झारखंड (Jharkhand) के झरिया (Jharia) से करीब 160 किलोमीटर दूर बस्ताकोला इलाके की जमीन से आग निकल रही है. दरअसल, यहां जमीन के नीचे से कोयला निकालने का काम किया जाता है. आरोप है कि नियम के मुताबिक कोयला निकालने के बाद गड्ढों को भरा नहीं जाता, जिसकी वजह से जमीन के नीचे आग लगी रहती है और जहरीली गैसों का रिसाव होता है. नतीजा कि यहां स्थानीय लोगों को रहना मुश्किल होता जा रहा है. ये दिक्कत सालों से है. कईयों की तो जान भी जा चुकी है. हालांकि अब प्रशासन कुछ हरकत में आया है. करीब 60 हजार लोगों को शिफ्ट करने का इंतजाम किया जा रहा है. तस्वीरों के जरिए बस्ताकोला और आसपास के इलाकों का हाल दिखाते हैं.

<div class="paragraphs"><p>(फोटो: क्विंट हिंदी)</p></div>

झरिया में बीते 100 सालों से जमीन के नीचे आग धधक रही है. इस वजह से कई लोगों की जान भी जा चुकीं हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, आग को बुझाने में अब तक करीब 2,311 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं.

(फोटो: क्विंट हिंदी)

कोयला मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले तीन महीने के अंदर कुल 12,323 परिवारों को शिफ्ट किया जाना है. ये सभी परिवार फिलहाल उन 70 बेहद खतरनाक साइट पर रह रहे हैं, जहां आग धधक रही है. इनमें से 2,110 लीगल टाइटल होल्डर (यानी जमीन के वैध मालिक) हैं. वहीं 10,213 नॉन लीगल टाइटल होल्डर (यानी जमीन पर अवैध कब्जा कर रह रहे लोग) हैं. वहीं इन 70 साइट में फिलहाल 118.50 मिलियन टन कोकिंग कोल है.

(फोटो: क्विंट हिंदी)

स्थानीय पत्रकार क्विंट हिंदी से कहते हैं, ‘पेट की आग बुझाने के लिए लोग जमीन के नीचे लगी आग के ऊपर रहने को मजबूर हैं. खदान एरिया में रह रहे हैं तो चोरी से ही सही, कोयला बेच जीवन चला रहे हैं. यहां रह रहे मजदूरों को हर दिन 200 से 400 रुपए तक की कमाई हो जाती है.’ वो आगे कहते हैं, ‘लेकिन जिस जगह इनको बसाया जा रहा है, वहां रोजगार के कोई साधन नहीं हैं.

(फोटो: क्विंट हिंदी)

साल 2022 के अप्रैल महीने में निरसा में खदान धंसने से कुल 19 लोगों की दबकर मौत हो गई थी. हालांकि जिला प्रशासन ने छह लोगों के मरने की बात ही अधिकारिक तौर पर स्वीकार की है. 

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इलाके में कुल 595 साइट ऐसी हैं, जो इस आग से प्रभावित हैं. इसमें से बरोरा, गोविंदपुर, कतरास, सिजुआ, कुसुंडा, पीबी एरिया, बस्ताकोला, लोदना सहित कुल 70 बेहद खतरनाक इलाके हैं.

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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झरिया के एक स्थान पर जमीन के नीचे लगी आग की तस्वीर.

(फोटो: क्विंट हिंदी)

यहां रह रहे अरुण कुमार यादव ने बताया कि, ‘यहां पीने का पानी उपलब्ध नहीं है. एक दिन गैप कर सप्लाई वाला पानी आता है, पर वो भी सिर्फ एक घंटे के लिए.’  

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घर मिलने और सुरक्षित जगह पर जाने की आस में झरिया के 60 हजार लोग हर दिन मौत के साए में जी रहे हैं. सरकारें आ रही हैं, जा रही हैं, यहां के लोग बस इंतजार ही कर रहे हैं.

(फोटो: क्विंट हिंदी)

बस्ताकोला से दो किलोमीटर दूर कजरापट्टी इलाके में साल 2019 में सुनील नामक युवक गलती से एक गड्ढे में खेलते हुए गिर गया. धीरे-धीरे जमीन धंसने लगी और सुनील जब तक चिल्लाता, वो जमीन में समा चुका था. उसके पिता उसे बचाने गए, लेकिन वो भी जमीन में समां गए. इस तरह की घटनाएं यहां आम हो गयीं हैं.

(फोटो: क्विंट हिंदी)

इलाके के घरों की व्यवस्था बेहद ही खराब है. हालात ऐसे हैं कि घर कभी भी गिर सकते हैं. कई लोग इसी खौफ में होते हैं कि कब उनके घर की छत गिर जाएगी. ये तस्वीर ऐसे ही एक गिरे हुए घर की है.

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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Published: 18 Jan 2023,11:35 PM IST

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