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फोन ट्रैकिंग, AI...कोरोना से लड़ने के लिए ऐसी तरकीब लगा रही दुनिया

सरकार और हेल्थ एजेंसियां कोरोनावायरस को फैलने से रोकने की हरसंभव कोशिश कर रही हैं.

सुशोभन सरकार
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सरकार और स्वास्थ्य एजेंसियां वायरस को फैलने से रोकने की हरसंभव कोशिश कर रही हैं.
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सरकार और स्वास्थ्य एजेंसियां वायरस को फैलने से रोकने की हरसंभव कोशिश कर रही हैं.
(फोटो: Aroop Mishra/ The Quint)

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जब भारत के शहरों में आंशिक बंदी है. 300 से ज्यादा लोग COVID-19 पॉजिटिव पाए जा चुके हैं और 7 लोगों की मौत हो चुकी है, सरकार और हेल्थ एजेंसियां वायरस को फैलने से रोकने की हरसंभव कोशिश कर रही हैं.

हेल्थ ट्रैकिंग ऐप्स से लेकर लोगों की आवाजाही पर नजर रखने तक, दुनिया भर की सरकारों ने कई तरह के तकनीकी साधनों की मदद ली है ताकि वायरस का मुकाबला कर इसे खत्म किया जा सके.

बहुत कम लोगों को पता है कि कनाडा की टेक कंपनी ब्लूडॉट ने सबसे पहले चीन से फैलने वाले इस वायरस की महामारी ताकत का अंदाजा लगा लिया था.

कंपनी के मुताबिक, इसने एडवांस डेटा एनालिटिक्स के जरिए पब्लिक हेल्थ और मेडिकल जानकारियों को मिलाकर संक्रमण से फैलने वाली बीमारियों को ट्रैक करने और समझने की कोशिश की.

जनवरी में इस बीमारी की शुरुआत के बाद, नीतिकार लगातार टेक्नोलॉजी के जरिए इसकी - जिसने पूरी दुनिया में अब तक 13000 से ज्यादा लोगों की जान ले ली - पहचान, तलाश और खात्मे की कोशिश में लगे हैं.

टेक्नोलॉजी के मोर्चे पर इसे रोकने के लिए भारत क्या कर रहा है? हेल्थकेयर वर्कर, अधिकारियों और लोगों की सहायता के साथ उन्हें जानकारी मुहैया कराने के लिए क्या किया जा रहा है?

(COVID-19 पर लाइव अपडेट के लिए यहां क्लिक करें. कोरोनावायरस महामारी के असर पर हमारी विस्तृत कवेरज के लिए आप क्विंट फिट देख सकते हैं.)

सरकार के डिजिटल इंडिया प्रोग्राम और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का राष्ट्र के नाम संदेश के बावजूद, टेक्नोलॉजी की तैनाती को लेकर हमारे देश में जानकारी और पहल का अभाव है.

बड़ी बात ये है कि दूसरे देश आखिर क्या कर रहे हैं और भारत उनसे क्या सीख सकता है, खास तौर पर प्रभावी तरीके से नागरिकों की देखरेख, उनके हेल्थ डेटा के इस्तेमाल की गोपनीयता और निगरानी के असर को ध्यान में रखते हुए क्या पब्लिक-प्राइवेट सहयोग मुमकिन है?

हेल्थ ट्रैकिंग ऐप्स

चीन ने एक ऐप के जरिए व्यापक स्तर लोगों की मॉनिटरिंग शुरू की है, जिसमें लोगों की कलर कोडिंग – हरा, पीला या लाल - की गई है, जो कि उनके हेल्थ स्टेट्स के मुताबिक होता है.

Alipay Health Code नाम का ये ऐप सरकार ने ई-कॉमर्स कंपनी Alibaba के साथ मिलकर बनाया है, जिससे पता चलता है कि किसी शख्स को क्वॉरन्टीन करने की जरूरत है या नहीं?

हालांकि इससे लोगों में उनकी निगरानी को लेकर डर भी समा चुका है, क्योंकि न्यूयॉर्क टाइम्स की एक जांच में ऐप के कोड की स्टडी से पता चला कि लोगों की जानकारी पुलिस से साझा की जा रही है.

इससे भी बड़ी बात ये कि इसकी संभावना रहती है कि वायरस के इस संकट के खत्म होने के बाद भी ऐप लोगों की निगरानी जारी रखे.

