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वीडियो एडिटर- संदीप सुमन
बॉम्बे हाईकोर्ट ने सेना में चल रहे सहायक सिस्टम का पर्दाफाश करने वाले क्विंट के एक स्टिंग ऑपरेशन पर हुई FIR रद्द कर दी है. अपने ऑर्डर में कोर्ट ने जो बातें कही हैं, वो आंख खोलने वाली हैं. इस देश में बोलने पर बैन लगाने की कोशिशों पर तमाचा है. मीडिया की आजादी खत्म करने पर तुले लोगों को कोर्ट का आर्डर पढ़ना चाहिए. इस ऑर्डर ने पूनम और कारगिल योद्धा नायक दीपचंद की दो साल से चल रही जंग को खत्म कर दिया है.
क्विंट की सीनियर जर्नलिस्ट पूनम अग्रवाल ने सेना में चल रहे सहायक सिस्टम का पर्दाफाश करने के लिए एक स्टिंग ऑपरेशन किया. ऑपरेशन ये कि देश के लिए कुछ कर गुजरने की ख्वाहिश लिए सेना में आए जवानों से छोटे-मोटे काम कराए जा रहे हैं. कोई अपने सीनियर्स के पेट्स को टहला रहा है, कोई उनके बच्चों को स्कूल से लाने-ले जाने का काम कर रहा है. तो कोई अफसरों की बीवियों को पार्लर ले जाने और शॉपिंग कराने का काम कर रहा है.
यानी राज रखने लायक बातों को सार्वजनिक करने का आरोप लगाया गया. कहा गया कि इस स्टिंग से शर्मसार होकर, बदनामी के डर से मैथ्यू ने खुदकुशी की. पूनम और नायक दीपचंद के खिलाफ करीब दो साल चले इस मामले को बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस मोरे और जस्टिस डांगरे ने 18 अप्रैल 2019 को रद्द कर दिया. लेकिन जब विस्तान से आर्डर आया तो उसने मामला दर्ज करने वालों की मंशा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए.
दो साल तक पूनम को सोशल मीडिया पर लगातार ट्रोल किया गया. उनकी स्टोरी और पेशेवर रवैये पर मीडिया के एक सेक्शन ने सवाल उठाए. पूनम ने सहायक सिस्टम और पत्रकारों के खिलाफ Official Secrets Act के बेजा इस्तेमाल को खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी. उन पर उसे वापिस लेने का दवाब बनाया गया. पूनम ने ये पूरा प्रेशर झेला. उनकी याचिका कोर्ट में अब तक पेंडिंग है.
ये स्टिंग देश के खिलाफ नहीं, देश के लिए था. उन जवानों पर जुल्म के खिलाफ था जो देश के लिए जान की बाजी लगाने सेना में आते हैं.
क्विंट का ये स्टिंग ऑपरेशन देश हित में था. खैर हाईकोर्ट के आदेश ने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया है. हम आपको यकीन दिलाते हैं कि क्विंट सच को सामने लाने की लड़ाई लड़ता रहेगा, चाहे वो सहायक सिस्टम की बात हो या फिर किसी और की.
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