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संसद में इस वक्त इलेक्टोरल बॉन्ड चर्चा में है. साल 2017 में कानून बनने के बाद इलेक्टोरल बॉन्ड का प्रावधान आया. इसके बाद क्विंट ने मान्यता प्राप्त लेबोरेटरी से इसकी जांच कराई. क्विंट की इस पड़ताल में साबित हुआ था कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा देने वाले शख्स या संस्था का पता चल सकता है. लेकिन ये जानकारी सिर्फ सरकार को मिल सकती है. आम जनता इसके बारे में नहीं जान सकती है.
यानी कि जिस तरह इलेक्टोरल बॉन्ड को कालेधन के खिलाफ एक हथियार की तरह पेश किया गया था, वह सब गलत था. ये सर्फ कहानी थी. इसमें कोई सच्चाई नहीं है.
इसी मुद्दे पर सुनिए आज का बिग स्टोरी पॉडकास्ट.
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Published: 22 Nov 2019,06:35 PM IST