अफगानिस्तान (Afghanistan) की सत्ता में वापसी के दो सप्ताह से भी कम समय में तालिबान (Taliban) की स्वीकृति का पहला संकेत दिखा है. अगस्त महीने के लिए भारत की अध्यक्षता वाले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने अपने बयान के उस पैराग्राफ से तालिबान का संदर्भ हटा दिया है, जिसमें अफगान समूहों से आतंकवादियों का समर्थन नहीं करने की बात कही गयी थी.
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा यह पहला संकेत है कि 2 दशक बाद अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज तालिबान का अब वैश्विक बहिष्कार नहीं हो सकता है.
11 दिन में बदल गयी तालिबान पर UNSC की भाषा
काबुल पर तालिबान के कब्जे के एक दिन बाद,16 अगस्त को, संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने UNSC की ओर से एक बयान जारी किया, जिसमें यह पैराग्राफ शामिल था:
“सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने अफगानिस्तान में आतंकवाद का मुकाबला करने के महत्व की पुष्टि की है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अफगानिस्तान के क्षेत्र का इस्तेमाल किसी भी देश को धमकी देने या हमला करने के लिए नहीं किया जाये, और न ही तालिबान और न ही किसी अन्य अफगान समूह या व्यक्ति को किसी अन्य देश के क्षेत्र में सक्रिय आतंकवादियों का समर्थन करना चाहिए.”
इसके बाद काबुल एयरपोर्ट पर हुए आत्मघाती हमले के एक दिन बाद, 27 अगस्त को टीएस तिरुमूर्ति - फिर से UNSC के अध्यक्ष के रूप में - एक बयान जारी किया जिसमें इस हमले की निंदा की गई. इस बार भी 16 अगस्त के बयान को ही दुहराया गया लेकिन तालिबान का नाम नहीं लिया गया.
“सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने अफगानिस्तान में आतंकवाद का मुकाबला करने के महत्व की पुष्टि की है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अफगानिस्तान के क्षेत्र का इस्तेमाल किसी भी देश को धमकी देने या हमला करने के लिए नहीं किया जाये , और न ही किसी अन्य अफगान समूह या व्यक्ति को किसी अन्य देश के क्षेत्र में सक्रिय आतंकवादियों का समर्थन करना चाहिए.”
तालिबान का नाम नहीं लेना दर्शाता है कि संगठन को शायद भारत सहित UNSC के सदस्यों द्वारा अफगानिस्तान के प्रतिनिधि के रूप में देखा जा रहा है.
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