Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019VIDEO| शादी का मतलब पत्नी का पति के सामने सरेंडर कर देना नहीं 

VIDEO| शादी का मतलब पत्नी का पति के सामने सरेंडर कर देना नहीं 

इस बेतुके कानून पर ध्यान देने में सबने देर कर दी

कौशिकी कश्यप
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पति या पत्नी का दूसरों से जिस्मानी रिश्ता अपराध नहीं: SC का फैसला
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पति या पत्नी का दूसरों से जिस्मानी रिश्ता अपराध नहीं: SC का फैसला
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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हम अभी भी समाज की पुरुषवादी मानसिकता की जकड़न से निकल नहीं पाए हैं. लेकिन ये सोच हमारी कानून-व्यवस्था में दिखे, ये आश्चर्य के साथ-साथ शर्म की भी बात है. हालांकि महिलाओं के खिलाफ अपराध, शोषण रोकने के लिए देश में कई कानून बनाए गए हैं. लेकिन अब जाकर सुप्रीम कोर्ट ने 158 साल पुराने एडल्टरी वाले कानून को असंवैधानिक करार दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने 27 सितंबर को कहा कि एडल्टरी अब अपराध नहीं है.

समझिए कि ये कानून क्या था?

इस कानून के तहत संबंध महिला बनाए या पुरूष, मुकदमे का अधिकार सिर्फ पुरूष को था. महिला शिकार भी हो तो उसके पास न्याय के रास्ते नहीं थे.

आईपीसी की धारा-497 के तहत अगर कोई शादीशुदा महिला अपने पति के अलावा किसी भी दूसरे शख्स के साथ आपसी रजामंदी से शारीरिक संबंध बनाती है, तो ऐसे में उस महिला का पति, दूसरे शख्स पर इस धारा के तहत केस कर सकता है

जानिए SC के फैसले की बड़ी बातें

  • एडल्टरी यानी शादी में रहते हुए भी गैर से संबंध जो शारीरिक भी हो सकता है, अब कानून की नजर में अपराध नहीं है.
  • सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि पत्नी का मालिक पति नहीं है. मतलब ये कि अन्याय अगर महिला के साथ होता है तो न्याय का हक उसे ही है.
  • एडल्टरी तलाक का आधार हो सकता है, लेकिन अपराध नहीं. अडल्टरी की वजह से पार्टनर अगर अपनी जान दे दे तो उस स्थिति में केस चलाया जा सकता है.
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इन सारी बातों का सार महिलाओं के पक्ष में निकालें तो ये है कि शादीशुदा महिलाओं को जो अधिकार कभी नहीं मिला वो सुप्रीम कोर्ट ने अब दे दिया है.

इस कानून के तहत शादीशुदा महिलाओं को किस तरह से ट्रीट किया जाता रहा, उसके नमूने देखिए-

  • अगर महिला के पति को दिक्कत नहीं है तो वो उसे किसी के साथ सेक्शुअल रिलेशन बनाने के लिए मजबूर कर सकता था. और उस महिला को शिकायत करने का कोई अधिकार नहीं था. और कंसेंट की बात तो खैर छोड़ ही दीजिए. महिला की सहमति-असहमति मायने नहीं रखती थी. ये कितना अजीब था.
  • शिकायत का अधिकार सिर्फ मर्द के पास था, जिसकी पत्नी किसी और से संबंध बना ले. लेकिन उस महिला को शिकायत का कोई अधिकार नहीं था, जिसके पति ने किसी और से संबंध बनाए. मतलब औरत मर्द के बीच कानून इतना फर्क कर रहा था.
  • पर्सनल चाॅइस जैसी कोई चीज नहीं थी. एक औरत या मर्द किसके साथ सेक्स करे, किसके साथ नहीं, ये उनका पर्सनल चाॅइस है. दो वयस्‍क लोगों के बीच सहमति से बनाए गए संबंध में किसी और की दखलंदाजी क्या जायज थी? किसी की आपसी सहमति, पर्सनल चाॅइस का सम्मान क्‍या नहीं किया जाना चाहिए?

ये कानून एक मानसिकता को मजबूत करती है, जो ये कहती है कि 'महिला सिर्फ शिकार' हो सकती है लेकिन न्याय उसको उसका पति ही दिला सकता है.

कुल मिलाकर कहें तो अडल्टरी कानून एक ऐसा नारी विरोधी कानून, विक्टोरियन कानून था जिसकी जरूरत हमें बेशक नहीं थी. और हां, हमने इस बेतुके कानून को हटाने में देर कर दी.

सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने शादीशुदा महिलाओं को मानसिक और जिस्मानी आजादी दे दी है. एक और बड़ी बात इस जजमेंट में जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कही है.

उन्होंने महिला अधिकारों की मजबूती की तरफ एक कदम आगे बढ़कर कहा कि- शादी के बाद महिला अपने सेक्शुअल राइट्स पति के आगे सरेंडर नहीं करती.

वो अपना चाॅइस कहीं भी और कभी भी एक्सरसाइज कर सकती है.

ये फैसला एक बस राइडर है. कानूनी बदलाव तो हो गया. देखते हैं समाज को इसे अपनाने में कितना समय लगता है!

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Published: 28 Sep 2018,10:32 AM IST

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