बीते दिनों से मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) की सियासत चुनावी रंग में रंगना चालू हो चुकी है. इसी हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मध्यप्रदेश का दौरा करेंगे, तो वहीं बीजेपी की सरकार शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई में घोषणाओं के पुल बांधे हुए है. इन सबके बीच बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा 26 मार्च को भोपाल आए हुए थे, और राज्य के सरकारी आलाकमान और संगठन के लोगों से चर्चा के दौरान उन्होंने कुछ खरी-खरी बातें कहीं, जिसके बाद से बीजेपी में इस बार बिखराव के कयासों को दम मिल रहा है.
नड्डा ने जहां बीजेपी के नए कार्यालय के भूमिपूजन में शिरकत की तो वहीं बीजेपी नेताओं की मीटिंग में सामंजस्य की कमी, टीम वर्क के न होने और मैदान पर उतरकर काम करने की नसीहत भी दी है. इसी के बाद 'बीजेपी में सब कुछ ठीक नहीं है' जैसी बातों पर चर्चा बढ़ गई है. दरअसल मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 कई मायनों में अहम और कठिन भी होने की संभावना है.
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बीजेपी और शिवराज सिंह चौहान दोनों ही एंटी इनकंबेंसी यानी की विरोधी लहर से परेशान हैं, और इसलिए समाज के लगभग हर वर्ग को अलग से साधने का प्रयास किया जा रहा है.
जहां एक तरफ बेरोजगारी को लेकर युवाओं में नाराजगी है तो वहीं महिला वोटरों को लुभाने के लिए बीजेपी ने लाडली बहना योजना के तहत महिलाओं को सीधे 1000 रुपए देने की स्कीम लॉन्च कर दी है. हालंकि तमाम स्कीमों, वायदों और घोषणाओं के बाद भी पार्टी के लिए चुनाव इतने आसान नहीं होंगे.
इसी के मद्देनजर राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा ने रविवार को बीजेपी दफ्तर में हुई बैठक में सूबे के प्रमुख नेताओं के समक्ष यह कहा कि ये एडवाइजरी कमेटी नहीं बल्कि फैसलों को जमीन पर उतारने वाली कमेटी है और टीम वर्क की कमी इसमें बाधा बनी हुई है.
टीमवर्क को साधने के लिए बीजेपी नेताओं को एक साथ और तजुर्बेकार नेताओं की सलाह लेकर काम करने के लिए कहा गया है. सूत्रों की मानें तो बीजेपी की इस बैठक में नड्डा ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं पर भरोसा बढ़ाने के लिए कहा है और यह भी कि अफसरों पर पूरी तरह निर्भर रहना मुश्किल खड़ी कर सकता है.
राज्य के एक वरिष्ठ पत्रकार की मानें तो "बीजेपी की जमीनी इकाई और संघ की मशीनरी, दोनों को पहले से दुरुस्त करने की कवायद जोरों पर है." पत्रकार आगे कहते हैं कि
'बिखराव के समीकरणों के चलते बीजेपी बूथ स्तर पर फोकस करने की बात बार बार कर रही है, और यही कारण है कि बूथ को मजबूत करने की बात, बूथ स्तर के नेताओं की बात राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर संगठन के पदाधिकारी दोहरा रहे हैं'.
मध्यप्रदेश में बीजेपी नहीं है एकजुट इसलिए बढ़ रहा केंद्रीय नेतृत्व का दबदबा?
अगस्त 2022 से ही गृहमंत्री अमित शाह, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के मध्यप्रदेश दौरों में काफी बढ़त हुई है. आए दिन कोई न कोई नेता किसी न किसी घोषणा के लिए मध्यप्रदेश पधार रहा है, और इनके बीच राज्य में मुख्यमंत्री बदलने से लेकर नए चेहरों को बढ़ावा देने तक की बातें उछलने लगती हैं. हालांकि, ऐसी किसी कवायद को काफी हद तक जनता के सामने विराम दिया जा चुका है लेकिन आगे बढ़ने की चाह तो कोई भी किसी से नहीं छीप सकता.
मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक दीपक तिवारी ने कहा कि बीजेपी के सामने इस वक्त कई चुनौतियां हैं तो वहीं, कांग्रेस को भी खासा मेहनत करने और संभलकर मेहनत करने की जरूरत है.
"दोनों ही पार्टियों के सामने जो एक जैसी चुनतियां हैं, उनमें से एक है नेताओं के बीच में टकराव, दूसरा है मौजूदा विधायकों के खिलाफ वातावरण और तीसरा है नई लीडरशिप का अभाव. इसमें से नेताओं के बीच का टकराव अक्सर एक तरफ का दिखता है और दूसरे तरफ का दिखता या दिखाया नहीं जाता है लेकिन हालात दोनों ही पार्टियों के लिए चिंताजनक हैं"
बीजेपी के लिए चुनौतियां तमाम
तिवारी आगे कहते हैं कि बीजेपी के लिए खास तौर पर पार्टी के हिसाब से जो चुनौतियां हैं, उनमें से विरोधी लहर, नेताओं के प्रति ऊब, घोषणाओं का जमीन पर क्रियान्वन न होना और युवाओं के बीच में नाराजगी अहम हैं.
"इसके अलावा मध्यप्रदेश के संगठित समूहों की फिर चाहे वो ट्रक एसोसिएशन, कर्मचारियों का संगठन हो, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का समूह हो, ANM वर्कर, शिक्षक संघ हो, या फिर जातिगत समूह जैसे ओबीसी महासभा हो या फिर SC ST समूह हो इनमें सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के लिए गुस्सा है, और ये बीजेपी को चुनाव में बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं."
वहीं राज्य के एक और वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक गिरिजा शंकर शुक्ला का कहना है कि चुनावी परिपेक्ष से अब एंटी इनकंबेंसी और विरोधी लहर जैसी गणित खत्म हो चुकी है और इसका चुनाव पर असर नहीं पड़ेगा.
"मौजूदा वक्त में एंटी इनकंबेंसी की गणित कारगर नहीं है. बीजेपी ने गुजरात में इसको धराशाई किया है. अब चुनौती ये है कि बहुत सारी घोषणाएं जो अभी जारी हैं उनका फायदा मिल चुका है. ऐसे में नई घोषणाओं के साथ पहले से चल रहे जनकल्याण के कार्यक्रमों को जनता तक पहुंचाना एक चैलेंज है. आखिर कोई वोट मांगने जाएगा तो किस आधार पर वोट मांगेगा. इसीलिए बीजेपी ने कई नई स्कीमों की घोषणा की है, और इसी के आधार पर वोट मांगने जाएंगे."गिरिजा शंकर शुक्ला
हालांकि वरिष्ठ पत्रकारों का एक धड़ा यह भी कहता है कि अगर चार बार की सरकार के बाद भी घोषणाओं और जनकल्याण कार्यों का आधार बीजेपी को खोजना पड़ रहा है तो इसका मतलब है कि बीजेपी के लिए चुनाव जीतना, उनकी सोच से ज्यादा कठिन हो सकता है.
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