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क्रिकेट फैंस, खासतौर पर भारतीय क्रिकेट फैंस, इस खेल को पूरे जज्बातों के साथ देखते हैं और इसको फॉलो करते हैं. सबका अपना कोई न कोई पसंदीदा खिलाड़ी रहा. कोई हीरो रहा, जिसको देखकर इस खेल से प्यार हुआ.
इनमें से सबसे ऊपर है वो खिलाड़ी जिसने देश में इस खेल की परिभाषा ही बदल दी- सचिन तेंदुलकर. सचिन ने 24 साल तक सबको हंसने, खुश होने यहां तक कि रोने के कारण भी दिए.
करीब साढ़े पांच साल पहले 2013 में जब सचिन रिटायर हुए थे, हर एक क्रिकेट फैन भी सचिन के साथ भावुक हुआ था. वानखेड़े स्टेडियम की पिच से लौटते हुए सचिन रो पड़े थे और उसे देखकर स्टेडियम से लेकर घरों, दफ्तरों और बाजार में भी लोगों की आंखों में आंसू थे. हालांकि, सचिन के लिए वो पहला मौका नहीं था.
20 साल पहले 1999 के वर्ल्ड कप में टीम इंडिया को मुश्किल हालात से गुजरना पड़ा. भारत को जिंबाब्वे जैसी कमजोर टीम से शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था. टीम सुपर सिक्स में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से हारकर टूर्नामेंट से बाहर हो गई थी. लेकिन किसी के लिए ये वर्ल्ड कप सबसे मुश्किल टूर्नामेंट साबित हुआ, तो वो थे- सचिन तेंदुलकर.
वर्ल्ड कप शुरू होने से पहले ही सचिन तेंदुलकर अपनी पीठ के दर्द से परेशान थे. तमाम कोशिशों के बाद भी सचिन को इससे आराम नहीं मिल रहा था. वहीं, वर्ल्ड कप के पहले ही मैच में भारत को दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ हार का सामना करना पड़ा. सचिन इस मैच में कुछ खास नहीं कर पाए और सिर्फ 28 रन बनाकतर आउट हो गए. हार की निराशा के साथ पीठ का दर्द बरकरार था.
लेकिन असली दर्द सचिन को मिलना अभी बाकी था. ऐसा दर्द, जिससे उबरने के लिए कोई दवाई काम नहीं आ सकती थी. 19 मई को भारतीय टीम का मुकाबला जिंबाब्वे से था. भारतीय टीम लेस्टर शहर के एक होटल में रुकी थी.
मैच से ठीक पहले, आधी रात को सचिन के कमरे के बाहर उनकी पत्नी अंजलि खड़ी थी. अंजलि के साथ थे सचिन के साथी रॉबिन सिंह और अजय जड़ेजा. उसके बाद जो उन्होंने सुना, उसने सचिन को तोड़ दिया. सचिन के पिता रमेश तेंदुलकर का मुंबई में निधन हो गया था. सचिन के लिए कुछ भी सोचना मुश्किल हो गया था. उनकी सबसे बड़ी प्रेरणा, उनके पिता, उनका साथ छोड़ चुके थे.
सचिन ने अपनी आत्मकथा ‘प्लेइंग इट माइ वे’ इसका जिक्र करते हुए लिखा है-
19 मई की सुबह जब भारतीय टीम जिंबाब्वे से भिड़ने के लिए तैयार थी, सचिन अपनी पत्नी अंजलि के साथ वापस मुंबई के लिए रवाना हो गए थे. सचिन करीब 4 दिन अपने घर में अपने परिवार के साथ रहे. अपने जीवन के सबसे बड़ी दुख की घड़ी में उन पर परिवार को एकजुट करने की जिम्मेदारी भी थी.
सचिन के परिवार में सब जानते थे कि सचिन सिर्फ क्रिकेट के लिए बने हैं. सचिन को क्रिकेट से दूर रखना, क्रिकेट की भलाई के लिए ही अच्छा नहीं था. उधर, इंग्लैंड में भारतीय टीम का संघर्ष जारी था. दक्षिण अफ्रीका से हार के बाद अगले ही मैच में भारत को जिंबाब्वे जैसी कमजोर टीम से हार का सामना करना पड़ा.
