहे और 24 घंटे उनके आस-पास बॉडीगार्ड और सिक्योरिटी फोर्स के जवान पहरा देते थे.
अयातुल्ला खुमैनी की मौत के बाद ईरानी सरकार ने आखिरकार 1998 में फतवे से खुद को दूर कर लिया. इसके बाद ही सलमान रुश्दी ने सार्वजनिक जीवन में वापसी की. रुश्दी बेस्टसेलिंग उपन्यास लिखना जारी रखते हुए, फ्री स्पीच और कलात्मक स्वतंत्रता के पैरोकार बन गए. कॉमनवेल्थ राइटर्स प्राइज फॉर बेस्ट बुक की घोषणा के लिए अपने बेटे जफर के साथ फतवे के बाद वह पहली बार साल 2000 में भारत लौटे.
लेकिन फतवा जारी होने के 33 साल बाद सलमान खुर्शीद एक बार फिर जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं. वरिष्ठ कांग्रेसी नेता शशि थरूर ने क्विंट में लिखे अपने ओपिनियन पीस में कहा है कि "यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हुआ हमला है, जो कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है. आहत करने वाले शब्दों का जवाब शब्दों से ही दिया जाना चाहिए, ना कि चाकुओं या गोलियों से. अगर लेखकों को यह डर रहेगा कि उनके सृजनात्मक कार्य के चलते उनके ऊपर हमला हो सकता है, तो हिंसा का डर, सेंसरशिप का कट्टर स्वरूप बन जाएगा."
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