Home Photos काशी के नाटी इमली का 'भरत मिलाप', जयकारे के बीच 'राम' ने 'भरत' को लगाया गले| Photos
काशी के नाटी इमली का 'भरत मिलाप', जयकारे के बीच 'राम' ने 'भरत' को लगाया गले| Photos
दशहरा के ठीक अगले दिन होने वाले नाटी इमली के भरत मिलाप की कैसे हुई शुरुआत?
चंदन पांडे
तस्वीरें
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नाटी इमली का भरत मिलाप: Photos
फोटो- क्विंट हिंदी
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उत्तर प्रदेश के वाराणसी (Varanasi) जिले में स्थित नाटी इमली का 'भरत मिलाप' अनूठा है. मान्यता के अनुसार 480 वर्ष पुराने इस 'भरत मिलाप' को देखने आज भी यहां लाखों लोग पहुंचते हैं और लीला के साक्षी बनते हैं. लीला में रामायण काल में भगवान श्रीराम के अयोध्या पहुंचने और भरत से मिलने के दौरान के दृश्य को वर्णित किया जाता है. बुधवार, 25 अक्टूबर को अस्ताचलगामी सूर्य की किरणों के साथ 'भरत मिलाप' हुआ. तस्वीरों के साथ इसके पीछे की मान्यता जानिए.
उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में स्थित नाटी इमली का भरत मिलाप अनूठा है. 480 वर्ष पुराने 'भरत मिलाप' को देखने आज भी यहां लाखों लोग पहुंचते हैं और लीला के साक्षी बनते हैं.
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लीला में रामायण काल में भगवान श्रीराम के अयोध्या पहुंचने और भरत से मिलने के दौरान के दृश्य को वर्णित किया जाता है.
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देश की धार्मिक व सांस्कृतिक राजधानी काशी में पूरे वर्ष उत्सव का सिलसिला चलता रहता है. इन त्योहारों में से एक है दशहरा के अगले दिन मनाए जाने वाला विश्व प्रसिद्ध 'भरत मिलाप.'
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अस्ताचलगामी सूर्य की किरणें 'भरत मिलाप' मैदान में बने चबूतरे पर एक तय समय पर पड़ती है और उसके बाद राम-लक्षमण भरत और शत्रुघ्न की तरफ दौड़ पड़ते हैं. उन्हें गले लगाते हैं. इसके बाद चारों तरफ से सियावर रामचंद्र की जय की गूंज होती है. कथित तौर पर इस वर्ष भरत मिलाप का अनवरत 480वां साल है.
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मान्यता है कि करीब पांच सौ वर्ष पहले संत तुलसीदास जी के शरीर त्यागने के बाद उनके समकालीन संत मेधा भगत काफी विचलित हो उठे. कहा जाता है कि उन्हें सपने में तुलसीदास जी के दर्शन हुए और उसके बाद उन्हीं के प्रेरणा से उन्होंने इस रामलीला की शुरुआत की.
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इस रामलीला का ऐतिहासिक 'भरत मिलाप' दशहरा के ठीक अगले दिन होता है. मान्यता है कि 479 साल पुरानी काशी की इस लीला में भगवान राम खुद ही धरती पर अवतरित होते है.
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यहां के 'भरत मिलाप' कार्यक्रम को लेकर चित्रकूट रामलीला समिति के व्यवस्थापक पंडित मुकुंद उपाध्याय ने बताया की तुलसीदास ने जब रामचरितमानस को काशी के घाटों पर लिखा उसके बाद तुलसीदास ने भी कलाकारों को इकठ्ठा कर लीला यहीं से शुरू की थी, मगर उसको परम्परा के रूप में मेघा भगत जी ने ढाला.
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मान्यता ये भी है की मेघा भगत को इसी चबूतरे पर भगवान राम ने दर्शन दिया था, उसी के बाद यहां 'भरत मिलाप' होने लगा.
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यह भरत मिलाप लक्खा मेले में शुमार है.
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'भरत मिलाप' कार्यक्रम में यदुकुल के कंधे पर ही रघुकुल का रथ निकाले जाने की परम्परा चली आ रही है. आंखों में सूरमा लगाए सफेद मलमल की धोती- बनियान और सिर पर पगड़ी लगाए यादव बंधु मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का 5 टन का पुष्पक विमान फूल की तरह पिछले 479 सालों से कंधों के सहारे लीला स्थल तक लाने की परम्परा को निभा रहे हैं.
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काशी के 'भरत मिलाप' कार्यक्रम की खास बात ये भी है कि इस कार्यक्रम के साक्षी काशी नरेश होते हैं. हाथी पर सवार होकर महाराज बनारस लीला स्थल पर पहुंचते हैं और देव स्वरूपों को सोने की गिन्नी उपहार स्वरूप देते हैं. इसके बाद लीला शुरू होती है.
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पूर्व काशी नरेश महाराज उदित नारायण सिंह ने इसकी शुरुआत की थी. सन 1796 में वह पहली बार इस लीला में शामिल हुए थे. बताया जाता है कि, तब से उनकी पांच पीढ़ियां इस परंपरा का निर्वहन करती चली आ रही हैं. वर्तमान में कुंवर अनंत नारायण इस परम्परा को निभाते हुए अपनी आने वाली पीढ़ियों को भी सीख दे रहे हैं.