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वर्ल्ड कप 2019 में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले रोहित शर्मा ने वनडे क्रिकेट में दुनिया के सबसे सफल बल्लेबाजों में अपनी जगह बनाई है. इसके बावजूद टेस्ट क्रिकेट में रोहित भारतीय टीम में अपनी जगह पक्की नहीं कर पाए.
लेकिन सफल वर्ल्ड कप के बाद ये उम्मीद लगाई गई थी कि रोहित को अब टेस्ट टीम में जगह मिल ही जाएगी. इसमें रोहित की अच्छी फॉर्म के अलावा मिडिल ऑर्डर में अजिंक्य रहाणे की खराब फॉर्म भी कारण थी.
वेस्टइंडीज दौरे के लिए रोहित को टेस्ट स्क्वॉड में शामिल तो किया गया लेकिन वेस्टइंडीज के खिलाफ हुए दोनों टेस्ट मैच में प्लेइंग इलेवन में जगह नहीं मिल पाई.
राहुल को दोनों टेस्ट में मयंक अग्रवाल के साथ ओपनिंग के लिए उतारा गया लेकिन राहुल पूरी तरह से नाकाम रहे. अब ऐसे में फिर यही मांग और सवाल उठने लगा है कि आखिर राहुल कब तक? रोहित शर्मा को जगह क्यों नहीं?
मसला सिर्फ वेस्टइंडीज का ये दौरा नहीं हैं. राहुल की नाकामी पिछले डेढ़ साल से लगातार चल रही है. इसमें भी मुद्दा सिर्फ रन बनाने में असफल होने का नहीं है, बल्कि जिस तरह से वो अपने विकेट गंवाते रहे हैं, वो भी उन पर सवाल खड़े करता है.
इसी तरह पिछले काफी समय से राहुल के आउट होने का पैटर्न बहुत हद तक एक सा रहा है. राहुल ज्यादातर मौकों पर अंदर आती हुई गेंदों पर बोल्ड हुए हैं. इसके साथ-साथ ऑफ स्टंप की लाइन में भी वो विकेट के पीछे आसानी से आउट होते रहे हैं.
ऐसा नहीं है कि इस तरह से आउट होने वाले राहुल पहले बल्लेबाज हों. कई दिग्गजों को अपने करियर में ऐसे दौर से गुजरना पड़ा है, लेकिन कोई भी अपनी गलती को सुधारने में इतना वक्त नहीं लगाता, जितना राहुल ने ले लिया है. उस पर भी वो अभी तक अपनी कमजोरी को दूर नहीं कर पाए हैं.
खेल की दुनिया में आंकड़े हमेशा पूरी कहानी बयां नहीं करते, लेकिन वो एक ऐसा पहलू जरूर बताते हैं, जो सच के करीब होता है. केएल राहुल के मामले ये आंकड़े सच्चाई के बेहद करीब हैं.
राहुल के जिस टैलेंट की हमेशा तारीफ होती रही है और जिसकी झलक उन्होंने शुरुआती दौर में दिखाई भी, वो उनकी लापरवाही और खासतौर पर पिछले डेढ़ साल के उनके प्रदर्शन के बिल्कुल उलट है.
राहुल ने इस दौरान सिर्फ एक शतक, इंग्लैंड के खिलाफ 149 रन, लगाया है. इसके अलावा अफगानिस्तान के खिलाफ 1 फिफ्टी उनके खाते में आई.
इसमें जो सबसे परेशान करने वाली बात रही है वो ये कि राहुल ने कुछ पारियों में शुरुआत तो अच्छी की, लेकिन अपनी कमजोरी के कारण वो उसे आगे नहीं बढ़ा पाए. साथ ही 2018 में ही वो 4 बार जीरो पर आउट हुए, जो बाकी सालों में मिलाकर भी उनसे ज्यादा है.
ऐसे प्रदर्शन के बाद सवाल उठना लाजमी है कि राहुल क्यों अभी तक टीम में बने हुए हैं. दरअसल राहुल खराब प्रदर्शन के बाद राहुल पर गाज न गिरने का एक कारण टीम मैनेजमेंट का उन पर भरोसा रहा है. कप्तान कोहली और कोच शास्त्री को उनकी क्षमता पर बेहद विश्वास है.
पृथ्वी शॉ टीम में बतौर ओपनर अपनी जगह लगभग पक्की कर चुके थे लेकिन पहले पैर पर लगी चोट और फिर डोप टेस्ट में फंसने के कारण वो फिलहाल कुछ वक्त तक टीम का हिस्सा नहीं बन पाएंगे.
ऐसे में टीम को नए बल्लेबाज मयंक अग्रवाल के साथ एक अनुभवी बल्लेबाज चाहिए था. ये ही बात राहुल के पक्ष में गई.
लगातार मिल रहे मौकों के बाद भी राहुल के असफल होने पर अब ये सवाल उठने लगा है कि रोहित को जगह क्यों नहीं मिल रही है.
हालांकि टेस्ट में रोहित का रिकॉर्ड भी बहुत बेहतर नहीं है, लेकिन उसके पीछे एक कारण टीम में उनको निरंतर जगह नहीं मिलना भी माना जाता रहा है. 2013 में अपने टेस्ट करियर की शुरुआत करने के बावजूद अभी तक रोहित ने सिर्फ 27 टेस्ट खेले हैं.
इसके अलावा चोट ने भी उनके टेस्ट करियर को प्रभावित किया. 2018-19 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सीरीज के दौरान रोहित अच्छे टच में थे लेकिन चोट के कारण वो सीरीज से बाहर हो गए.
इस सबके बावजूद रोहित के पक्ष में उनकी मौजूदा फॉर्म का हवाला दिया जा सकता है. लिमिटेड ओवर क्रिकेट में रोहित अपने करियर की सबसे बेहतरीन फॉर्म में हैं. हाल के महीनों में उन्होंने लगभग हर टीम के खिलाफ शानदार बल्लेबाजी की है.
याद रहे कि वनडे-टी-20 में भी रोहित का करियर तभी चढ़ा जब उन्हें मिडिल ऑर्डर से उठाकर टॉप ऑर्डर पर लाया गया. रोहित के पक्ष में वीरेंद्र सहवाग का भी एक उदाहरण दिया जा सकता है.
सहवाग ने भी अपना टेस्ट करियर मिडिल ऑर्डर बल्लेबाज के तौर पर शुरू किया लेकिन ओपनिंग में आते ही वो ज्यादा बेहतर बल्लेबाज साबित हुए. वैसे भी राहुल की नाकामी को देखते हुए टीम इंडिया को एक बैटिंग ऑर्डर के टॉप पर एक अनुभवी बल्लेबाज की जरूरत है.
भारतीय टीम मैनेजमेंट ने वेस्टइंडीज के खिलाफ इस पूरे दौरे में प्रयोग करने के कुछ अच्छे मौके गंवा दिए. अब टीम के पास फिलहाल एक मौका साउथ अफ्रीका के साथ 2 अक्टूबर से होने वाली घरेलू टेस्ट सीरीज है.
अफ्रीकी टीम को भले ही कमजोर नहीं आंका जा सकता, लेकिन मौजूदा स्थिति में वो बहुत मजबूत भी नहीं हैं. ऐसे में अपनी परिस्थितियों में टीम मैनेजमेंट के पास ये प्रयोग करने का सबसे अच्छा मौका है.
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