भारत में केरल सरकार ने स्टार्ट अप कंपनियों के साथ मिलकर ऐसे ऐप्स तैयार किए हैं जिनसे लोगों में वायरस का भय खत्म हो और उन्हें जरूरी जानकारियां भी मिले. QKopy, कलिकट की एक कंपनी, ने अपनी प्लेटफॉर्म पर सरकार के लिए GoK – Direct Kerala नाम का एक ऐप तैयार किया.

‘कोरोनावायरस से जुड़ी जानकारियों की भरमार लगी है, कई बार तो लोगों को ये समझ नहीं आता कि क्या सही है क्या गलत. हमारे ऐप के जरिए सरकार लोगों तक विश्वसनीय जानकारियां पहुंचा रही है. 13 मार्च को लॉन्च करने के बाद, अब तक 2 लाख से ज्यादा लोग इसे डाउनलोड कर चुके हैं,’ राजीव सुरेन्द्रन ने कहा.

एंन्ड्रॉयड और iOS दोनों प्लेटफॉर्म पर मौजूद इस ऐप के जरिए सरकार एक-एक जिला के हिसाब से लोगों को जानकारियां दे रही है, उन्हें पल-पल की अपडेट मुहैया करा रही है. ये जानकारियां Text और Diagram के जरिए दी जाती हैं, यूजर्स को क्वॉरंटीन में मौजूद लोगों की संख्या, प्रभावित इलाकों और स्वास्थ्य सुविधाओं से जुड़ी सारी जानकारी दी जाती है,’ सुरेन्द्रन ने द क्विंट को बताया.

(Image: GoK - Direct App/ QKopy)
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डेटा एनालिटिक्स

सिंगापुर की तरह भारत में कोई आधिकारिक डैशबोर्ड मौजूद नहीं है जहां से लोगों को आसानी से सारे डेटा मिल जाएं. ये डैशबोर्ड Kiprosh जैसी प्राइवेट कंपनियों और स्टार्टअर्प ने बनाई है.

‘लोगों में भय कम हो और प्रभावित इलाकों को लेकर अफवाह पर लगाम लगे,’ Kiprosh ने भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण पर डैशबोर्ड तैयार किया है, कंपनी की वेबसाइट पर ये संदेश लिखा है.

‘हम स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की वेबसाइट और दूसरी जगहों से जानकारियां इकट्ठा कर रहे हैं. इसके बाद हम उसकी पड़ताल कर सारे डेटा को डैशबोर्ड में डालते हैं,’ डैशबोर्ड ने इसका उल्लेख किया.

(image: Kiprosh/ covidout.in

Staqu के सीईओ अतुल राय के मुताबिक भारत में COVID-19 से जुड़े ऐसे भरोसेमंद डेटा मौजूद नहीं है जिन्हें आपस में जोड़कर कोई जानकारी मुहैया कराई जाए. Staqu कंपनी आर्टिफिशियल इंजेलिजेंस पर आधारित एनालिटिक्स और सिक्योरिटी प्रोडक्ट तैयार करती है.

‘इस समय भारत में सिर्फ पूरा डेटा ना होने की परेशानी नहीं है, हमारे देश में कोराना के मामले भी अभी ज्यादा नहीं है,’ द क्विंट से बातचीत में राय ने बताया. ‘लेकिन आप अगर चीन और इटली जैसे ग्लोबल पावर की बात करें, तो रिसर्चर्स कई सारे संबंधित डेटा पर काम कर रहे हैं.’

राय ने बताया कि इसमें अंदरूनी और बाहरी दो तरह के मापदंड होते हैं. अंदरूनी मापदंड में प्रभावित इंसान के शरीर से जुड़ी जानकारी होती है, जबकि बाहरी मापदंड में इलाके का तापमान, नमी और जगह जैसी दूसरी जानकारियां होती हैं.

राय के मुताबिक, ‘दोनों तरह की जानकारियों को पहले ठीक से समझने की जरूरत होती है, इसके बाद जाहिर है AI इन मापदंडों का इस्तेमाल कर बीमारी और वातावरण के बीच के संबंधों की जानकारी निकाल लेता है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इसमें बड़ा योगदान देता है.’

स्मार्टफोन और आवाजाही की ट्रैकिंग

कई देशों ने तो इसे पहले से ही अपना लिया है या फिर स्मार्टफोन के जरिए लोगों की आवाजाही पर नजर रखने के लिए लोकेशन ट्रैकिंग की प्रकिया शुरू कर दी है ताकि वायरस से संक्रमित और संदिग्ध लोगों की निगरानी की जा सके.

