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एलन मस्क (Elon Musk) की कंपनी स्पेस एक्स (SpaceX) की दर्जनों स्टारलिंक्स सैटेलाइट्स (Starlink satellites) पिछले दिनों अंतरिक्ष में जियोमैग्नेटिक स्टॉर्म (Geomagnetic storm) यानी भू-चुंबकीय तूफान की वजह से तबाह हो गए. मस्क की कंपनी के एक बयान में कहा गया है कि बीते शुक्रवार एक जियोमैग्नेटिक तूफान की वजह से सैटेलाइट नष्ट हो गए.
कंपनी की तरफ से यह जानकारी दी गई कि फाल्कन 9 (Falcon 9) रॉकेट से उपग्रहों को तीन फरवरी को पृथ्वी से लगभग 210 किलोमीटर ऊपर उनकी तय कक्षा में स्थापित किया गया था, लेकिन 4 फरवरी को जियोमैग्नेटिक तूफान की वजह से सैटेलाइट्स बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. इस सोलर स्टॉर्म में 49 में से 40 उपग्रह प्रभावित हुए हैं, जिससे वे चालू होने से पहले कक्षा से गिर गए. तो आखिर ये जियोमैग्नेटिक तूफान है क्या?
एपी की रिपोर्ट के अनुसार फाल्कन रॉकेट द्वारा भेजे गए स्टारलिंक्स सैटेलाइट्स में हर एक का वजन लगभग 260 किलोग्राम है. स्पेसएक्स ने तबाह हुए सैटेलाइट्स के बारे में कहा है कि 'यह एक अपूर्व स्थिति जैसा है. इस तरह के जियोमैग्नेटिक तूफान फ्लेरेस जैसी तीव्र सौर गतिविधि के कारण होते हैं, जो सूर्य के कोरोना से प्लाज्मा की धाराओं को अंतरिक्ष में और पृथ्वी की ओर भेज सकते हैं.'
2019 में एलन मस्क ने पहली बार स्टारलिंक सैटेलाइट्स को लॉन्च किया था. इस प्रोजेक्ट के जरिए मस्क इंटरनेट सर्विस को बढ़ाने के लिए हजारों की संख्या में और सैटेलाइट्स के समूहों को स्थापित करने की कल्पना की थी. विनाशकारी ज्वालामुखी विस्फोट और सुनामी के बाद स्पेसएक्स इस नेटवर्क के माध्यम से टोंगा में इंटरनेट सेवा बहाल करने में सहायता करने की कोशिश कर रहा है.
चूंकि एक साथ 40 उपग्रह तबाह हुए हैं वे भी एक ही बैच के जिन्हें कुछ दिनों पहले ही लॉन्च किया गया था. ऐसे में कंपनी द्वारा इसे बड़े नुकसान के तौर पर बताया जा रहा है. वहीं इस सिंगल सोलर इवेंट को 'अनुसना' जैसा भी बताया जा रहा है.
एपी की रिपोर्ट के अनुसार मस्क की कंपनी के द्वारा इन सैटेलाइट्स को पृथ्वी के वायुमंडल में पुनः प्रवेश पर स्वत: बर्न होने के लिए डिजाइन किया गया था. इसको ऐसा डिजाइन किया गया था कि इससे अंतरिक्ष में मलबा तैयार न हो. स्पेसएक्स का कहना है कि कंपनी ने इन सैटेलाइट्स को जानबूझकर लो ऑर्बिट में लॉन्च किया ताकि तबाह होने पर इनके टुकड़े या इनका कचरा जल्दी से पृथ्वी के वातावरण में फिर से प्रवेश कर सकें और यह अन्य स्पेस क्राफ्ट यानी कि अंतरक्षित यान के लिए किसी प्रकार से कोई खतरा न बन सकें.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार सोलर स्टॉर्म या सौर तूफान सोलर सतह से तेजी से निकाले गए मैग्नेटिक (चुंबकीय) प्लाज्मा हैं. जब सूर्य के सनस्पॉट्स से जुड़ी मैग्नेटिक एनर्जी निकलती है, तब ये तूफान बनते हैं और कुछ मिनटों से लेकर घंटों तक बने रह सकते हैं. स्टारलिंक सैटेलाइट्स को तबाह करने वाला सोलर तूफान 1 और 2 फरवरी को आया. वहीं इसका विनाशकारी प्रभाव 3 फरवरी को देखा गया.
कोलकाता स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (IISER) के सेंटर फॉर एक्सिलेंस इन स्पेस साइंसेज इंडिया (CESSI) के भौतिक विज्ञानी दिब्येंदु नंदी कहते हैं कि
सौर तूफान और सौर गतिविधियों की भविष्यवाणी करने के लिए सौर भौतिक विज्ञानी व अन्य वैज्ञानिक सामान्यत: कंप्यूटर मॉडल का उपयोग करते हैं. 1-2 फरवरी को स्टारलिंक सैटेलाइट्स को प्रभावित करने वाली घटना का पूर्वानुमान 29 जनवरी को लगाया गया था.
मैग्नेटोस्फीयर की मदद से अधिक तीव्र प्रतिक्रिया उत्पन्न कर चुंबकीय क्षेत्र के कुछ झुकावों को हासिल किया जा सकता है और इससे अधिक तीव्र चुंबकीय तूफानों को ट्रिगर कर सकते हैं. लेकिन सैटेलाइट्स पर बढ़ती वैश्विक निर्भरता के साथ अंतरिक्ष मौसम के बेहतर पूर्वानुमान और उपग्रहों की सुरक्षा के लिए ज्यादा प्रभावी तरीकों की जरूरत है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, सभी सोलर फ्लेयर्स यानी कि सौर लपटें पृथ्वी तक नहीं पहुंचती हैं. लेकिन करीब आने वाले सोलर फ्लेयर्स या तूफान, सोलर एनर्जेटिक पार्टिकल्स (SEPs), हई स्पीड सोलर विंड्स और कोरोनल मास इजेक्शन्स (CMEs) पृथ्वी के नजदीक अंतरिक्ष के मौसम और ऊपरी वायुमंडल को प्रभावित कर सकते हैं.
मैग्नेटोस्फीयर पृथ्वी के चारों ओर एक सुरक्षा कवच जैसा होता है. ऐसी संभावना है कि सीएमई इसमें बाधा पहुंचा सकते हैं. वहीं स्पेसवॉक पर अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी के सुरक्षात्मक वातावरण से परे सौर विकिरण के संपर्क में आ सकते हैं, जिससे उनका स्वास्थ्य खतरे में पड़ सकता है.
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