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साउथ अफ्रीका के खिलाफ वनडे सीरीज (India vs South Africa ODI Series) में भारत का सूपड़ा साफ होने से हार से ज्यादा आलोचना इस बात को लेकर हो रही है कि इस फॉर्मेट में टीम इंडिया का नजरिया अब भी क्रिकेट के पाषाणकाल जैसा रहा है.
टॉप ऑर्डर के बल्लेबाजों का शुरुआत में संभल कर खेलना और किसी एक बल्लेबाज का बड़ी पारी खेलकर मैच-जिताने में अहम भूमिका निभाना. पिछले एक दशक से ज्यादा समय तक भारत इसी फॉर्मूले के साथ वन-डे क्रिकेट खेल रहा है.
रोहित शर्मा, शिखर धवन और विराट कोहली वाले टॉप ऑर्डर को किसी भी दौर के टॉप ऑर्डर के साथ खड़ा कर सकते है. लेकिन, चाहे वो 2015 का वर्ल्ड रहा हो या फिर 2019 का या फिर इन दोनों के बीच 2017 चैंपियंस ट्रॉफी. इन सबमें आपको एक ही समानता देखने को मिलेगी. टॉप ऑर्डर की तिकड़ी से खूब रन बनते हैं लेकिन निर्णायक मुकाबलों में (सेमी-फाइनल और फाइनल में) ये एक साथ नाकाम होते हैं और मिडिल ऑर्डर जिसके खिलाड़ियों के पास प्रैक्टिस का अभाव होता है उससे अचानक चमत्कारिक खेल की उम्मीद की जाने लगती है.
बावजूद इसके बीसीसीआई, भारतीय चयनकर्ताओं, कप्तानों और कोच ने अतीत से कुछ भी सबक लेने से लगातार इंकार ही किया है.
धवन-शर्मा-कोहली की तिकड़ी का अंदाज वन-डे क्रिकेट में लगभग एक जैसा ही है. तीनों में से कोई भी पहली गेंद से ही बेहद आक्रामक मूड में नजर नहीं आता है जिससे ऐसा लगे कि भारतीय टीम इंग्लैंड के आधुनिक वनडे टैमप्लेट पर काम करते हुए हर मैच में सिर्फ 300 नहीं बल्कि 350 का लक्ष्य तय करती हो.
अजीब विडंबना की बात ये है कि साउथ अफ्रीका के खिलाफ धवन के सबसे ज्यादा कामयाब होने से टीम इंडिया की उलझनें वनडे क्रिकेट में घटने की बजाए बढ़ी ही है. बायें हाथ के धवन ना सिर्फ साउथ अफ्रीका के खिलाफ सबसे कामयाब बल्लेबाज बनकर उभरे बल्कि 10 मार्च 2019 के बाद से 22 वनडे मैचों में उनका औसत 56 से ज्यादा का रहा है जबकि उनका करियर औसत 45 का रहा है. यही नहीं धवन का स्ट्राइक रेट भी बेहतर हुआ है जो करीब 96 के पास है.
लेकिन, 2011 वर्ल्ड कप में घरेलू मैदान पर कामयाबी ने दिखाया था कि तेंदुलकर,सहवाग, युवराज, धोनी जैसे खिलाड़ियों का अनुभव टीम के लिए कितना कारगर साबित होता है. कुल मिलाकर देखा जाए तो ऐसे में चयनकर्ताओं और कोच राहुल द्रविड़ के सामने अहम सवाल यही है कि इस गुत्थी को कैसे सुलझाया जाय.
इतना ही नहीं वन-डे क्रिकेट में भारतीय क्रिकेट के भविष्य को ध्यान में रखते हुए कई अहम सवालों पर भी गंभीरता से गौर करने की जरूरत आ पड़ी है.
क्या टीम इंडिया रोहित के साथ ईशान किशन को ओपनर बनाने के बारे में सोच सकती है?
क्या कोहली को तीसरे नंबर की बजाए चौथे नंबर पर बल्लेबाजी करने के लिए कहा जा सकता है जो पिछले वर्ल्ड कप में टीम इंडिया की सबसे बड़ी परेशानी बनकर उभरी थी?
क्या ऋषभ पंत को मिडिल ऑर्डर की बजाए ओपनर या फिर नंबर 3 पर धुआंधार तरीके से खेलने की छूट दी जा सकती है?
ये तो सिर्फ और सिर्फ टॉप ऑर्डर को लेकर सवाल हैं और इसके बाद मिडिल ऑर्डर और फिर ऑलराउंडर और स्पिनर और तेज गेंदबाजों को लेकर भी नये तरीके से विचार करने का वक्त आ चुका है.
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