advertisement
हर गुजरते साल के साथ पिछले रिकॉर्ड को तोड़ती गर्मी, बेमौसम बारिश से किसानों की बदहाल हालत, तेजी से पिघलते ग्लेशियर के कारण तट पर बसे शहरों को निगलता समुद्र, धुंए में सने दमघोंटू हवा में जीने को मजबूर इंसान.... यह किसी डरावनी फिल्म का प्लॉट नहीं, बल्कि हम और आप जिस बदलते जलवायु में रह रहे हैं, उसकी छोटी सी बस बानगी है. हर साल दुनिया के जलवायु को क्लाइमेट चेंज (जिसे जलवायु परिवर्तन कहते हैं) के दंश से बचाने के लिए दुनिया भर ने नेता संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन (UN climate summit) या COP में भाग लेते हैं और इस दिशा में काम करने के लिए नए टारगेट तय करते हैं.
पिछले साल के COP26 शिखर सम्मेलन में लगभग 200 देशों ने अपने कार्बन उत्सर्जन में कटौती के वादों को और सुधारने के लिए सहमति व्यक्त की थी, जिसे राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान या NDCs कहा जाता है, लेकिन रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार अब तक केवल दो दर्जन देशों ने ऐसा किया है. यही कारण है कि दुनिया पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2 डिग्री अधिक औसत ग्लोबल वार्मिंग के खतरनाक रास्ते पर आगे बढ़ रही है, जिसे सुधारना असंभव होगा.
किन देशों ने कार्बन उत्सर्जन में कटौती के वादों- NDCs में खुद से सुधार किया है?
भारत ने 2005 के स्तर से 2030 तक 45% कार्बन उत्सर्जन में कटौती का वादा किया है, जबकी पहले लक्ष्य 30% रखा गया था. भारत ने 2030 तक स्थापित अक्षय ऊर्जा (Renewable Energy) क्षमता में अपनी कुल हिस्सेदारी को 50% तक बढ़ाने का भी वादा किया है.
COP26 के बाद से कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लक्ष्य को अपग्रेड करने वाले देशों में इंडोनेशिया और दक्षिण कोरिया शामिल हैं.
ऑस्ट्रेलिया ने भी 2005 के स्तर से 2030 तक 43% कार्बन उत्सर्जन में कटौती का वादा किया है.
दुनिया के तीसरे सबसे बड़े प्रदूषक- 27 देशों के यूरोपीय संघ (EU) ने 2023 में अपने कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य को बढ़ाने की योजना बनाई है.
चीन ने 2030 से पहले कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य में सुधार करने के दबाव का विरोध किया है.
खास बात है कि ब्राजील ने मार्च में कहा कि उसने 2016 में जो कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य तय किया था वह उससे भी अधिक उत्सर्जन का लक्ष्य बना रहा है. हालांकि अब बोल्सोनारो की जगह लूला डा सिल्वा के राष्ट्रपति बनने से इसमें सुधार की उम्मीद है.
पिछले साल COP26 में 100 से अधिक देशों ने 2030 तक वनों की कटाई को समाप्त करने का संकल्प लिया था. ऐसा टारगेट रखने वाले देशों में ब्राजील, इंडोनेशिया और कांगो भी शामिल थे, जहां दुनिया के बचे उष्णकटिबंधीय वनों का 80% से अधिक हिस्सा है.
वनों की कटाई करना तो दूर पिछले साल ब्राजील के अमेजॉन वनों की कटाई 2006 के बाद से अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई, और सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 2022 के शुरूआती नौ महीनों में अमेजॉन वनों की कटाई 23% और बढ़ गयी.
COP26 में लगभग 20 देशों ने यह प्रतिज्ञा की थी कि वे 2022 के अंत तक विदेशी जीवाश्म ईंधन परियोजनाओं में पैसा नहीं लगाएंगे, सिवाय कि वह परियोजना जलवायु लक्ष्यों के अनुसार हो. इसमें अमेरिका, जर्मनी, कनाडा, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे विकसित देश शामिल थे.
यूक्रेन युद्ध के बाद रूस से जारी तनातनी के बीच रूसी गैस-तेल का विकल्प खोजते जर्मनी ने इस साल गैस परियोजना में नए निवेश की बात कही है.
COP26 में अमेरिका और यूरोपीय संघ सहित 119 देशों और राष्ट्र-समूहों ने 2030 तक 30% मिथेन उत्सर्जन को कम करने (2020 के स्तर से) की प्रतिज्ञा की थी. लेकिन विश्व संसाधन संस्थान द्वारा इस महीने की रिपोर्ट के अनुसार उनमें से केवल 15 देशों ने ही ऐसा करने के लिए ठोस योजना बनाई है.
विश्व मौसम विज्ञान संगठन/ World Meteorological Organization की रिपोर्ट भी इस मोर्चे पर चिंताजनक आंकड़ा पेश करती है. इसके अनुसार पीछे लगभग 40 साल- जबसे मिथेन उत्सर्जन का रिकॉर्ड रखना शुरू किया गया है, 2021 में इसमें सबसे बड़ी छलांग देखने को मिली.
13 साल पहले, कोपेनहेगन के UN जलवायु शिखर सम्मेलन में, अमीर देशों ने एक महत्वपूर्ण प्रतिज्ञा की थी. उन्होंने 2020 तक गरीब देशों को सालाना 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर देने का वादा किया, ताकि उन्हें जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाने और तापमान में और वृद्धि को कम करने में मदद मिल सके. लेकिन इस वादे को पूरा करने में अमीर देशों की विफलता ने हाल की जलवायु वार्ता में विश्वास को कम किया है और सामूहिक प्रगति को कठिन बना दिया है.
यानी लगभग हर मोर्चे पर COP26 में किया गया वादा पूरा नहीं हो सका ही. ध्यान रहे कि जिस रफ्तार से जलवायु परिवर्तन हो रहा है, उसके बावजूद हमारी कोशिशों की यह धीमी चाल हमें उस स्थिति में ले जाएगी जहां से इसके रफ्तार को वापस मोड़ना असंभव हो जाएगा. मिस्र के Sharm El Sheikh में जब दुनिया भर के नेता बैठेंगे तब उनके सामने विकास की जरूरत के साथ-साथ जलवायु के भविष्य की चिंता का भी सवाल होगा.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)