Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Readers blog  Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019राहुल गांधी ‘फकीर’ को हराने के लिए ‘तपस्वी’ बनने की कोशिश करेंगे तो भूल होगी

राहुल गांधी ‘फकीर’ को हराने के लिए ‘तपस्वी’ बनने की कोशिश करेंगे तो भूल होगी

राहुल गांधी को देश के उन मुद्दों को उठाते रहना चाहिए जिन्हें बीजेपी उठाने से कतराती है

चैतन्य नागर
ब्लॉग
Published:
<div class="paragraphs"><p> राहुल गांधी</p></div>
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राहुल गांधी

(फोटो: स्नैपशॉट)

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हाल के कुछ दिनों में दिए गए अपने बयानों में राहुल गांधी का स्वयं को मार देने वाला बयान हैरान कर गया. उन्होंने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि राहुल गांधी को उन्होंने मार डाला है, और ये कि जिस राहुल को लोग देख रहे हैं, वो सिर्फ उनके मन-मस्तिष्क की ही उपज है. उन्होंने मीडिया कर्मियों से ये भी कहा कि वे हैरान न हों, हो सके तो शिव जी को पढ़ें और हिन्दू धर्म के बारे में अपना ज्ञान बढ़ाएं.

अपनी नई प्रोग्रेस रिपोर्ट मांग रहे हैं राहुल?

राहुल गांधी ने ही कर दी राहुल गांधी की हत्या!! राहुल गांधी कहना क्या चाह रहे हैं? वो इसे और ज्यादा स्पष्ट करते तो बेहतर होता. क्या वे किसी गहरे मनोवैज्ञानिक सत्य की तरफ इशारा कर रहे हैं? क्या वो कहना चाह रहे हैं कि लोगों के मन में जो उन्हें लेकर छवि बनी हुई है, धारणा बनी हुई है, उसे वे भूल जाएं, क्योंकि उन्होंने खुद ही उसे विस्मृति के हवाले कर दिया है, उसे मार दिया है, मिटा डाला है. गौरतलब है कि मानवीय संबंधों में छवियों का बड़ा महत्व होता है और अक्सर हम लोगों के बारे में एक स्थाई छवि बना लेते हैं. इसके बाद उस व्यक्ति को इसी छवि के जरिये देखा जाता है. छवि इतनी प्रबल हो जाती है कि उसके पीछे लगातार बदलता, संघर्ष करता वास्तविक इंसान छिप ही जाता है.

क्या राहुल ये कह रहे हैं कि लोग उस राहुल को भूल जाएं जिसे उनके विपक्षियों ने ‘पप्पू’ घोषित कर दिया था और जिसे लोग एक अपरिपक्व, अनिच्छुक राजनेता के रूप में जानते थे. क्योंकि उन्होंने स्वयं ही उसे मार डाला है. ये तो स्पष्ट है कि राहुल गांधी लोगों को उनकी छवि से परे जाकर फिर से उनका आकलन करने का आग्रह करते नजर आ रहे हैं. उन्हें खुद भी इस बात का भरोसा है कि वो पहले वाले राहुल गांधी नहीं रहे. उनमे एक आत्मविश्वास जगा है और वो अपनी परिपक्वता को स्थापित करने की कोशिश में हैं. पर ये बातें वो अच्छी तरह स्पष्ट करते तो बेहतर होता.  

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धर्म और दर्शन संबंधी विवादों से दूर ही रहें

इसके अलावा हाल में ही राहुल गांधी ने तपस्वी और पुजारी के बीच के फर्क, कौरव और पांडव की गाथा पर और कौरवों की आरएसएस के साथ तुलना करते हुए बयान भी दिए. गीता को उद्धृत करते हुए भी सुने गए और मंदिर-मंदिर घूमते भी देखे गए. बेहतर यही होगा कि राहुल गांधी धर्म और दर्शन के इलाकों से थोड़ी दूरी बनाए रखें. इस तरह के बयान उनकी गहरी समझ से उपजे या कही और से, ये तो सवाल है, पर ये गैरजरूरी है. कांग्रेस पर तो हमेशा से यही आरोप लगते रहे हैं कि वो हिन्दू विरोधी है, वो मत निरपेक्ष है और धर्म को राजनीति में नहीं घसीटती.

