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वीडियो प्रोड्यूसर: मौसमी सिंह
वीडियो एडिटर: संदीप सुमन/अभिषेक शर्मा
यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को कोई तगड़ा कॉम्पिटिशन दे रहा है. नहीं किसी और पार्टी का सीएम नहीं. बीजेपी का ही एक और सीएम, हम बात कर रहे हैं असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा. जी नहीं ये कॉम्पिटिशन विकास को लेकर नहीं हो रहा, हो रहा है ''हिंदुत्व का एजेंडा'' लागू करने को लेकर. वैसे इस रेस में शिवराज सिंह चौहान भी उतर चुके हैं लेकिन सरमा फिलहाल सरपट भागते दिखते हैं.
सरमा, शिवराज और योगी कैसे एक दूसरे को कॉम्पिटिशन दे रहे हैं, जरा क्रोनोलॉजी समझिए.
सबसे पहले बात करते हैं यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की. गोरखधाम पीठ के महंत और गोरखपुर सांसद रहते हुए योगी ने अपनी छवि एक प्रखर हिंदुत्ववादी नेता के रूप में बनाई. उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने पिछले साढ़े 4 सालों में अपनी हिंदुत्ववादी छवि को और मजबूत किया है. 'लव जिहाद' कानून हो, जनसंख्या नियंत्रण कानून का ड्राफ्ट हो या फिर रामनगरी अयोध्या के विकास का खाका, योगी की 'हिंदुत्ववादी' छवि को लेकर उनके समर्थक इतने आश्वस्त दिखते हैं कि उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विकल्प भी बताया जाने लगा है.
उन्होंने हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा था कि 'अब्बा जान' बोलने वाले लोग पहले आम लोगों का राशन हड़प जाते थे, उत्तर प्रदेश में उनकी सरकार में इसपर रोक लगी है. उनका यह बयान विवादित तो है, लेकिन साथ ही 'फायरब्रांड' हिंदू नेता की अपनी इमेज को और मजबूत करने का प्रयास भी है.
शायद ये योगी की छवि का ही असर था कि बीजेपी और संघ के शीर्ष नेतृत्व से महीनों तक चली अनबन की खबरों के बीच भी उनकी कुर्सी सुरक्षित रह गई, जबकि इसी बीच बीजेपी ने उत्तराखंड, असम, कर्नाटक और गुजरात में अपने सीएम बदल दिए.
योगी आदित्यनाथ को कड़ी टक्कर देने में जुटे हैं हिमंता बिस्वा सरमा. बीजेपी की पिछली सरकार में राज्य में कई अहम मंत्रालय संभालने वाले हिमंता बिस्वा सरमा ही थे, जो शिक्षा मंत्री के तौर पर राज्य में मदरसों और संस्कृत स्कूलों को आम सरकारी स्कूलों की तरह संचालित करने के लिए कानून लेकर आए थे. उस वक्त उन्होंने कहा था कि धार्मिक शिक्षा देना सरकार का काम नहीं है। जून में असम के नए मुख्यमंत्री ने ऐलान किया कि उनकी सरकार अल्पसंख्यक आबादी की वृद्धि दर कम करने को लिए कदम उठाएगी। इसी क्रम में उन्होंने राज्य में मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ बैठक भी की थी.
असम सीएम सीएए को लागू करने को लेकर अपनी प्रतिबिद्धता कई मौकों पर पहले भी जता चुके हैं. अब बात करते हैं इसी साल 23 सितंबर को असम के दरांग जिले में अतिक्रमण हटाने गई पुलिस और स्थानीय लोगों में भिड़ंत की. इस हिंसा में पुलिस फायरिंग में एक बच्चे समेत 2 लोग मारे गए। मारे गए दोनों लोग अल्पसंख्यक समुदाय से थे, जिसके बाद हिमंता सरकार पर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के आरोप लग रहे हैं.
सीएम ने मामले की जांच के आदेश भी दिए। लेकिन फिर कह दिया वो इलाका ही खराब है, मर्डर होते रहते हैं. अगले ही दिन उन्होंने पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर लोगों को उकसाने का आरोप भी लगाया. मुख्यमंत्री बनने के कुछ महीनों में ही जिस तरह तेजी से वे इस एजेंडे को लोगू करने में जुटे हुए हैं, वह पार्टी के शीर्ष नेतृत्व और संघ को खुश करने की कोशिश से ज्यादा अपनी छवि एक पूर्व कांग्रेसी नेता से इतर एक प्रखर हिंदुत्ववादी क्षत्रप के रूप में स्थापित करने की मालूम पड़ती है.
रेस में पीछे मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान भी नहीं छूटना चाहते. शिवराज, अपने नए कार्यकाल में बिल्कुल अलग अंदाज में दिख रहे हैं. उनकी सरकार पिछले साल ही कथित 'लव जिहाद' और धर्मांतरण रोकने के लिए कानून लेकर आई है. कुछ महीन पहले उन्होंने 'लव जिहाद' को लेकर सख्त लहजे में कहा था ऐसी कोशिश करने वालों को वे बर्बाद कर देंगे. सार्वजनिक मंच से शिवराज के ऐसे धमकी भरे लहजे ने कई लोगों को हैरान किया. एक बयान में बोल बैठे-अपराधियों को जमीन में गाड़ दूंगा...ये सुनकर यूपी की ठोको नीति की याद आ गई. हाल फिलहाल एमपी में बीए के कोर्स में रामचरित मानस पढ़ाने वाली खबर आपने सुन ही ली होगी.
हाल ही में इंदौर में एक मुस्लिम चूड़ीवाले की पिटाई के वीडियो ने लोगों को झकझोर दिया था, लेकिन पूरे मामले में शिवराज सरकार की प्रतिक्रिया को लेकर सवाल खड़े हुए. शिवराज के मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने मामले में कहा था कि युवक धर्म छिपाकर चूड़ी बेच रहा था, इसलिए उसकी पिटाई हुई. उन्होंने पीटे गए युवक पर भी केस दर्ज करने का आदेश दिया था. इसके बाद काफी हंगामा हुआ और शिवराज सरकार पर युवक के मुस्लिम होने की वजह से निशाना बनाने के आरोप लगे। बाद में नाबालिग से छेड़छाड़ के आरोप में युवक की गिरफ्तारी भी हुई.
अब तक उनकी छवि एक उदारवादी नेता की मानी जाती थी. 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया की मदद से मध्य प्रदेश की सत्ता में वापसी के बाद सियासी तौर पर शिवराज अब पहले जैसै मजबूत नहीं रहे. जिस तरह से बीजेपी ने पिछले 6 महीने में कई राज्यों में अपक्षेाकृत कमजोर मुख्यमंत्रियों को बदला है, शिवराज इस वजह से भी अपनी कुर्सी को लेकर आशंकित हो सकते हैं. हो सकता है कि उनका नया रूप अपनी उसी 'कमजोर मुख्यमंत्री' के ठप्पे से बचने की कोशिश हो.
बीजेपी का सबसे बड़ा झंडाबरदार कौन? इस प्रतियोगिता में वो भी शामिल थे जो कोरोना की प्रचंड दूसरी लहर में भी उत्तराखंड में कुंभ कराने पर आमादा थे. गुजरात से लेकर कर्नाटक तक ये पैटर्न नजर आ रहा है. खैर बेहतर होता ये तमाम सीएम तरक्की और इंसाफ देने में एक दूसरे को पछाड़ने की कोशिश करते.
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