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कोरोना के बाद काम का संकट,गर्क में बीत रहा कनॉट प्लेस के धोबीवालों का जीवन-Photos

'गर्क' (Garq), एक उर्दू शब्द है जिसका अर्थ है डूबना, जो की धोबी के नौकरी की स्थिति दर्शाता है.

सामिया चोपड़ा & कुलसुम फैज
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<div class="paragraphs"><p>ताजी धुली हुई चादरें ट्रेडिशनल तरीके से सूख रही हैं</p></div>
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ताजी धुली हुई चादरें ट्रेडिशनल तरीके से सूख रही हैं

(फोटो: सामिया चोपड़ा और कुलसुम फैज)

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'गर्क' (Garq), एक उर्दू शब्द है जिसका अर्थ है डूबना, जो की धोबी के नौकरी की स्थिति दर्शाता है. देवी प्रसाद सदन धोबी घाट भारत की राजधानी नई दिल्ली (New Delhi) में भीड़-भाड़ भरे कनॉट प्लेस के बीच में है - और अभी भी बहुत से लोग इसके बारे में नहीं जानते हैं.

देवी प्रसाद सदन धोबी घाट भारत की राजधानी नई दिल्ली की भीड़-भाड़ वाले क्षेत्र क्नॉट प्लेस के बीच में है - और अभी भी बहुत से लोग इसके बारे में नहीं जानते हैं. यहां पूर्वी उत्तर प्रदेश से आने वाले धोबी कपड़े धोते हैं.

(फोटो: सामिया चोपड़ा और कुलसुम फैज)

'गर्क', एक उर्दू शब्द है जिसका अर्थ है डूबना, गरक शब्द नौकरी की प्रकृति और उसकी वर्तमान स्थिति दोनों को दिखा रहा है. टेक्नोलाॅजी के आने के साथ, हाथ से किए जाने वाले काम की जगह अब मशीन ले चुकी है.

(फोटो: सामिया चोपड़ा और कुलसुम फैज)

सुबह के 4 बजे किरण देवी, प्रसाद सदन धोबी घाट के लिए निकल जाती हैं. वे अपने जीवन के 87 वर्षों में से 50 वर्षों तक हर दिन घाट जाती हैं. आज, उनका एक बेटा, जय चंद, घाट पर काम करता है.

(फोटो: सामिया चोपड़ा और कुलसुम फैज)

देवी कहती हैं, ''1886 में, यह एक कच्चा घाट था.'' पहले, यह एक खुला एरिया था और किसी सरकारी एजेंसी के अंडर नहीं था. यह पेशा उन्हें अपने माता-पिता से विरासत में मिला है जिसे उन्होंने अभी तक जारी रखा हैं.''

(फोटो: सामिया चोपड़ा और कुलसुम फैज)

धोबी घाट में हर कपड़ा हाथ से धुलता है. वह बताती हैं, "हम कपड़ों को 'हौदे ' (सिंक) में ले जाते हैं और फिर ब्लीच में पानी में डूबोते हैं और फिर निचोड़ लेते हैं." 

(फोटो: सामिया चोपड़ा और कुलसुम फैज)

कपड़े धोने की पूरे प्रोसैस में कड़ी मेहनत की काफी आवश्यकता होती है.

(फोटो: सामिया चोपड़ा और कुलसुम फैज)

संजय ने विरासत में मिले पेशे को जारी रखा है. 50 वर्षीय संजय ने आगे कहा, ''यह वह काम है जो मुझे अपने माता-पिता से विरासत में मिला है.''

(फोटो: सामिया चोपड़ा और कुलसुम फैज)

60 साल की कौशल्या का कहना हैं, "जहां तक ​​उन्हें याद है, वे हर दिन घाट पर जाती रही हैं."

(फोटो: सामिया चोपड़ा और कुलसुम फैज)

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लॉन्ड्री एक ऐसा पेशा है जो नजरों से बहुत दूर है, खासकर हर वो घर में जहां ऑटो वाशिंग मशीन हैं.

(फोटो: सामिया चोपड़ा और कुलसुम फैज)

धोबी, सरकार द्वारा दिए गए मकान में रहते हैं, जिसके लिए उन्हें लाइसेंस की जरूरत होती है.

(फोटो: सामिया चोपड़ा और कुलसुम फैज)

जय चंद कनौजिया, जो बचपन से घाट पर काम कर रहे हैं, शिकायत करते हैं कि कोविड-19 महामारी के बाद से, उन्हें कम कपड़े धोने के लिए मिल रहे हैं. उनको मुख्य रूप से "करोल बाग, पहाड़गंज , ब्यूटी पार्लरों और होटलों से कपड़े मिलते हैं.

(फोटो: सामिया चोपड़ा और कुलसुम फैज)

कोविड-19 के कारण आई रुकावट के बाद से काम कम हो गया है. घरों से कपड़ों का आना बंद हो गया है और वर्करस  ज्यादातर बिना काम के बैठे रहते हैं.

(फोटो: सामिया चोपड़ा और कुलसुम फैज)

कई धोबियों का ये कहना है कि कोविड-19 के बाद घरों से कपड़े आना बंद हो गए हैं.

(फोटो: सामिया चोपड़ा और कुलसुम फैज)

70 साल के महावीर धोबी ने अभी भी घाट पर काम करना जारी रखा हैं.

(फोटो: सामिया चोपड़ा और कुलसुम फैज)

महावीर के हाथों से देखा जा सकता है, सभी धोबियों को अपने शारीरिक श्रम का खामियाजा भुगतना पड़ता है. ब्लीच के साथ हाॅर्ड पानी भी उनके हाथ की दशा खराब कर देता है.

(फोटो: सामिया चोपड़ा और कुलसुम फैज)

ताजी धुली हुई चादरें सुबह की धूप में सूखती हुई दिखाई दे रही हैं.

(फोटो: सामिया चोपड़ा और कुलसुम फैज)

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