जहां ताइवान, सिंगापुर और साउथ कोरिया में लोकेशन ट्रैकिंग कामयाब रही है, इजरायल की सरकार ने संक्रमित और संदिग्ध लोगों के मोबाइल फोन भी मॉनिटर करने के आदेश दे दिए हैं.

यश कड़ाकिया, मुंबई साइबर सिक्योरिटी कंपनी - सिक्योरिटी ब्रिज - के फाउंडर, ने कहा कि टेलीकॉम डेटा उपयोगी साबित हो सकते हैं लेकिन इस कदम में गोपनीयता के भंग होने का खतरा है. ‘साउथ कोरिया ने टेलीकॉम सिग्नल के जरिए ये भी पता कर लिया कि पिछले 10-15 दिनों में वायरस से संक्रमित लोग कहां-कहां गए. लेकिन जाहिर है इसमें गोपनीयता का पहलू भी जुड़ा है,’ कड़ाकिया ने द क्विंट को बताया.

उन्होंने कहा, ‘एयरपोर्ट के मसले में सरकार के पास डेटा की भरमार है. इस क्षेत्र में एनालिटिक्स लोगों और उनके लोकेशन को जोड़ने में बड़ा किरदार निभा सकता है, लेकिन इस बारे में क्या किया जा रहा है इसकी जानकारी के बिना कुछ कहा जाना ठीक नहीं है,’

अमेरिका सरकार ने इस बीच प्राइवेट सेक्टर, जिसमें गूगल और फेसबुक भी शामिल है, से लोकेशन डेटा इकट्ठा करने के बारे में बात शुरू की है, ताकि लोगों के मूवमेंट के आधार पर बीमारी के फैलाव को समझने की कोशिश की जा सके.

जहां ऐसी जानकारियां फायदेमंद साबित होंगी, गोपनीयता पर हमले का डर भी वाजिब है. हेल्थ और लोकेशन से जुड़ी जानकारियां बेहद संवेदनशील और निजी होती हैं. इससे जासूसी या डेटा के दुरुपयोग का खतरा बना रहता है.

टेलीमेडिसीन

14 मार्च को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने घोषणा की कि सरकार कानून में छूट देने जा रही है ताकि डॉक्टर दूरदराज इलाकों में भी लोगों को मेडिकल सुविधा मुहैया करा सकें. Skype जैसे वीडियो सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर टेलीमेडिसीन की सुविधा देने से अस्पतालों पर बोझ कम होगा और आइसोलेशन में रहने वाले लोगों की देखरेख में आसानी होगी.

भारत में टेलीमेडिसीन को लेकर अभी तक किसी तरह की घोषणा नहीं की गई है. भारत में हेल्थकेयर की सुविधा भी सीमित है, पूरे देश में सिर्फ 62 टेस्टिंग लैब हैं और मोर्चे पर सबसे आगे खड़े हेल्थ वर्कर पर बीमारी के संक्रमण का खतरा बना रहता है. 

राय ने बताया कि मेडिसीन रिसर्च वो क्षेत्र है जिसमें AI एनालिटिक्स से बहुत मदद मिल सकती है. ‘इससे ह्यूमन ट्रायल को कम किया जा सकता है और ज्यादा से ज्यादा जरूरी जानकारियां भी हासिल की जा सकती हैं,’ उन्होंने कहा. आगे राय ने ये भी बताया कि चीन और यूरोप ने बड़ी तादाद में डेटा मुहैया करना शुरू कर दिया है, हालांकि ये अभी खास भौगोलिक इलाकों के तापमान, नमी और दूसरे मापदंड की जानकारियों तक ही सीमित है.

राय की कंपनी Staqu ने एक थर्मल कैमरा बनाया है जिससे हाई बॉडी टेम्परेचर वाले लोगों की बिना किसी इंसान की मदद से पहचान की जा सकती है.

‘हमारी टेक्नोलॉजी में जांच के शुरुआती चरण में इंसान की कोई जरूरत नहीं होती, इसके लिए हीट वेव एनालिसिस की मदद ली जाती है. इ सटेक्नोलॉजी की वजह से बीमारी के फैलने का खतरा भी कम रहता है,’ राय ने द क्विंट को बताया.

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