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भारतीय पुरुष हॉकी टीम 49 साल के बाद ओलंपिक (Olympic 2020) के सेमीफाइनल में पहुंची, हालांकि वो मैच हार चुकी है. टीम इंडिया के पास अब भी मेडल जीतने का मौका है. वह अब ब्रॉन्ज मेडल के लिए खेलेगी. यही हाल महिला हॉकी टीम का भी है, जिन्होंने क्वॉटरफाइनल में दो बार की ओलंपिक चैंपियन ऑस्ट्रेलियाई टीम को सनसनीखेज तरीके से मात दी और सेमीफाइनल में जगह पहली बार पक्की की, लेकिन उनका भी मैडल अभी तक पक्का नहीं है जबतक कि वो अर्जेटीना को ना हरायें... लेकिन, महिला बॉक्सर लवलीना बॉरगोहेन भी तो सेमीफाइनल में पहुंची हैं और उन्हें अभी खेलना बाकि है तो फिर उनका मैडल जीतना पक्का कैसे हो गया?
दरअसल, ये उलझन ना सिर्फ आम खेल प्रशंसकों को है बल्कि अच्छे से अच्छे जानकारों को भी हैरान कर देता है. दरअसल, ओलपिंक खेलों में पदक दिए जाने की परंपरा और नियमों में बदलाव होते आये हैं, लेकिन बॉक्सिंग इकलौता ऐसा खेल है, जहां पर सेमीफाइनल में हार हो या जीत, खिलाड़ी का कांस्य पदक पक्का हो जाता है.
ऐसा नहीं है कि सिर्फ बॉक्सिंग में ही दो कांस्य पदक दिए जाते हैं. कुश्ती,कर्राटे और ताइकांडो जैसे खेल जहां पर आपको सीधे अपने विरोधी से शारिरिक तौर पर भिड़ना पड़ता उसमें भी हारने वाले सेमीफाइनलिस्ट को ब्रांज मिलते हैं, लेकिन उसमें एक पेंच है.. हारने वाले को बॉक्सिंग की तरह एकदम आसानी से कांस्य ना मिलकर repechage system सिस्टम से गुजरना पड़ता है.. यानि उन्हें एक बार फिर से मुकाबले में उतरना पड़ता है और जीतना पड़ता है तब उनका मैडल पक्का होता है.
अब आप पूछेंगे कि आखिर ये रेपचेज नियम है क्या? वैसे इससे अब भारतीय फैंस अंजान नहीं हैं क्योंकि 2008 बीजिंग ओलंपिक में सुशील कुमार , 2012 में योगेश्वर दत्त और 2016 में साक्षी मलिक भी इसी रेपचेज की वजह से मेडल जीतने में कामयाब हुए हैं.
दरअसल, रेपचेज एक ऐसा फॉर्मेट है, जो शुरुआती दौर में हारने वाले पहलवानों को एक और वापसी का मौका देता है, अगर फाइनल में पहुंचने वाले दो पहलवानों ने जिन विरोधियों को नॉकआउट दौर में हराया या मात दी है, उन खिलाड़यों को रेपचेज राउंड के जरिए कांस्य पदक जीतने का मौका मिलता है, लेकिन, ये इतना आसान भी नहीं होता है, क्योंकि दो कांस्य पदक उन दो पहलवानों को दिए जाते हैं, जो फाइनल में पहुंचने वाले पहलवान के सबसे मजबूत प्रतिद्वंदी साबित होते हैं.
पहले दौर में फाइनलिस्ट से हारने वाला खिलाड़ी दूसरे दौर में हारने वाले खिलाड़ी से लड़ता है, इन दोनों में से फिर जो जीतता है वह अगले दौर में हारने वाले खिलाड़ी से टकराता है. आखिर में, जो खिलाड़ी जीत हासिल करते हैं उन्हें कांस्य पदक दिया जाता है.
बहरहाल, लवलीना इस मामले में भाग्यशाली हैं कि वो 2021 में ओलंपिक में हिस्सा ले रही हैं..करीब 7 दशक पहले अगर वो ओलंपिक में खेलती तो सिर्फ सेमीफाइनल में पहुंचने पर ही उनका मैडल पक्का नहीं होता, क्योंकि बॉक्सिंग में भी ये नियम 1952 से आया और वो भी तब जब फेडरेशन ने ये दलील दी कि खिलाड़ी सेमीफाइनल में हारने के बाद मानसिक और शारिरिक तौर पर थका होता है, चोटिल होता है और ऐसे में सिर्फ कांस्य के लिए एक और मुकाबला खेलने के लिए कहना सही नहीं. बहरहाल, लवलीना भारतीय बॉक्सिंग में निश्चित तौर पर इतिहास रचना चाहेंगी और कोशिश करेंगी कि वो विजेंदर सिंह और मैरी कॉम से एक कदम आगे बढ़ें.. इन दोनों मुक्केबाजों ने भी सेमीफाइनल में हार के बाद ब्रांज हासिल किया था.
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