Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019ओलंपिक मेडल नहीं, ये हॉकी खेलती हैं ताकि मां-बाप को मजदूरी से मिले मुक्ति

ओलंपिक मेडल नहीं, ये हॉकी खेलती हैं ताकि मां-बाप को मजदूरी से मिले मुक्ति

टोक्यो ओलंपिक के बाद सरकार और नेता खेल प्रेमी होने का दम भर रहे हैं, बाकी दिन क्या होता है ये देखिए

शादाब मोइज़ी
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<div class="paragraphs"><p>हॉकी खिलाड़ियों का संघर्ष</p></div>
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हॉकी खिलाड़ियों का संघर्ष

(फोटो: शादाब मोइज़ी)

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टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympics 2020) में शानदार प्रदर्शन करने वाली महिला हॉकी खिलाड़ियों पर इनामों की बौछार की जा रही है. कोई लाखों देने का ऐलान कर रहा है तो कोई नौकरी देने की बातकर मीडिया में अपनी वाह-वाही करा रहा है.

झारखंड से लेकर हरियाणा सरकार अपने-अपने राज्य से आने वाली खिलाड़ियों के लिए 50-50 लाख रुपए देने का वादा कर रही है. सब खेल प्रेमी होने का दम भर रहे हैं. दावे-वादे सब हो रहे हैं, लेकिन लाइट, कैमरा और एक्शन मोड से बाहर आते ही पता चलेगा कि खिलाड़ियों को ये सरकारें क्या देती हैं, हॉकी खेलने वाली लड़कियां कितनी दिक्कत में खेलती हैं.

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दरअसल, हम ये इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि साल 2019 में क्विंट ने झारखंड के राजधानी से करीब 15 किलोमीटर दूर हुलहुणडू की हॉकी खेलने वाली कुछ लड़कियों से मुलाकात की थी जो बहुत ही गरीब परिवार से आती हैं.

हाथों में हॉकी, माथे पर पसीना और धूल के बीच हॉकी की प्रैक्टिस करती होलिका उस वक्त छठी क्लास में पढ़ती थीं. होलिका के पिता मजदूरी करके रोजाना 350 रुपये कमाते थे. होलिका को हॉकी इसलिए खेलना है क्योंकि उसे अच्छी नौकरी मिले और फिर उसके पापा को मजदूरी नहीं करनी पड़े.

हॉकी के सहारे नौकरी की उम्मीद

होलिका के पिता राजेश तिर्की हॉकी खेलने के पीछे का मकसद बताते हैं. वो कहतें हैं,

“हॉकी के पीछे का असल मकसद है कि आगे चलकर अच्छा खेलेगी तो खेल में नौकरी मिल सकती है. खेल के जरिये स्पोर्ट्स कोटा से नौकरी मिलती है. नौकरी मिल गई तो अपने पांव पर खड़ी हो जाएगी. साथ ही पुलिस की अगर नौकरी निकालती है, जिसके लिए दौड़ आना चाहिए, तो उसे दौड़ में दिक्कत नहीं होगी.”

यही नहीं साल 2019 में जब हम इन लड़कियों से मिले तब इन लड़कियों को 500 रुपये महीना स्कॉलरशिप का तौर पर देने का सरकारी वादा था. लेकिन हालात देखिए मामूली 500 रुपए भी हर महीने न मिलकर 4 महीने, 6 महीने या एक साल में मिलता था. अब खुद ही सोचिए एक तो 500 रुपए ऊपर से वो भी समय पर नहीं मिलना. क्या ऐसे हालात में इनसे पदक की उम्मीद करना इंसाफ है?

असल खेल प्रेम खेल के बाद इनाम से नहीं, खेल से पहले 'इनाम' देने से साबित होगा. इन खिलाड़ियों को बेहतर सुविधा, सही डायट, बेस्ट ट्रेनिंग और सम्मान का इनाम चाहिए. फिर इनसे मेडल भी आएंगे और देश का नाम भी होगा.

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