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पहले से ही बुरी हालत में भारतीय फुटबॉल (Indian Football) की हालत अब और भी खस्ता होने वाली है. दुनिया की सबसे बड़ी फुटबॉल बॉडी 'FIFA' ने भारत को झटका देते हुए 'भारतीय फुटबॉल संध' (AIFF) को बैन कर दिया.
बैन की खबर सुनते ही भारत दो नजरियों को अपना सकता था. पहला, 'छोड़ो न, ये क्रिकेट थोड़ी है! इसमें तो हम पहले ही 104 रैंक पर हैं.' दूसरा, 'कितने शर्म की बात है कि दुनिया का सबसे लोकप्रिय खेल की बॉडी को अपने देश में बैन कर दिया गया.'
जब मालूम था कि 2020 में ही प्रफुल पटेल का कार्यकाल खत्म हो गया था तो एक पेरेंट बॉडी होने के नाते इसने 2 साल से ज्यादा का समय क्यों लगा दिया? नियम के मुताबिक कोई व्यक्ति 3 बार से ज्यादा अध्यक्ष पद पर नहीं रह सकता तो फीफा ने सुप्रीम कोर्ट के जरिए प्रफुल पटेल को हटाए जाने का इंतजार क्यों किया और अब उसी सुप्रीम कोर्ट को 'थर्ड पार्टी की दखलअंदाजी' मानकर क्यों इतना कठोर फैसला लिया गया?
इस साल भारत में अक्टूबर में फीफा का अंडर-17 महिला विश्व कप होना है लेकिन ठीक पहले फीफा का फैसला थोड़ा हैरान करता है. हालांकि ये बात ठीक है कि फीफा CoA के साथ मिलकर वर्ल्ड कप का आयोजन नहीं कर सकता और न ही उनका संविधान इसकी इजाजत देता है. FIFA को पता था कि यहां इतना बड़ा आयोजन है और समस्या चल रही है तो समस्या पर पहले ध्यान दिया जा सकता था. भारत के हाथ से मेजबानी छीनना और बुरा होगा, खासकर उस देश के लिए जो पहले से ही इस खेल में अपनी हालत सुधारने के लिए जूझ रहा है.
इसे AIFF की गलती कहें या लापरवाही कि इस मामले से जुड़ी हर चीज को एक मजाक समझा गया. जबरदस्ती अध्यक्ष पद पर बैठे रहने के लिए प्रफुल पटेल ने इसके संविधान में ही संशोधन करने की ठान ली. इसी लालच पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी तलवार चलाई और उन्हें हटाकर CoA (प्रशासक समीति) की नियुक्ति कर दी, लेकिन अब इसी को FIFA ने तीसरी पार्टी की दखलअंदाजी समझ लिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने प्रशासक समीति को अपॉइंट करके 2 बड़ी जिम्मेदारी सौंपी थी, पहला कि वो समय पर चुनाव कराए और दूसरा कि नए संविधान को लागू करने के स्कोप पर विचार करे. यहां दोनों में से एक भी काम नहीं हुआ, जबकि इस एक्शन को भी लगभग 6 महीने बीत चुके हैं.
पिछले महीने फीफा और AFC की ज्वाइंट टीम भारत में इस विवाद के बाद हालात परखने आई थी. इसके बाद AIFF को समय दिया गया कि वे 31 जुलाई तक अपना नया संविधान अपना ले जो फीफा के नियमों के अनुरूप हो और 15 सितंबर तक चुनाव करा लें. लेकिन भारत ने इस डेडलाइन को गंवा दिया.
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