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भारतीय क्रिकेट में राहुल द्रविड़ (Rahul Dravid) ने जब कप्तानी संभाली, तो लगभग वो सबसे कठिन दौर था. पूर्व कप्तान सौरव गांगुली की सार्वजनिक तौर पर कोच ग्रेग चैपल से लड़ाई हो चुकी थी और सचिन तेंदुलकर, वीरेंद्र सहवाग, हरभजन सिंह समेत कई सीनियर खिलाड़ियों ने ऑस्ट्रेलियाई कोच के खिलाफ बगावती सुर तेज कर दिये थे.
ये काबिल-ए-तारीफ बात इसलिए है कि क्योंकि बेहद खटास रहने वाले गांगुली भी उस नाजुक दौर में कोच को भले ही कितना भी भला-बुरा कह देते, लेकिन क्या मजाल कि वो द्रविड़ के खिलाफ एक भी गलत शब्द बोल दें. क्योंकि ना सिर्फ गांगुली, बल्कि पूरे भारत को द्रविड़ की निष्ठा पर सवाल उठाने के बारे में सोचने की जरुरत ही नहीं पड़ी.
कोच के तौर पर द्रविड़ ने ये नहीं सोचा होगा कि उन्हें फिर से ड्रेसिंग रुम में तालमेल बिठाने के लिए बड़ी शख्सियतों को एक साथ लाने की चुनौती से दोबारा गुजरना पड़ सकता है. द्रविड़ को ये बात कोच बनने से पहले पता थी और इसलिए गांगुली उन्हें कोच बनवाने की जिद पर अड़े हुए थे.
बीसीसीआई जानती है कि वो चाहकर भी विराट कोहली से टेस्ट क्रिकेट की कप्तानी छीन नहीं सकते हैं. उसके अलावा कोहली ने वन-डे क्रिकेट में भी कप्तानी बरकरार रखने के इरादे जाहिर किए हैं. वहीं रोहित शर्मा को टी20 का कप्तान बनाया जा चुका है और इस बात के आसार है कि वन-डे टीम की कप्तानी भी उन्हीं के हाथों में दी जाए.
ऐसे में बिल्ली के गले में घंटी बांधे तो कौन बांधे? और यही मुश्किल काम द्रविड़ को दिया गया है. नियमित कप्तान नहीं होने के बावजूद द्रविड़ ने भारतीय क्रिकेट का सबसे साहसी फैसला लेने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई थी, जब उन्होंने 2004 के मुल्तान टेस्ट में सचिन तेंदुलकर को दोहरे शतक से सिर्फ 6 रन से दूर होने के बावजूद पारी घोषित कर दी थी.
द्रविड़ का मानना था कि टीम हित से बड़ा कुछ भी नहीं. लेकिन तेंदुलकर जैसे सुपर स्टार को ये बात हजम नहीं हुई. मामला काफी विवादों के घेरे में आया, लेकिन द्रविड़ ने बात को हद से ज्यादा बिगड़ने से पहले संभाल लिया. कोहली जैसे सुपरस्टार के साथ बात करने में द्रविड़ इस बात का ख्याल जरुर रखेंगे कि कोई भी बात किसी भी तरह से ना बिगड़े.
दोनों खिलाड़ी फिलहाल अपने करियर के बेहद संकट वाले दौर से गुजर रहें है और हर कोई इन्हें बाहर करने की दलीलें दे रहा है. कोई भी इस बात को याद रखने को तैयार नहीं कि द्रविड़ जैसे बल्लेबाज के संन्यास के बाद विदेशी पिचों पर कभी रहाणे तो कभी पुजारा ही उम्मीद की एक बड़ी वजह बनकर उभरें हैं, जिन्होंने कोहली के भार को कम किया है. मुंबई टेस्ट में रहाणे को खेलने का मौका नहीं मिला, वजह चाहे कुछ भी रही हो.
मुमकिन ये भी था कि इन दोनों के लिए कानपुर का टेस्ट ही उनके करिअर का आखिरी टेस्ट साबित हो सकता था. लेकिन, द्रविड़ ने इन दोनों खिलाड़ियों पर भरोसा नहीं खोया है और इसलिए ये दोनों साउथ अफ्रीका के दौरे पर होंगे. अगर वो दौरा रद्द भी हो जाता है तो पुजारा तो श्रीलंका के खिलाफ अगले साल टेस्ट सीरीज में जरुर खेलेंगे. हां, रहाणे के भविष्य के बारे में एकदम से ठोस राय नहीं रखी जा सकती है.
द्रविड़ जानते हैं कि कैसे उनके, वीवीएस लक्ष्मण और सचिन तेंदुलकर के करीब एक साल के भीतर संन्यास लेने के चलते अचानक टेस्ट टीम पर कितना दबाव पड़ा था.
कोच के तौर पर द्रविड़ कभी नहीं चाहेंगे कि फिर से टेस्ट टीम में अचानक से करीब 300 टेस्ट का अनुभव गायब न हो जाए क्योंकि रहाणे-पुजारा के साथ-साथ ईशांत शर्मा का भी करिअर लाल गेंद की क्रिकेट में लंबा खिंचता नहीं दिख रहा है.
ऐसे में हमेशा से किसी खिलाड़ी विशेष की साख और करियर की परवाह नहीं करते हुए टीम हित में जो सही हो वही फैसला लेने वाले द्रविड़ से एक बार फिर उसी तरह की निरंतरता की उम्मीद करना गलत नहीं है.
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