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विश्व कप से ठीक पहले खिलाड़ियों के लिए यह बहुत जरूरी होता है कि उनकी फॉर्म बरकरार रहे. कई सालों की मेहनत भी बेकार होती है अगर इस समय के दौरान किसी खिलाड़ी को खराब फॉर्म से जूझना पड़े. शिखर धवन, जिन्हें 2013 आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में ‘मैन ऑफ द सीरीज’ खिताब मिला था और वह विश्वकप 2015 और चैंपियंस ट्रॉफी 2017 में भारत के लिए सबसे ज्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी थे, पिछले छः महीनों में कुछ ऐसी ही खराब फॉर्म से गुजर रहे थे.
जहां एक तरफ उनके सलामी जोड़ीदार रोहित शर्मा ने इस समय के दौरान 56.13 की बढ़िया औसत के साथ 17 पारियों में 842 रन बनाए, वहीं दूसरी तरफ धवन ने इतनी ही पारियों में 24.50 की खराब औसत के साथ केवल 392 रन ही बनाए.
मौजूदा सीरीज के शुरुआती तीन एकदिवसीय मुकाबलों में धवन की नाकामयाबी से ऐसा लग रहा थे कि शीर्ष क्रम में राहुल को धवन की जगह दे दी जाएगी लेकिन कप्तान विराट कोहली और टीम मैनेजमेंट ने दिल्ली के इस बल्लेबाज पर भरोसा जताया और उन्हें मोहाली में चौथे मैच में मौका दिया और मोहाली वह जगह है जहां उन्होंने इसी विरोधी टीम के खिलाफ शानदार 187 रनों की पारी खेलते हुए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अपने आगाज किया था.
दिल्ली के इस बाएं हाथ के बल्लेबाज के लिए उस भरोसे को जीतने के लिए इससे बड़ी पारी और क्या हो सकती थी. 115 गेंदों पर 143 रनों की धमाकेदार पारी खेलते हुए उन्होंने अपनी फॉर्म में वापसी की. अपनी पारी की शुरुआत से ही उनका आत्मविश्वास बहुत ऊंचा था और मोहाली में उनका स्वैग कुछ वैसा ही था जैसा उन्होंने टेस्ट मैच में 2013 में इसी मैदान पर अपनी पहली शतकीय पारी के दौरान दिखाया था.
ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों के पास उस समय भी उनके शानदार प्रदर्शन का कोई जवाब नहीं था और इस बार भी वे सिर्फ दर्शक बनकर खड़े थे. शिखर ने यहां ड्राइव, कट, पुल, स्लैश हर तरह के शॉट खेले. 21 बार जब उन्होंने गेंद को सीमारेखा से बाहर भेजा तब उनके स्ट्रोक-प्ले का हर किसी ने आनंद उठाया.
इतना ही नहीं, यह पारी उनके लिए इसलिए भी खास थी क्योंकि वे हालिया समय में अपनी खराब फॉर्म से जूझ रहे थे. पिछले कुछ मैचों में लेफ्ट-आर्म पेस के खिलाफ उन्हें काफी परेशानी हुई है. धवन इस साल बाएं हाथ के तेज गेंदबाज के खिलाफ छः बार आउट हुए हैं (चार बार ट्रेंट बोल्ट और दो बार जेसन बेहरेंडॉर्फ के खिलाफ) लेकिन इस बार मोहाली में वह इस पहलू से निपटने की मन में ठान कर आये थे.
एक और तेज गेंदबाज झाय रिचर्डसन की गेंदों को भी धवन ने मैदान के चारों ओर पहुंचाया. एक बाएं हाथ के बल्लेबाज के खिलाफ ऑफ-ब्रेक गेंदबाजी का स्वाभाविक फायदा पाने के लिए ग्लेन मैक्सवेल को भी गेंदबाजी सौंपी गई लेकिन धवन ने उन्हें भी नहीं बख्शा और मैक्सवेल की 15 गेंदों पर 26 रन बटोरे.
उन्होंने अपना अर्धशतक महज 44 गेंदों में पूरा किया जिससे उनकी आक्रामकता का पता चलता है. हालांकि उनका दूसरा पचास थोड़ा धीमा था जो 53 गेंदों में आया लेकिन इसके बाद उन्होंने फिर से अपना गियर बदला और अगले 43 रन मात्र 18 गेंदों में ठोक डाले और इसके साथ ही उन्होंने एकदिवसीय मैचों में अपना सर्वाधिक स्कोर भी बनाया. इससे पहले उनका सर्वाधिक स्कोर 137 रन था. वह और अधिक रन बनाने की स्थिति में थे लेकिन पैट कमिंस की गेंद को मिड विकेट पर मारने के प्रयास में वो क्लीन बोल्ड हुए और उनकी शानदार पारी का यहां अंत हो गया.
हालांकि अंतिम परिणाम भारत के पक्ष में नहीं रहा क्योंकि एश्टन टर्नर की मात्र 43 गेंदों में 87 रनों की तूफानी पारी ने ऑस्ट्रेलिया को 359 रनों के चुनौतीपूर्ण लक्ष्य को हासिल करने में मदद की. लेकिन शिखर धवन का फॉर्म में वापस आना भारतीय खेमे को मजबूत करेगा.
दरअसल पिछले 6 महीनों से हो रही उनकी आलोचना न्यायसंगत नहीं थी. आईसीसी टूर्नामेंट्स में भारत के लिए वह शानदार प्रदर्शन कर चुके हैं जो उनके 65.47 के बेहतरीन औसत के साथ बनाए गए 1113 रनों से साफ जाहिर होता है, जिसमें पांच शतक भी शामिल हैं. इसलिए सिर्फ कुछ समय के लिए आई खराब फॉर्म के चलते विश्वकप के लिए उनकी क्षमता पर संदेह करना गलत है. अब जब उन्होंने आलोचकों के मुंह बंद करा दिए हैं तो भारत अब चैन की सांस ले सकता है और विश्वकप से पहले आखिरी मुकाबले में अन्य चीजों को सुधारने पर फोकस कर सकता है.
(प्रसेनजीत डे एक फ्रीलांस क्रिकेट राइटर हैं. @CricPrasen पर उनसे संपर्क किया जा सकता है. व्यक्त किये गए विचार लेखक के अपने विचार हैं और द क्विंट इन विचारों का न ही समर्थन करता है और न ही इनके लिए जिम्मेदार है.)
(यह आर्टिकल पहली बार 11.03.19 को पब्लिश हुआ था)
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