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करीब 200 साल तक अंग्रेजों की गुलामी के बाद जब भारत को 1947 में आजादी मिली, तो उससे बड़ी खुशी क्या हो सकती थी. आजाद हवा में सांस लेना. अपने देश में सबकुछ अपनी मर्जी से करना. फिर जब आजादी को एक साल होने वाला था, तो उसके जश्न का सबसे अच्छा तरीका क्या हो सकता था?
देश भर में झांकियां. स्वतंत्रता सेनानियों के प्रेरणादायक भाषण. रंग-बिरंगे मेला. लेकिन इन सबसे बढ़कर भी एक तोहफा था, जिसने आजादी की पहली सालगिरह के जश्न को खास बनाया.
1948 में आजादी की पहली सालगिरह (15 अगस्त) से ठीक तीन दिन पहले भारत ने 200 साल की गुलामी और अपमान का बदला लिया. 12 अगस्त को भारत ने लंदन के एंपायर स्टेडियम (अब वेंबली) में हजारों लोगों के सामने अपने पूर्व शासक ब्रिटेन को हॉकी के ओलंपिक फाइनल में पटखनी दी और आजाद भारत को मिला उसका पहला ओलंपिक गोल्ड.
1948 के उस ओलंपिक से पहले भारतीय हॉकी ने बंटवारे के कारण कई अहम खिलाड़ियों को खोया था. लेकिन इस ओलंपिक ने भारतीय हॉकी को कुछ नए सितारे भी दिए और इनमें सबसे खास थे- बलबीर सिंह, यानी बलबीर सिंह सीनियर. और इसलिए भी ये पहला गोल्ड कुछ खास था.
इसके बाद उन्हें मौका दिया गया सीधे फाइनल में और वहां भारत ने ब्रिटिश टीम को 4-0 से हराकर हिंदुस्तान को उसकी आजादी की पहली सालगिरह पर एक खूबसूरत गिफ्ट दिया था. इस मैच में भी बलबीर ने पहले हाफ में ही 2 गोल कर टीम को बढ़त दी थी.
उस जीत को याद करते हुए बलबीर सिंह कहते हैं,
इस जीत के बाद भारत के उच्चायुक्त वीके मेनन ने पूरी भारतीय टीम को दावत दी. इसके बाद टीम ने यूरोप के कुछ देशों का दौरा किया और कई प्रदर्शनी मैच भी खेले. जब टीम भारत लौटी तो बॉम्बे (अब मुंबई) में उनका जोरदार स्वागत हुआ.
हालांकि टीम को जल्द ही दिल्ली ले जाया गया, जहां नेशनल स्टेडियम में भारी भीड़ के बीच टीम ने एक प्रदर्शनी मैच खेला. उस मैच को खास बनाया प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की मौजूदगी ने और उनके साथ थे भारत के होने वाले पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद.
यूं तो इसके बाद भी हम हॉकी में 4 बार फिर ओलंपिक चैंपियन बने, लेकिन आजादी के 71 साल बाद भी ओलंपिक का वो गोल्ड सबसे खास है. क्योंकि 200 साल तक हर हिंदुस्तानी पर अपना डंडा चलाने वाले ब्रिटेन को उसके घर में उनके ही लोगों के सामने हराकर हमने अपना ‘पहला गोल्ड’ जीता था.
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