Gondi Painting GI tag: मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के डिंडौरी जिले (Dindori) के गोंडी पेटिंग को GI टैग मिला है. बता दें कि डिंडोरी जिले की पहचान आदिवासी कलाकारों के रूप में होती है, इस जिले से 3 ऐसे कलाकार हैं, जो पद्मश्री अवार्ड पाकर डिंडोरी के साथ-साथ पूरे मध्यप्रदेश का नाम रौशन कर चुके है. उनमें भज्जू श्याम,दुर्गा बाई व्याम और अर्जुन सिंह धुर्वे शामिल है.आइये जानते हैं क्या है गोंड पेंटिंग और GI टैग मिलने पर आदिवासी कलाकारों ने क्या कहा?

<div class="paragraphs"><p>(फोटोःफेसबुक/भज्जू श्याम)</p></div>

डिंडोरी के गोंडी पेटिंग को GI टैग मिला है.

(फोटोःफेसबुक/भज्जू श्याम)

GI टैग मिलने के बाद  आदिवासी कलाकारों में खुशी का माहौल है.

(फोटोःफेसबुक/भज्जू श्याम)

पाटनगढ़ निवासी व पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित भज्जू श्याम ने इसे गर्व का क्षण बताया है. उन्होंने कहा कि अब इससे बाहरी लोग आदिवासी कलाकारों की कला का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे और इसके लिए उन्हे इजाजत लेनी पड़ेगी.

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क्या है गोंड पेंटिंगः आदिवासी कलाकार व पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित भज्जू श्याम इसके बारे में बताते है कहा कि, गोंड पेंटिंग में प्रकृति,पेड़ पौधे, चांद सूरज, नदी नाले, देवी देवता,जीव जंतु जिनके आदिवासी मानते हैं, जानते हैं, पूजा करते है और उनके बीच रहते हैं, इन सबका पेंटिंग में समावेश रहता है. साथ ही राजा कैसे लड़ते थे, मंत्र-तंत्र की शक्तियों का इस्तेमाल कैसे होता था. यह सब पेंटिंग के जरिये बताते हैं.

फोटोःफेसबुक/भज्जू श्याम)

सरकार द्वारा डिंडोरी की गौंड पेंटिंग को GI टैग मिलने पर कलेक्टर डिंडोरी विकास मिश्रा ने कहा कि, 'डिंडोरी गोंड पेंटिंग का मेन सोर्स रहा है. यहां के कलाकारों का विस्तार जगह-जगह हुआ है. अब तक जिले की ऐसी महिला कलाकार और उनका परिवार जिन्हें लोग अन्य क्षेत्रों में काम करवाने श्रम बेस पर लें जाते और लेबर की तरह भुगतान किया करते थे.'

(फोटोः क्विंट हिंदी)

विकास मिश्रा ने आगे कहा कि, गोड़ी पेंटिंग के लिए जिला प्रशासन ने सेंटर आफ पॉइंट अमरकंटक को बनाया है. साथ ही जबलपुर के बड़े बड़े होटलों को हम रुट कर रहे हैं, ताकि डिमांड के तहत उत्पाद बना सके. इसमें NRLM और NULM के साथ मिलकर सस्ते मॉडल में लाने का फैसला किया है. जिनमें ग्रीटिंग कार्ड, बैग, मोबाइल कवर, खिलोने आदि है.

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पाटनगढ़ में वैसे तो घर- घर आदिवासी प्रधान समाज के कलाकार हैं जो काम और पारिश्रमिक की कमी के चलते दूसरे राज्यों की ओर रुख कर लेते थे. ऐसे कलाकरों का फायदा बाहरी लोग मजदूर के रूप में करते थे, जिन्हें पारिश्रमिक भी रोजाना की मजदूरी के हिसाब से देते थे,ऐसे कलाकरों को न नाम मिलता था और न ही कला का उचित दाम.

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जियो गोंड कलाकृति सहकारी समिति मर्यादित संस्था गांव में ही महिलाओं को रोजगार उपलब्ध करवा रही है,  जिसमें फिलहाल 20 महिलाएं कार्यरत है जो साड़ियों, बास की कलाकृति, ढोलक, कपड़ों में पेंटिंग और खिलौने तैयार कर रोजाना आर्थिक लाभ कमा रही है. साथ ही अब GI टैग मिलने पर काम में गति और कलाकारों को नाम मिलेगा.

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जियो गोंड कलाकृति सहकारी समिति मर्यादित पाटनगढ़ में 20 महिलाओं का समूह गोंडी पेंटिंग कर अपना स्वरोगार स्थापित कर रहा है. ये सभी महिलाएं आदिवासी प्रधान समाज की है. जो बास, कपड़े, खिलौने, दीवार में गोंडी कलाकृति करने में माहिर हैं.

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करंजिया जनपद के ग्राम खन्नात क्षेत्र की रहने वाली नरबदिया अर्मो जो बचपन से ही दोनों हाथ पैर से दिव्यांग है. वहीं हाथ पैर न होने के कारण नरबदिया ने  स्कूली शिक्षा हासिल नहीं कर पाई. हालांकि इसके बावजूद उसे  बचपन से ही पेंटिंग में रुचि थी, जो इंसान हाथों से भी साफ सुधरी आकृति नहीं बना पाता उनसे अच्छा नरबदिया अर्मो दांतो से पेंसिल व ब्रश के जरिये ऐसे सधे रूप में देवी देवता, प्रकृति, जीव जंतु, पेड़ पौधे, जल, जंगल की आकृति कागजों में उकेरती है मानो इस  पेंटिंग को पारंगत व्यक्ति ने अपने हाथों से बनाया हो.

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नरबदिया गरीब परिवार से ताल्लुक रखती है और सरकार से उसे दिव्यांग पेंशन और उसकी मां को वृद्धावस्था पेंशन मिलती है, जिससे उनका जीवन यापन चलता है. कुछ मदद उनके चाचा करते हैं. नरबदिया चाहती है कि उन्हें ज्यादा से ज्यादा काम मिले ताकि उनका रोजगार गोंड़ी पेंटिंग के जरिये बेहतर चल सके.

(फोटोः क्विंट हिंदी)

पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित भज्जू श्याम ने कहा कि, भोपाल में 'चिन्हारी' नाम की आदिवासी कलाकारों की संस्था हैं, जो 10 वर्ष पूर्व बनाई गई थी. इस संस्था के सदस्य दिलीप श्याम, सुरेश, जापानी, नंकुसिया श्याम, व्यंक श्याम, राजू श्याम, विजय श्याम सहित अन्य सदस्य हैं जो पाटनगढ़ डिंडोरी के निवासी थे. इनके द्वारा GI टैग के लिए सालों से प्रयास किया गया हैं, जो अब जाकर सफल हुई है.

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हस्तशिल्प श्रेणी में प्रदेश की गोंड पेंटिंग को जीआई टैग प्राप्त हुआ है. बता दें कि जिले के प्रसिद्ध गोंडी कला को  जनगण सिंह श्याम ने 1980 के दशक में पेपर और कैनवास में सबसे पहले उकेरा था.

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हस्तशिल्प कला से बनाई हुई बास की कलाकृति.

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