हालात अब बदले हैं और राहुल गांधी का सबसे बड़ा विरोधी दल बीजेपी अब सत्ता में है. बीजेपी को धर्म के आधार पर राजनीति करने से कोई परहेज नहीं रहा है और और इस बारे में ये भी कहा जा सकता है कि वो जैसा कहती है, वैसा ही करती है. मंदिर बनाना, सनातनी रीति रिवाजों को प्रोत्साहित करना, ये सब उनके लिखित या अलिखित मैनिफेस्टो का ही हिस्सा है और वे उसे पूरा करते हैं, उसी के आधार पर लोग उसे वोट देते रहे हैं और इन बातों को लेकर बीजेपी पिछले दो लोक सभा चुनावों में जीतती आई है. पर कांग्रेस ने जब भी धर्म के इलाके में घुसने की कोशिश की है, उसे नुकसान ही हुआ है. राहुल को अभी से बीजेपी के अखाड़े में जाकर उनसे कुश्ती नहीं करनी चाहिए. उनके बनाए हुए विकेट पर बैटिंग करने के खतरे को समझना चाहिए. उनकी राजनीतिक परिपक्वता इसी से साबित होगी.

राजनीति को नई दिशा देने की बातें करें 

राहुल गांधी गरीबी, बेरोजगारी, आर्थिक और सामाजिक असंतुलन, सांप्रदायिक वैमनस्य से जुड़े अपने मुद्दों से जुड़ कर बातें करते रहें तो लोगों में एक अलग तरह की राजनीति को लेकर उम्मीदें जगी रहेंगी. यदि वो एक ‘फकीर’ को पराजित करने के लिए ‘तपस्वी’ बनने का प्रयास करेंगे तो शायद फिर एक बड़ी भूल करेंगे. उन्हें देश के उन मुद्दों को उठाकर बातचीत करनी चाहिए, जिन्हें, उनके मुताबिक, बीजेपी उठाने से भी कतराती है. राहुल गांधी को लोगों को ये भरोसा दिलाना चाहिए कि वे देश की राजनीति को एक नई दिशा में ले जाना चाहते हैं, एक ऐसी दिशा जिसमें सबकी आर्थिक और सामाजिक तरक्की की पर्याप्त संभावनाएं हैं. एक ऐसी नई दिशा जिसकी तरफ पीएम मोदी उन्हें नहीं ले जा सके.

राहुल गांधी बीजेपी के ही खेल में उनसे नहीं जीत पाएंगे, बल्कि यदि वो एक मजबूत विकल्प और विपक्ष के रूप में खुद को स्थापित करने की कोशिश करें, अपनी पार्टी और देश हित की बातें करके, तो हो सकता है कि आखिरकार वो अपने मकसद में कामयाब हो जाएं. मौजूदा राजनीतिक हालात ही शायद राहुल गांधी को इस तरह की धार्मिक-दार्शनिक बातें करने पर मजबूर कर रहे हों, पर बेहतर यही होगा कि वे लोगों के हित में जमीनी मुद्दों से जुड़े रहकर बातें करें. राहुल गांधी को ये याद दिलाना जरूरी है कि विपक्ष में वास्तव में सिर्फ वही हैं, उनके अलावा राष्ट्रीय स्तर पर कोई स्वीकार्य नेता फिलहाल तो नहीं नजर आता. इस फायदे को वो अच्छी तरह भुनाने की कोशिश में लगें तो उनके लिए, उनकी पार्टी और लोकतंत्र के लिए ये उपयोगी रहेगा. वरना उनकी किसी भी जीत के बावजूद जनता ठगा हुआ महसूस करेगी. 

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