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वीडियो एडिटर: पूर्णेन्दू प्रीतम
कोरोना लॉकडाउन में इंटरनेट बड़ा सहारा है. अपनों से संपर्क का जरिया. वर्क फ्रॉम होम का रास्ता. हर दूसरे दिन कोरोना पर आ रही नई जानकारी से अपडेट कराता है इंटरनेट. कुल मिलाकर इस वक्त इंटरनेट हमारी लाइफलाइन है. लेकिन हमारे देश का एक पूरा प्रदेश है जिसके पास ये लाइफलाइन तो है, लेकिन बैंडविड्थ नहीं. जम्मू-कश्मीर जहां इंटरनेट तो है लेकिन हांफता हुआ, कनेक्टिविटी तो है, लेकिन सरकती हुई. 2G तो है लेकिन 3G, 4G नहीं.
वहां रहने वाली छात्र अनिका कहती हैं- सभी को पता है कि COVID-19 क्या है. इससे बचने के लिए क्या सावधानियां बरतनी चाहिए. इससे कैसे निपटा जाए और क्या चीज नई हुई है. क्वॉरंटीन के दौरान लोग खुद को जागरुक रखते हैं, फेसबुक, इंस्टाग्राम, यू-ट्यूब के जरिये. जबकि हम इससे काफी दूर हैं.
मोनिस कहते हैं कि वो यू-ट्यूब नहीं खोल पा रहे, जानकारी वाले वीडियो नहीं देख पा रहे. ये परेशानी सिर्फ अनिका और मोनिस की नहीं बल्कि कश्मीर में रहने वाले कई लोगों की परेशानी है.
सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना वायरस को लेकर जम्मू-कश्मीर में 4G इंटरनेट सेवाएं बहाल करने के लिए दायर याचिका पर केन्द्र और जम्मू-कश्मीर प्रशासन से 27 अप्रैल तक जवाब मांगा है. पिछली सुनवाई 21 अप्रैल को हुई थी.
वकील शादान फरासत ने याचिका में 4G इंटरनेट सेवाओं की बहाली की मांग करते हुए कहा है कि सरकार आर्टिकल 14 (समानता का अधिकार), 19 (बोलने की स्वतंत्रता) और संविधान के 21 (जीवन के अधिकार) का उल्लंघन कर रही है.
याचिकाकर्ता 'प्राइवेट स्कूल्स एसोसिएशन ऑफ जम्मू एंड कश्मीर' की ओर से पेश एडवोकेट चारू अंबवानी ने कहा कि 2200 स्कूल क्लास आयोजित नहीं कर पा रहे हैं. और इसके कारण 20 लाख से ज्यादा छात्रों का भविष्य दांव पर लगा है क्योंकि इंटरनेट कनेक्टिविटी की वजह से बच्चे ऑनलाइन क्लास नहीं कर पा रहे.
जम्मू-कश्मीर सरकार के ऑर्डर में 4G इंटरनेट शुरू न करने को लेकर क्या दलीलें दी जा रही हैं? हम पिछले 2 ऑर्डर पर नजर डालते हैं.
3 अप्रैल को जम्मू कश्मीर के गृह मंत्रालय की तरफ से दलील दी गई कि कई राष्ट्र विरोधी तत्व प्रोपैगैंडा फैलाकर पब्लिक ऑर्डर को डिस्टर्ब कर रहे हैं और इससे आतंकी गतिविधियों को भी बढ़ावा मिलता है.
फेक न्यूज, बॉर्डर पार से घुसपैठ, आतंक को बढ़ावा देने के लिए फेक न्यूज फैलाना, सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल रोकना- ये कारण गिनाए गए. साथ ही डोमिसाइल कानून में बदलाव को लेकर भी हिंसा और पब्लिक ऑर्डर डिस्टर्ब करने की आशंका जताई गई और कहा गया कि 4G इंटरनेट बैन 15 अप्रैल तक जारी रखा जाएगा.
लेकिन 15 अप्रैल के बाद भी 4G बहाल नहीं किया गया और नए ऑर्डर में ये सेवा बहाल न करने के पीछे कमोबेश वही वजहें गिनाई गईं. रोक के पीछे आतंकवाद बड़ी दलील है. लेकिन सच्चाई ये है कि घाटी में इन सर्विस पर रोक के बावजूद आतंकवादी हमले रुके नही हैं. हाल ही, 18 अप्रैल को सोपोर में CRPF जवानों पर हमला हुआ, इनमें 3 जवान मारे गए. केरन सेक्टर में आतंकियों से मुठभेड़ में 5 जवान शहीद हो गए थे. किश्तवाड़ में आतंकियों ने एसपीओ के ग्रुप पर हमला किया. इसमें 1 की मौत हो गई थी.
वैसे भी इंटरनेट का गलत इस्तेमाल सिर्फ जम्मू-कश्मीर में नहीं हो रहा, बाकी राज्यों में भी ये होता है. तो फिर सिर्फ कश्मीर में ही 4G, 3G पर रोक क्यों?
नए ऑर्डर में 4G बहाल न करने को लेकर एक नई घटना को भी वजह बताया गया. 8 अप्रैल को नॉर्थ कश्मीर के सोपोर इलाके में सेना के साथ मुठभेड़ में जैश-ए-मोहम्मद (JeM) का आतंकी कमांडर मारा गया. उसके जनाजे में करीब 500 लोग शामिल हुए. सोशल मीडिया पर ये तस्वीर फैली. ऑर्डर में इसका हवाला दिया गया.
लेकिन ये जम्मू-कश्मीर प्रशासन पर अपने आप में एक सवाल खड़ा करता है कि कोरोना वायरस लॉकडाउन के दौरान जब पूरे देश में फोर्स-पुलिस सख्ती और चुस्ती के साथ निगरानी में लगी हुई है तो फिर ज्यादा सुरक्षा वाले केंद्र शासित प्रदेश में इतनी भीड़ कैसे जुट गई है? ये बंदोबस्ती में चूक कैसे नहीं है? इसके लिए सिर्फ इंटरनेट कनेक्विटी कैसे जिम्मेदार है?
सुरक्षा प्राथमिकता है लेकिन जरा उन बच्चों के बारे में सोचिए जिनकी पढ़ाई नहीं हो पा रही. पीएम से मदद की गुहार लगाने वाले कश्मीरी डॉक्टरों के बारे में सोचिए. उन तमाम लोगों के बारे में सोचिए जिन्हें ये अपडेट समय पर नहीं मिल पा रहा है कि वो शख्स भी कोरोना से संक्रमित हो सकता है, जिसमें कोई लक्षण नहीं है. उस कारोबारी के बारे में सोचिए जिसका काम ठप हो गया है. उस मां के बारे में सोचिए जो अपने बाहर फंस गए अपने बच्चे से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग नहीं कर पा रही. ये कोरोना का आपात काल है. और कश्मीरी हमारे अपने हैं, उनको इतना अलग-थलग न छोड़ दीजिए.
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