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CWG 2022: नीतू को बॉक्सर बनाने के लिए पिता ने दांव पर लगा दी विधानसभा की नौकरी

CWG 2022: Neetu Ghanghas के पिता चार साल तक बिना वेतन के छुट्टी पर रहे.

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<div class="paragraphs"><p>नीतू घनघस</p></div>
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नीतू घनघस

(फोटो: ट्विटर)

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कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 (CWG 2022) में भारत की ओर से अब तक महिला खिलाड़ियों का दबदबा रहा है. इसी में एक नाम नीतू घनघस (Nitu Ghanghas) का है. अपना पहला कॉमनवेल्थ खेल रही नीतू अभी तक कोई मेडल तो नहीं ला पाई हैं, लेकिन उनके यहां तक पहुंचने की कहानी बहुत संघर्षपूर्ण है.

उन्होंने पिछले महीने दिग्गज मुक्केबाज मैरीकॉम को हराकर कॉमनवेल्थ का टिकट हासिल किया था. हरियाणा के भिवानी जिले के धनाना गांव में जन्मीं नीतू के लिए बर्मिंघम तक का सफर आसान नहीं था.

 साल 2012 में शुरू किया था खेलना

भिवानी जिले के ही मुक्क्केबाज विजेंद्र सिंह ने 2010 ओलंपिक में कांस्य पदक जीता था, जिन्हें प्रेरणा मानकर नीतू ने मुक्केबाजी में हाथ आजमाने का फैसला किया था. साल 2012 में अपने बॉक्सिंग करियर की शुरुआत करने वाली नीतू को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा. एक महिला होने के नाते उन पर अक्सर घर के काम करने का दबाव डाला जाता था, लेकिन नीतू इन सब के बीच खुद के लिए रास्ता निकालती रही.

पिता 4 साल तक बिना वेतन के छुट्टी पर रहे

नीतू के पिता जय भगवान हमेशा से अपनी बेटी के सपनों के साथ खड़े रहे. उन्होंने बेटी का साथ देने के लिए अपनी नौकरी को दांव पर लगा दिया. चंडीगढ़ विधानसभा में नौकरी करने वाले जय भगवान अपने पद से अवैतनिक अवकाश लेकर अपने गांव आ गए. वह चार साल तक बिना वेतन के छुट्टी पर रहे.

उन्होंने ऐसा इसलिए किया ताकि अपनी बेटी को पूरा समय दे सके. नीतू को ट्रेनिंग के लिए भिवानी बॉक्सिंग क्लब जाना होता था, जिसके लिए प्रति दिन 20 किलोमीटर का सफर करना होता था. मुक्केबाज नीतू ने अपने पिता के संघर्ष को याद करते हुए बताया कि,

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"मुझे अब समझ में आता है कि मेरे पिताजी के लिए कितना कठिन रहा होगा सब कुछ त्याग कर देना ताकि मैं नई ऊंचाइयों को छू सकूं. घर-खर्च के लिए वह अपने दोस्तों और सहकर्मियों से उधार लिया करते थे."

उन्होंने आगे बताया "मैंने जिलास्तरीय और राष्ट्रस्तरीय मुकाबलों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था. 2015 तक मैंने एक भी खिताब नहीं जीता था और मैं यह खेल छोड़ देना चाहती थी, लेकिन मेरे सपनों को ले कर मेरे पिताजी के निरंतर सहयोग ने मुझे प्रेरित किए रखा."

कोच ने पहचानी प्रतिभा

साल 2015 में प्रसिद्ध कोच जगदीश सिंह की नजर नीतू पर पड़ी, यह वही कोच हैं जिन्होंने मुक्केबाज विजेंदर सिंह को बीजिंग ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीतने में मदद की थी. कोच ने नीतू की प्रतिभा को पहचाना और ट्रेनिंग दी, जिसके बाद नीतू ने उसी साल अपना पहला राष्ट्रीय पदक जीता.

नीतू ने साल 2017 और 2018 में युवा विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता. जिसके बाद साल 2018 में एशियन यूथ बॉक्सिंग में एक और स्वर्ण पदक अपने नाम किया. जिस वक्त नीतू एक के बाद एक मुकाम हासिल कर रही थी उसी समय उन्हें झटका भी लगा. उन्हें 2019 में शोल्डर इंजरी हुई जिसके बाद वह लगभग दो साल तक वह मुक्केबाजी से दूर रही थी.

हालांकि, उन्होंने 2021 में चोट से वापसी करते हुए स्ट्रैंड्जा मेमोरियल में फिर गोल्ड जीता, जिसके बाद उन्होंने लंदन ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता मैरीकॉम को हराकर कॉमनवेल्थ गेम्स में जगह बनाई.

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