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पाकिस्तान (Pakistan) की 336 सदस्यीय नेशनल असेंबली में 201 वोट हासिल करने के बाद शहबाज शरीफ (Shehbaz Sharif) रविवार, 3 मार्च को दूसरी बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बन गए हैं.
शहबाज शरीफ को पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के लिए सर्वसम्मति से उम्मीदवार नामित किया गया था क्योंकि उनके भाई नवाज शरीफ ने 8 फरवरी के विवादास्पद आम चुनाव के बाद प्रधानमंत्री बनने से इनकार कर दिया था.
प्रधानमंत्री पद के लिए शहबाज शरीफ के प्रतिद्वंद्वी उमर अयूब खान को नेशनल असेंबली में 92 वोट मिले. उमर अयूब खान को इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ का समर्थन हासिल था.
शहबाज शरीफ 4 मार्च को प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे. प्रधानमंत्री के तौर पर शहबाज शरीफ का पहला कार्यकाल केवल 16 महीने का था. इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के बाद प्रधानमंत्री की कुर्सी खाली होने के बाद शहबाज शरीफ जब पहली बार प्रधानमंत्री बने तो उनके बड़े भाई नवाज शरीफ देश में मौजूद नहीं थे.
शुरुआती दिनों में शहबाज शरीफ खानदानी बिजेनस करते थे. साल 1985 में शहबाज पहली बार लाहौर चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष बने. इसके बाद वह धीरे-धीरे राजनीति में अपनी पहचान बनाने लगे.
पाकिस्तान की राजनीति को जानने वाले जानकारों का मानना है कि शहबाज शरीफ के राजनीतिक ग्राफ की लाइनें उनके भाई नवाज शरीफ की खींची रेखा के ईर्द-गिर्द घूमती रही है.
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार कमर आगा क्विंट हिंदी से बातचीत में शहबाज शरीफ के मुख्यमंत्री बनने के दौर को याद करते हुए कहते हैं,
शहबाज शरीफ को पाकिस्तान सेना का पसंदीदा माना जाता है. 3 बार पंजाब के मुख्यमंत्री का कार्यकाल संभालने के दौरान चीन के साथ उनकी करीबी भी देखी गई है. उन्होंने अपने मुख्यमंत्री के कार्यकाल के दौरान चीनी सरकार के प्रोजेक्ट चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर में व्यक्तिगत भागीदारी निभाई थी. चीनी अधिकारियों ने कई बार उन्हें इसके लिए वाहवाही भी की थी.
इसके अलावा उन्हें अमेरिका का नजदीकी भी माना जाता है. हाल ही में एक इंटरव्यू में शहबाज शरीफ ने कहा था कि पाकिस्तान की बेहतरी या बदतरी अमेरिका पर निर्भर करता है. पाकिस्तान की बागडोर संभालने के साथ ही शहबाज शरीफ के सामने बढ़ती महंगाई और विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट से निपटने की चुनौती होगी.
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