वर्ल्ड कप में देश की इज्जत का भी सवाल था. ऐसे में देश के सबसे चहेते बेटे को उनके खुद के परिवार ने टीम के पास लौटने के लिए मनाया. टूटे हुए दिल के बावजूद सचिन को उनके परिवार ने इंग्लैंड में टीम से वापस जुड़ने को कहा.
सचिन वर्ल्ड कप में भारत के तीसरे मैच से सिर्फ एक दिन पहले वापस टीम के साथ जुड़े. इस सबके बीच सचिन अपनी पीठ के दर्द से लगातार जूझ रहे थे. भारत का तीसरा मैच केन्या की कमजोर टीम से था.
पहले बैटिंग करते हुए सदगोपन रमेश और सौरव गांगुली ने भारतीय टीम को अच्छी शुरुआत दिलाई. 50 रन पर सौरव गांगुली आउट हुए और क्रीज पर राहुल द्रविड़ आए. द्रविड़ और रमेश ने 42 रन जोड़े और फिर रमेश 44 रन बनाकर आउट हो गए. 92 के स्कोर पर 2 विकेट खोने के बाद मैदान पर उतरे सचिन रमेश तेंदुलकर.
सचिन ने एक बेहतरीन स्ट्रेट ड्राइव पर चौका जड़कर अपनी पारी शुरू की और धीरे-धीरे इरादे जाहिर कर दिए. इसके बाद हुक, पुल, ऑन ड्राइव, फ्लिक का सिलसिला शुरू हो गया. सचिन लगातार रन बरसाते रहे, लेकिन चेहरे की वो उदासी बरकरार थी.
सचिन ने सिर्फ 54 गेंदों पर अपना अर्धशतक पूरा किया. कुछ और पुल, हुक, पैडल स्वीप की मदद से सचिन ने अगली 30 गेंदों में ही बाकी 50 रन बनाए.
उस विशाल आसमान से भी बड़ा उस दिन सचिन का जज्बा और जज्बात थे और सचिन के लिए इन सबसे बड़ा था साथ, जो उनके पिता के जाने के साथ ही बस याद बनकर रह गया. सचिन ने इससे पहले भी कई शतक लगाए थे और इसके बाद भी कई शतक जड़े, लेकिन शायद ही किसी शतक के बाद भी सचिन मायूस दिखे हों.
सचिन ने जरूरत के मौके पर अपनी टीम को मुश्किल से उबारा और दिखाया कि उनसे बड़ा खिलाड़ी कोई नहीं था. सचिन ने सिर्फ 101 गेंद पर 140 रन जड़ दिए थे. ये शतक सचिन के लिए बेहद खास था. शायद सबसे खास. इस शतक के बारे में सचिन कहते हैं-
जितना मुश्किल ये वर्ल्ड कप भारतीय टीम के लिए रहा, उससे कई ज्यादा कठिन सचिन के लिए था. पीठ दर्द तो था ही, उससे बड़ा दर्द उनको अपने पिता के जाने से था. सचिन अपनी आत्मकथा में लिखते हैं-
सचिन ने 24 साल के करियर में 100 शतक लगाए, जो आज भी रिकॉर्ड है. सचिन ने वनडे क्रिकेट का सबसे पहला दोहरा शतक लगाया. सचिन ने टेस्ट और वनडे क्रिकेट में सबसे ज्यादा रनों का रिकॉर्ड भी बनाया. इन सब रिकॉर्ड्स ने फैंस को सिर्फ खुशी ही दी.
सचिन ने वर्ल्ड कप में भी सबसे ज्यादा 6 शतक लगाए. आज उन सब शतकों के बारे में सोचने पर 20 साल पहले 23 मई को लगाया सचिन का वो शतक याद आता है, जो सचिन ने अपने दुख से लड़ते हुए इस देश और फैंस की खुशी के लिए जड़ा था.
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