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पिछले दिनों तालिबान (Taliban) के एक लड़ाके ने अफगान लोक गायक फवाद अंदराबी (Fawad Andrabi) की गोली मारकर हत्या कर दी. रिपोर्ट के मुताबिक, उनको घर से खींचकर बाहर खेतों में ले जाया गया उसके बाद हत्या की गई. उनके बेटे जवाद अंदराबी ने द एसोसिएटेड प्रेस को बताया कि वो निर्दोष थे. वो एक गायक थे सिर्फ और सिर्फ लोगों के मनोरंजन के लिए काम किया करते थे. तालिबानियों ने उनके सिर में गोली मारकर उनकी हत्या कर दी.
यह पहली घटना नहीं है जिससे तालिबान की कथनी और करनी में फर्क दिख रहा है बल्कि 15 अगस्त के बाद होने वाली इस तरह की तमाम घटनाएं इस बात की गवाह हैं. आइए देखते हैं तालिबान की कथनी और करनी में अंतर के सात उदाहरण.
अमेरिकी सेना द्वारा अफगानिस्तान में पिछले 12 सालों से डेटाबेस बनाने की प्रक्रिया चल रही थी. इसमें उन अफगान नागरिकों का डेटा भी है जो पिछले कई सालों से अमेरिकी सेना की किसी न किसी रूप में मदद कर रहे थे, जिसमें ड्राइवर, नर्स और ट्रांसलेटर भी शामिल हैं. अमेरिका ने 2009 में तीन लाख अफगान नागरिकों का डेटा इकट्ठा किया था, इनमें सैनिकों और जेल में बंद कैदियों का भी डेटा शामिल है.
तालिबान अब इस डेटाबेस की मदद से ऐसे लोगों को निशाना बना रहा है जिन्होंने अमेरिकी सेना की मदद की थे. जबकि उसने वादा किया था कि सबको आम माफी दी जाएगी.
आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के चीफ मसूद अजहर और तालिबानी नेतृत्व से पिछले दिनों मुलाकात की खबर सामने आयी थी. अफगानिस्तान के कांधार में मसूद अजहर ने तालिबान के पॉलिटिकल विंग के चीफ मौलाना अब्दुल गनी बरादर से मुलाकात की और मदद मांगी है. अजहर एक घोषित आतंकवादी है. जबकि तालिबान ने वादा किया है कि वो अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल आतंकी कार्रवाई के लिए नहीं होने देगा.
पिछले दिनों टोलो न्यूज की पत्रकार बेहेस्ता अर्गंद ने तालिबानी प्रवक्ता का इंटरव्यू किया था. इस इंटरव्यू के साथ बेहेस्ता किसी तालिबानी प्रवक्ता का इंटरव्यू करने वाली पहली महिला बनी थीं. इस इंटरव्यू की चर्चा पूरी दुनिया में हुई. लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने अफगानिस्तान छोड़ दिया है और देश छोड़ने का कारण उन्होंने तालिबान से डर बताया.
सलीमा मजारी अफगानिस्तान की पहली महिला गवर्नर हैं जिनको तालिबान ने पिछले दिनों गिरफ्तार किया. सलीमा पिछले कुछ समय से तालिबान का विरोध करती नजर आई थीं और तालिबान का सामना करने के लिए हथियार उठाया था. गौरतलब है कि तालिबान ने अपने बयान में महिलाओं को राजनीति में शामिल करने की भी बात कही थी, लेकिन सलीमा जाफरी की गिरफ्तारी तालिबान ने ही की. तालिबान ने आम माफी की भी बात कही थी लेकिन सलीमा को गिरफ्तार किया गया.
अफगानिस्तान से ऐसी तमाम तस्वीरें आती ही रहती हैं जिसमें तालिबान का डर साफ तौर पर देखा जा सकता है. पिछले दिनों सोशल मीडिया पर ऐसी तस्वीरें वायरल हो रही थीं जिसमें ब्यूटी पार्लरों या सार्वजनिक जगहों पर बनी महिलाओं की तस्वीरों पर कालिख की पुतीई की जा रही है.
पिछले दिनों सोशल मीडिया पर एक वीडियो खूब वायरल हुआ था. वीडियो में रेडियो टेलीविजन अफगानिस्ता (RTA) की महिला पत्रकार शबनम खान डवराना तालिबान द्वारा किए गए व्यवहार के बारे में बता रही थीं. वीडियो में पत्रकार ने बताया था कि मैं ऑफिस गई लेकिन दुर्भाग्य से मुझे ऑफिस के अंदर नहीं जाने दिया गया. उन्होंने बताया कि मैंने अपना आई-कार्ड दिखाया लेकिन मुझसे कहा गया कि अब निजाम बदल चुका है अब मैं ऑफिस में काम नहीं कर सकती.
अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद लोगों में डर इस कदर भर गया कि अफगान नागरिक किसी भी तरह से वहां से निकलना चाहते थे. 18 अगस्त को काबुल एयरपोर्ट से दिल दहला देने वाली तस्वीरें सामने आई थीं, जिसमें ये साफ तौर पर देखा जा सकता था कि लोग परेशान हैं और किसी भी तरह फ्लाइट पर सवार होकर देश से निकलना चाहते हैं. तालिबान की तरफ से एयरपोर्ट पर गोलियां भी चलाई जा रही थी. पुरुष, महिलाएं व बच्चे सभी बचकर निकलने की कोशिश कर रहे थे.
वैश्विक स्तर पर नागरिकों और खास तौर से महिलाओं के अधिकारों से संबंधित उठने वाले सवालों का जवाब देते हुए तालिबान ने कहा था कि यह बदला हुआ तालिबान है. नया तालिबान सबके अधिकारों को सुनिश्चित करेगा और महिलाओं को काम करने की अनुमति भी दी जाएगी. तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने कहा था कि महिलाओं को काम करने की छूट दी जाएगी, मौजूदा वक्त का तालिबान पहले से काफी बदल चुका है, इसलिए किसी को परेशान होने की जरूरत नहीं है.
लेकिन सवाल ये उठता है कि अफगानिस्तान में पिछले 15 अगस्त के बाद से जो भी घटनाएं सामने आ रही हैं क्या उससे लगता है कि तालिबान नागरिकों के अधिकारों का ख्याल रख रहा है या ये सिर्फ एक कथनी मात्र है.
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