advertisement
अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने 19 जुलाई को चीन (China) पर दुनियाभर में बढ़े साइबर हमलों (cyber attacks) और माइक्रोसॉफ्ट ईमेल एप्लीकेशन पर हमला करने का आरोप लगाया. अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों ने देश और उसके सहयोगी देशों की साइबरस्पेस संपत्तियों पर बड़े खतरे को लेकर नई एडवाइजरी जारी की है. एजेंसियों का कहना है कि इन संपत्तियों को चीन-समर्थित साइबर गतिविधियों और रैनसमवेयर हमलों (ransomware attacks) से खतरा है. हालांकि, चीन ने इन आरोपों को निराधार बताया है.
एक संगठित ऐलान में जॉइंट साइबरसिक्योरिटी एडवाइजरी (CSA) जारी की गई. इसमें कहा गया कि सरकारी साइबर एक्टर्स राजनीतिक, आर्थिक, सैन्य, शैक्षिक और क्रिटिकल इंफ्रास्ट्रक्चर को निशाना बनाकर संवेदनशील जानकारी, नई तकनीक, इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी चोरी करते हैं.
जॉइंट एडवाइजरी खुलासा करती है कि कैसे कुछ साइबर एक्टर्स मैनेज्ड सर्विस प्रोवाइडर्स, सेमीकंडक्टर कंपनियां, डिफेंस इंडस्ट्रियल बेस (DIB), यूनिवर्सिटी और मेडिकल संस्थान जैसे सेक्टर को निशाना बनाते हैं. एडवाइजरी में कहा गया कि ये साइबर ऑपरेशन चीन के आर्थिक और सैन्य विकास कार्यक्रमों को समर्थन देते हैं.
Chinese State-Sponsored Cyber Operations: Observed TTPs नाम की इस एडवाइजरी में चीन-समर्थित साइबर एक्टर्स की 50 तरकीबों, तकनीक और प्रक्रिया का विवरण दिया गया है, जिसके इस्तेमाल से वो अमेरिका और सहयोगी देशों की संपत्ति पर हमला करते हैं.
ये जॉइंट एडवाइजरी G7 देशों के उस बयान के बाद आई है, जिसमें उन्होंने जानकारी से छेड़छाड़, गलत जानकारी और साइबर हमलों से लोकतंत्र और आजादी को खतरे पर जोर दिया था.
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लीजियान ने कहा कि ये आरोप राजनीतिक लक्ष्यों के लिए 'अपने मन से बनाए गए हैं.' लीजियान ने कहा, "चीन इन्हें कभी स्वीकार नहीं करेगा. चीन साइबरहमलों में शामिल नहीं होता है और जो तकनीकी जानकारी अमेरिका ने दी है, उससे सबूत साफ नहीं होते."
वाशिंगटन में चीनी दूतावास के प्रवक्ता लियु पेंग्यू ने इन आरोपों को 'गैरजिम्मेदाराना' बताया है.
अमेरिका और यूके, कनाडा जैसे उसके करीबी सहयोगियों ने चीन के खिलाफ अपनी भाषा कठोर रखी है. इन देशों ने चीन को हैकिंग और साइबरहमलों के लिए सीधे दोषी ठहराया है. लेकिन बाकी देशों ने ऐसा नहीं किया है.
NATO ने सिर्फ कहा है कि उसके सदस्य उन आरोपों को 'स्वीकार' करते हैं, जो अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने चीन पर लगाए हैं. EU ने कहा कि वो चीनी अधिकारियों से अपील करेंगे कि 'अपने क्षेत्र से खतरनाक साइबर गतिविधियों पर रोक लगाएं.' EU का बयान चीनी सरकार के लिए खुद को बेगुनाह बताने की गुंजाइश छोड़ता है.
अमेरिका ने हाल के महीनों में रूस को भी रैनसमवेयर हमलों के लिए दोषी ठहराया है. चीन के साथ साउथ चाइना सागर, हॉन्ग कॉन्ग, ट्रेड जैसे कई मुद्दों पर पहले से ही अमेरिका का तनाव चल रहा है. जो बाइडेन सरकार चीन से आमने-सामने की तकरार मोल लेने के मूड में दिखती है और साइबर गतिविधियों को लेकर तीखी भाषा में चीन को आड़े हाथ ले रही है.
अगर चीन पर भारत और अमेरिका की प्रतिक्रिया की तुलना की जाए तो देखेंगे कि अमेरिका सिर्फ शब्दों के आडंबर से जवाब नहीं दे रहा है. गलवान झड़प के बाद भारत सरकार ने चीन के भारतीय क्षेत्र में घुसने की बात को गलत बताया था और कई चीनी ऐप्स बैन कर दिए. इसे भारत का चीन को कड़ा जवाब कहा गया. जबकि अमेरिका चीनी नेताओं और अफसरों पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने में नहीं हिचक रहा है और अंतरराष्ट्रीय मंच पर साफ शब्दों में उसकी कथित गतिविधियों की आलोचना कर रहा है.
पेगासस हैकिंग को लेकर भी सरकार कह रही है कि इस जासूसी में उसका हाथ नहीं है लेकिन किसका है ये भी नहीं बता रही. जांच कराने से भी इंकार कर रही है. पेगासस पर इजरायल से एक सवाल तक नहीं हो रहा.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)