Salman Rushdie Attacked: न्यूयॉर्क राज्य के चाउताउकुआ इंस्टीट्यूशन में लेखक सलमान रुश्दी पर हमला बेहद बिडंबनापूर्ण है, क्योंकि वहां वे कलात्मक स्वतंत्रता पर बात रखने के लिए गए थे. इस हमले से लेखक और पाठक बुरी तरह से सदमे में हैं.
रुश्दी पर चाकू से हमला किया गया, जिसके बाद उन्हें हेलिकॉप्टर से अस्पताल पहुंचाया गया, इस दौरान उनकी हालत के बारे में भी ज्यादा कुछ नहीं पता था. इस हमले की वजह रुश्दी द्वारा 1989 में लिखा गया उपन्यास द सैटानिक वर्सेज (The Satanic Verses) हो सकता है, जिसके चलते कुछ मुस्लिमों में उन्हें लेकर बेइंतहां नफरत मौजूद है.
तब उपन्यास के बाद, 33 साल पहले अयातुल्लाह खोमैनी ने ईशनिंदा के लिए रुश्दी की हत्या करने का फतवा जारी किया था, जिसके बाद रुश्दी को 9 साल तक छुपकर रहना पड़ा था. लेकिन शायद ही किसी ने सोचा होगा कि रुश्दी को उस उपन्यास के लिए दी गई धमकियां, 33 साल बाद वाकई हिंसक हमले में तब्दील हो सकती हैं. रुश्दी पर हमले का आरोपी, न्यूजर्सी के फेयरव्यू में रहने वाला 24 साल का हादी मतार उस उपन्यास के प्रकाशित होने और उसके बाद फतवा जारी होने के वक्त पैदा तक नहीं हुआ था.
डर के साये में लेखक
पहली बात तो यह हमला, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हुआ हमला है, जो कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है. आहत करने वाले शब्दों का जवाब शब्दों से ही दिया जाना चाहिए, ना कि चाकुओं या गोलियों से. अगर लेखकों को यह डर रहेगा कि उनके सृजनात्मक कार्य के चलते उनके ऊपर हमला हो सकता है, तो हिंसा का डर, सेंसरशिप का कट्टर स्वरूप बन जाएगा.
इस हमले से मुस्लिम समुदाय को भी नुकसान हुआ है, कई लोगों ने इस असहिष्णुता और हिंसा को जल्दबाजी में समुदाय से जोड़ने की कोशिश की। इस घटना से मुस्लिम धर्म और इससे मानने वालों के प्रति कट्टरपंथी विचार रखने वालों के पूर्वाग्रह और भी ज्यादा मजबूत होंगे.
व्यक्तिगत तौर पर मुझे यह सोचकर दुख होता है कि अब ज्यादा से ज्यादा लेखक और कलाकार, साथ में उन्हें बुलाने वाले कार्यक्रमों को सुरक्षा बंदोबस्त और कड़े करने होंगे. जहां कुछ भारतीय राजनेताओं को सुरक्षाकर्मियों के साथ चलना अच्छा लग सकता है, लेकिन आम इंसान को यह पसंद नहीं है. हम सभी को अपनी निजता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की परवाह होती है.
1991 में मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा रुश्दी की किताब द सैटेनिक वर्सेज के नॉर्वेजियन और जापानी ट्रांसलेटर्स की हत्या कर दी गई थी. इस बीच रुश्दी पुलिस सुरक्षा में अलग-अलग छद्म नामों के साथ गुप्त पते में रह रहे थे. इन नामों में से सबसे प्रसिद्ध "जोसेफ एंटोन" था, इसी नाम से उन्होंने 2012 में एक किताब प्रकाशित की थी,जिसमें उन्होंने उस दौर का अनुभव साझा किया है. रुश्दी इस ‘अज्ञातवास’ से बाहर तब आये, जब ईरान सरकार ने 1998 में घोषित किया कि वह अब फतवा का समर्थन नहीं करेगी. हालांकि खोमैनी के उत्तराधिकारी के रूप में ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने 2019 में कहा था कि फतवे को वापस नहीं लिया जा सकता.
1998 से सलमान रुश्दी अपेक्षाकृत स्वतंत्र रूप से रह रहे हैं. वे सार्वजनिक कार्यक्रमों में भाग लेते हैं, विभिन्न स्टेजों पर अपनी बात रखते हैं और यहां तक कि लेखकों के संगठन PEN का नेतृत्व भी करते हैं. उन्हें ब्रिटिश सरकार ने नाइट की उपाधि दी है और 2016 में वे अमेरिकी नागरिक बन गए. लेकिन दुख की बात है कि हम सलमान रुश्दी को भारत में ज्यादा नहीं देख पाए हैं, यहां उनकी जान को खतरे की स्थिति अपेक्षाकृत अधिक बनी रही.
रुश्दी के लिए जिंदगी अब कभी पहले जैसी नहीं होगी
मुझे रुश्दी याद हैं,जब वे मेरे साथ लंच के लिए अकेले न्यूयॉर्क की एक सड़क पर टहल रहे थे. वो सुरक्षा की आवश्यकता के बिना ऐसा करने में सक्षम होने पर रोमांचित महसूस कर रहे थे. उन्हें ‘सब नॉर्मल है’ की उस भावना को हासिल करने में लगभग एक दशक लग गया. दुख की बात है की अब उनके लिए और उनकी मेजबानी करने वालों के लिए वो दिन खत्म हो गए हैं.
अब धारणा यह होगी कि वे लेखक जो विवादास्पद मुद्दों को उठाते हैं अब पूरी सुरक्षा सावधानियों के बिना सार्वजनिक मंच पर नहीं जा सकेंगे. यह उन आयोजकों के लिए भी निराशाजनक हो सकता है जो इस तरह का अतिरिक्त बोझ उठाने में असमर्थ हैं या अनिच्छुक हैं. साथ ही और यह ऐसे लेखकों के लिए अपने दर्शकों तक पहुंचने के अवसरों को भी सीमित कर सकता है. यह भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है.
अधिकांश लेखकों को जिस चीज से डरने की जरूरत होती है, वह खराब समीक्षा है. सबसे खराब स्थिति में नाराज पाठक सड़ा हुआ अंडा या टमाटर फेंक सकता है. आप दाग पोछकर आगे बढ़ सकते हैं. सलमान रुश्दी के एजेंट एंड्रयू वायली के मुताबिक, “सलमान को एक आंख खोने का खतरा है. उनके हाथ की नसें फट गई हैं और उनका लीवर भी क्षतिग्रस्त हो गया है.” यह 75 वर्षीय लेखक ने अपनी साहित्यिक विवाद की सबसे बड़ी कीमत चुकाई है.
1981 में मिडनाइट्स चिल्ड्रन के बाद से सलमान रुश्दी ने एक लेखक के रूप में अपनी सीमाओं का विस्तार किया है. प्रत्येक भारतीय लेखक जिसने उनका अनुसरण किया है, उनके प्रति कृतज्ञता का ऋणी है. मैं उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करता हूं. हालांकि, मैं मानता हूं कि उनका जीवन अब पहले के जैसा नहीं रहेगा.
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