ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अहम मैच में टीम इंडिया की जीत तो दरअसल टॉस के साथ ही हो गई थी. विराट कोहली ने टॉस जीतने के बाद जैसे ही पहले बल्लेबाजी का एलान किया उन्होंने कंगारुओं को दबाव में ले लिया.
इस मनोवैज्ञानिक जीत की दो वजहें थीं. पहली वजह- भारतीय टीम को लक्ष्य का पीछा करने में ज्यादा माहिर माना जाता है, बावजूद इसके टीम इंडिया ने पहले बल्लेबाजी का फैसला किया. दूसरी वजह- दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ शुरूआती ओवरों में तेज गेंदबाजों के खिलाफ अहसज दिखे भारतीय टीम के टॉप ऑर्डर का अपेक्षाकृत मुश्किल मानी जा रही ऑस्ट्रेलिया की पेस बैटरी के खिलाफ बल्लेबाजी के लिए मैदान में उतरना.
भारतीय टीम की रणनीति बिल्कुल साफ थी. शुरूआती ओवरों में अनावश्यक जोखिम लिए बिना विकेट बचाए रखना और बाद में गेंदबाजों पर हमला बोलना. यही वजह है की टीम इंडिया ने पहले 20 ओवरों में रन तो 111 ही बनाए लेकिन विकेट कोई नहीं खोया. बाद के दस ओवरों में विकेट रहने का फायदा उठाते हुए टीम इंडिया ने 116 रन जोड़े. इसमें हार्दिक पांड्या और महेंद्र सिंह धोनी की बल्लेबाजी अहम रही.
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नकल के लिए भी अक्ल चाहिए
मैच के हालात और कंगारुओं की गलतीआपको इन आंकड़ों में समझ आ जाएगी. कंगारुओं की टीम 10वें ओवर से लेकर तीसवें ओवर तक बिल्कुल उसी पैटर्न पर बल्लेबाजी कर रही थी, जिस पर टीम इंडिया ने की थी. लेकिन तीसवें से चालीसवें ओवर के बीच कहानी तेजी से पलटी. चालीसवें ओवर तक आते-आते कंगारुओं ने भारत के मुकाबले रन तो ज्यादा जोड़ लिए थे लेकिन उसकी आधी टीम पवेलियन लौट चुकी थी. रिक्वायर्ड रन रेट का यही दबाव कंगारुओं की टीम नहीं झेल पाई.
टॉप ऑर्डर दिखा अति सुरक्षात्मक
कंगारुओं ने रणनीति तो ठीक चुनी लेकिन वो जरूरत से ज्यादा ‘डिफेंसिव’ हो गए. उन्होंने इस बात को नजरअंदाज कर दिया कि बाद के 4-5 ओवरों में तो रनों की रफ्तार जमकर बढ़ाई जा सकती है लेकिन उसके लिए विकेट हाथ में होने चाहिए. आखिरी के 4-5 ओवरों में तो ताबड़तोड़ शॉट्स खेले जा सकते हैं, लेकिन अगर आखिरी के पंद्रह ओवरों में रिक्वायर्ड रन रेट 11 रनों से ज्यादा का हो चुका हो तो उसे हासिल करना आसान नहीं होता.
आखिर में यही सुस्त बल्लेबाजी कंगारुओं को भारी पड़ी. ऑस्ट्रेलिया के टॉप ऑर्डर ने ये जानते हुए भी कि पिच सपाट है और उस पर गेंद की मेरिट के हिसाब से रन बनाना चाहिए धीमी बल्लेबाजी की, जो उनके स्वाभाविक खेल से बिल्कुल मेल नहीं खाती. वॉर्नर और स्मिथ जैसे दिग्गज बल्लेबाजों ने ये गलती की. ये आंकड़े देखिए -
सपाट पिच पर भी दिखा कंगारुओं का डर
- डेविड वॉर्नर ने 84 गेंद पर सिर्फ 56 रन बनाए
- स्मिथ ने 70 गेंद पर 69 रन बनाए
ऑस्ट्रेलिया को सुस्त बल्लेबाजी का नुकसान
इस सुस्त बल्लेबाजी का नुकसान ये हुआ कि बाद के बल्लेबाजों पर तेजी से रन बटोरने का दबाव बढ़ता चला गया. दुनिया की कोई भी टीम जब साढ़े तीन सौ रनों के लक्ष्य का पीछा कर रही होती है तो उसे तेज शुरूआत दिलाने की जिम्मेदारी टॉप ऑर्डर पर ही होती है. ये सोच कंगारुओं में दिखी ही नहीं. बाद के ओवरों में उस्मान ख्वाजा और ग्लेन मैक्सवेल जैसे खिलाड़ी इसी दबाव में अपना विकेट गंवा बैठे. विकेटकीपर एलेक्स कैरी ने ताबड़तोड़ अर्धशतक लगाकर कंगारुओं के पक्ष में मैच मोड़ने की कोशिश जरूर की, लेकिन लोअर ऑर्डर ने बिल्कुल ही उनका साथ नहीं दिया.
टीम इंडिया के बल्लेबाजों का शुरूआती ओवरों में धीमी बल्लेबाजी करना जायज था, क्योंकि अव्वल तो पिच से तेज गेंदबाजों को मदद मिलने की संभावना थी, दूसरे शिखर धवन इंग्लैंड में रनों का इंतजार कर रहे थे. लेकिन जब एक बार पिच का मिजाज समझ आ गया को कंगारुओं को शुरू से ही आक्रामकता दिखानी चाहिए थी.
टॉप ऑर्डर की सुस्त बल्लेबाजी के बाद ग्लेन मैक्सवेल और कूल्टर नाइल जैसे धाकड़ बल्लेबाज कंगारुओं के प्लेइंग 11 में मौजूद तो थे, लेकिन उनकी भी सीमाएं हैं. दोनों बल्लेबाजों ने अपना विकेट हड़बड़ी में गंवाया. लिहाजा भारतीय टीम की बल्लेबाजी जैसा ‘पैटर्न’ तो देखने को मिला लेकिन नतीजा उलट रहा.
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