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DUSU Election| ढोल , नारेबाजी, पर्चे और वादे... 3 साल बाद डीयू में चुनाव| Photos
DUSU Elections: एक छात्र ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि, "चाहे हम जिसे भी चुनें, यूनियनों की गुंडागर्दी जारी रहेगी."
वर्षा श्रीराम
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ढोल की थाप, नारेबाजी, पर्चे और वादे... 3 साल बाद DUSU में चुनाव | तस्वीरें
क्विंट हिंदी
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ढोल की थाप, जोर-जोर से नारेबाजी, हवा में फेंके गए पर्चे, कार के हॉर्न और पुलिस के सायरन की आवाज- दिल्ली विश्वविद्यालय का नॉर्थ कैंपस बहुप्रतीक्षित दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU Elections) के चुनाव के उत्साह में सराबोर है.
वोटिंग शुक्रवार, 22 सितंबर को होगी. कोविड प्रतिबंधों के कारण तीन साल के बाद चार सदस्यीय संघ के लिए DUSU के चुनाव रहे हैं.
2019 में, RSS के समर्थन वाली अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) ने चार में से तीन पद जीते, जबकि सचिव पद पर नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) ने जीत हासिल की थी.
क्विंट हिंदी चुनाव का माहौल जानने के लिए कैंपस ऑफ लॉ सेंटर (CLC), नॉर्थ कैंपस और सत्यवती कॉलेज पहुंचा.
ढोल की थाप, जोर-जोर से नारेबाजी, हवा में फेंके गए पर्चे, कार के हॉर्न और पुलिस के सायरन की आवाज. दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) चुनाव शुक्रवार, 22 सितम्बर को होने वाले हैं. DUSU के चुनाव कोविड प्रतिबंधों के कारण तीन साल बाद हो रहे हैं.
(फोटो: वर्षा श्रीराम/क्विंट हिंदी)
इस साल जो चार प्रमुख संगठन मैदान में हैं, उनमें RSS समर्थित ABVP और कांग्रेस की NSUI, वाम दल समर्थित AISA और स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) शामिल हैं. पिछले पांच चुनावों में चार पदों के लिए खींचतान ABVP और NSUI के बीच रही है.
(फोटो: वर्षा श्रीराम/क्विंट हिंदी)
हॉस्टल/पीजी किराया, कॉलेज फीस से लेकर कैंपस के बुनियादी ढांचे और महिला सुरक्षा- ये ऐसे मुद्दे हैं जिसकी गूंज पूरे कैंपस में है. LLB तीसरे वर्ष की छात्रा सुचिता के लिए, कॉलेज में मुख्य मुद्दा उचित बुनियादी ढांचे की कमी है. उन्होंने क्विंट हिंदी से कहा, "हमारा कॉलेज पुराना है. हमारे क्लास और लाइब्रेरी में वाई-फाई काम नहीं करता, इस वजह से हम रिसर्च करने में असमर्थ हैं."
(फोटो: वर्षा श्रीराम/क्विंट हिंदी)
रामजस कॉलेज के बीए राजनीति विज्ञान के एक छात्र रवि कुमार (दाएं) ने कहा, उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के मूल निवासी के रूप में, डीयू जाना हमेशा से मेरा सपना रहा है, क्योंकि यह हमारे लिए किफायती था, लेकिन मेरे पीजी का किराया लगभग 10,000 रुपये प्रति माह है, जो मेरे परिवार के लिए एक बड़ा बोझ है. इसके अलावा, मुझे अपने आने जाने का खर्च भी देखना पड़ता है. ये हम सभी छात्रों के लिए एक परेशानी है जो निम्न-आर्थिक पृष्ठभूमि से आते हैं. मुझे उम्मीद है कि DUSU संबंधित अधिकारियों से बात करेगा और हमारा किराया कम करवाएगा."
(फोटो: वर्षा श्रीराम/क्विंट हिंदी)
क्विंट हिंदी ने जिन छात्राओं से बात की, उनमें से अधिकांश महिला छात्रों के लिए उचित शौचालय के बुनियादी ढांचे की कमी और सुरक्षा मुख्य चिंताएं थीं. हिंदू कॉलेज में बीए अर्थशास्त्र तृतीय वर्ष की छात्रा मारिया ने बताया, "शौचालय ठीक से साफ नहीं किया जाता और पब्लिक टॉयलेट जैसा दिखता है. मुझे उपयोग करने में भी परेशानी होती है. यदि कॉलेज हमारी फीस के रूप में इतनी बड़ी रकम ले रहे हैं, तो हम इन बुनियादी आवश्यकताओं को पाने के हकदार हैं."
(फोटो: वर्षा श्रीराम/क्विंट हिंदी)
हरियाणा की मूल निवासी पूजा बेनीवाल ने कहा कि वह चुनाव अभियान का हिस्सा बनने के लिए उत्साहित हैं. उन्होंने कहा, "मैं हरियाणा के एक छोटे से शहर से आती हूं, और हालांकि मैं छात्र राजनीति के बारे में ज्यादा नहीं जानती, लेकिन यह देखना अच्छा है कि हर कोई इसमें कितना शामिल है. इसलिए, मैंने सोचा कि मुझे भी मदद करनी चाहिए."
(फोटो: वर्षा श्रीराम/क्विंट हिंदी)
CLC में द्वितीय वर्ष के एक छात्र ने अपनी पहचान उजागर नहीं करने की शर्त पर कहा, "चाहे हम जिसे भी चुनें, यूनियनों की गुंडागर्दी जारी रहेगी." उसने मजाक में कहा, "मुझे बस खुशी है कि मुझे एक दिन की छुट्टी मिल गई.'
(फोटो: वर्षा श्रीराम/क्विंट हिंदी)
डूसू चुनाव प्रचार मानदंडों के उल्लंघन के लिए आलोचना का शिकार रहा है. सार्वजनिक दीवारों के इंच-इंच पर पोस्टर और फ्लायर्स चिपकाने के अलावा इसमें कथित हिंसा की भी खबरें आती रहती हैं.
(फोटो: वर्षा श्रीराम/क्विंट हिंदी)
डीयू में आर्ट फैकल्टी के बाहर अपने प्रचार अभियान के दौरान ABVP के उम्मीदवार.
(फोटो: वर्षा श्रीराम/क्विंट हिंदी)
पांच महिलाएं पर्चे उठाकर बोरे में भर रहीं थीं. पश्चिम बंगाल की एक प्रवासी ने बताया, "पिछले एक हफ्ते में, हमने इस इलाके से हजार से अधिक पर्चे इकट्ठे किए हैं. हम लोग इस पूरे इलाके में फैल जाते हैं और सड़कों से पर्चे इकट्ठा करते हैं. हम इन्हें बेचते हैं और पैसा कमाते हैं."