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वीडियो एडिटर- विवेक गुप्ता और पूर्णेन्दु प्रीतम
कैमरा- शिव कुमार मौर्या
कर्ज में फंसी IL&FS पर दिवालिया होने का खतरा मंडरा रहा है. इसने पूरे फाइनेंशियल मार्केट को चिंता में डाल दिया है. इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड यानी IL&FS 30 साल पुराना वित्तीय संस्थान है,जो इन्फ्रास्ट्रक्चर यानी देश की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को कर्ज देता है. आजादी के बाद ये देश का सबसे बड़ा डिस्ट्रेस है.
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डिफॅाल्ट की खबर आने के बाद पिछले 5 दिनों से शेयर बाजार में और बॅान्ड बाजार में उथल-पुथल है क्योंकि लोगों को लगा कि अगर इतनी बड़ी कंपनी देनदारी के चक्कर में फंस सकती है तो ऐसी स्थिति में बाजार में लिक्विडिटी की क्या हालत होगी?
इस कंपनी के बारे में संकेत पहले भी थे. साल 2008 से संकेत मिल रहे थे. जून में जब इसके फाउंडर, चेयरमैन, सीईओ रवि पार्थसारथी हट गए (या हटाया गया!) तब से ये बात चर्चा में थी लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत ये थी कि किसी को पता नहीं था कि IL&FS का रेगुलेटर कौन है?
अभी तक आरबीआई, वित्त मंत्रालय या सेबी ने इस मामले पर नजर नहीं रखी थी लेकिन पिछले 5 दिनों में जब शेयर बाजार में लगातार गिरावट आई, भारी हलचल मच गई. 5 दिन में सेंसेक्स 1800 प्वाइंट गिरा. शेयर मार्केट में निवेशकों के करीब 7 लाख करोड़ रुपए साफ हो गए, तब 23 सितंबर को इस गरज से कि 24 सितंबर यानी सोमवार को बाजार और न गिर जाए कुछ असामान्य कदम उठे. सेबी और आरबीआई ने पहली बार मिलकर एक साझा बयान दिया कि फाइनेंशियल सिस्टम में कोई संकट नहीं चल रहासब कुछ ठीक चल रहा है.
इस आश्वासन के बावजूद 24 सितंबर को बाजार काफी गिरा. करीब 150 पॅाइंट निफ्टी में गिरावट आई. जब ये घटना सामने आई तब एक म्यूचुअल फंड ने सोचा कि हम अपना कॅामर्शियल पेपर बेचकर पैसा उठा लें क्योंकि बॅान्ड मार्केट में भी लिक्विडिटी बहुत कम है. डिमांड और सप्लाई के बीच करीब एक लाख करोड़ का अंतर है. इस कारण म्यूचुअल फंड औैर NBFC में भी हलचल मच गई और सरकार की कोशिशों के बवजूद बाजार नहीं संभला.
IL&FS का संकट देश के रेगुलेटरी अंधेरे की कहानी है. ऐसा इसलिए क्योंकि फाइनेंशियल सेक्टर के नए रिफॅार्मऔर बैंकरप्सी कानून में नए रिफॅार्म के बारे मे एक अच्छा खासा खाका सरकार ने तैयार किया था और FRDI बिल लाने वाली थी जिसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. जो नॅान फाइनेंशियल कंपनियां हैं उनके लिए बैंकरप्सी कोड IBC आ गया. लेकिन बड़े फाइनेंशियल फर्म को रेगुलेट करने के लिए भारत में कोई व्यवस्था नहीं है. ये बात अब सामने आई है.
इसे ढंकने की कवायद की जाएगी. बाजार को संभालने की कोशिश की जाएगी. हो सकता है कि IL&FS का शेयरहोल्डर जापान का Orix कॉर्पोरेट इसे खरीद ले. लेकिन ये कोई उपाय नहीं है. आप अगर ये सोचते हैं कि उसके खरीद लेने से म्यूचुअल फंड या NBFC को ये लगेगा कि बॅान्ड बाजार में लिक्विडिटी आ गई. नगदी उपलब्ध है, कर्ज लिया जा सकता है, चुकाया जा सकता है. ऐसा माहौल फिलहाल नहीं दिखता. फाइनेंशियल सेक्टर का संकट इस तरह से नहीं संभाला जाता.
याद कीजिए कि लीमैन संकट के बाद भारत संभल पाया था क्योंकि वित्त मंत्रालय और आरबीआई दोनों काफी चौकन्ने थे. यहां आरबीआई ने देर से सही लेकिन चौकन्नापन दिखाया है. लेकिन अब आरबीआई की हालत समझिए. उसने कुछ प्राइवेट बैंकों के सीईओ तो बदलवा लिए लेकिन PSU बैंकों पर उसका जोर नहीं है. उसका कंट्रोल वित्त मंत्रालय पर है. तो पिछले दिनों आरबीआई की जो विश्वसनीयता बढ़ी है उस पर सवाल ये भी पैदा होगा कि अगर रेगुलेटरी ग्रे एरिया था, आपका रोल अब तक नहीं था तो अब अचानक कैसे रोल हो गया?
लेकिन जो पीछे करना था ये वो भूल गए.
IL&FS संकट के 5 विलेन हैं.
एजेंसी ने कहा कि ये ‘ट्रिपल ए’ है इसमें पैसा लगाइए लेकिन अब कह रहे हैं कि ये जंक है.
जो इस्तीफा देकर निकल चुके हैं
IL&FS के बड़े हिस्सेदार LIC 25.34%, Orix कॉर्पोरेट,जापान- 23.54%, स्टेट बैंक- 6.42%, अबूधाबी इंवेस्टमेंट ट्रस्ट हैं. पैसे लगाने के बावजूद इन्होंने भी निगरानी नहीं की.
आरबीआई जब आज खुद को रेगुलेटर मान सकता है तो ये पहले भी किया जा सकता था. आरबीआई चेतावनी भांप सकता था लेकिन उससे भी चूक हुई है.
सरकार ने कभी सोचा नहीं कि फाइनेंशियल सेक्टर में अगर ऐसे हालात बन जाए तो इसे संभालने का सिस्टमेटिक उपाय क्या होगा? इसका रेगुलेटर कौन होगा?
पिछले 10 साल से और खासकर पिछले 6 महीनों से खतरे की घंटी रेगुलेटर्स, सरकार को सुनाई नहीं पड़ी तो उनके लिए अब ये जरूरी होगा कि पैनिक रिएक्शन को बढ़ाने, पुलिसिया तरीके की कार्रवाई करने की बजाय वो देखें कि इसे कैसे बचाया जाए.
IL&FS के सारे आला अधिकारी इस्तीफा देकर चले गए उनसे कोई हिसाब मांगने वाला नहीं, उन्हें कोई रोकने वाला नहीं था. जरुरत पड़े तो उन्हें वापस लाया जाए. लेकिन सबसे पहले वैल्यू डिस्ट्रक्शन को रोकने की कार्रवाई होनी चाहिए, न कि पैनिक को बढ़ाने वाली. अभी तक के सरकारी उपाय मामले को रफू करने वाले हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि सेंसेक्स और निफ्टी नहीं गिरना चाहिए, इससे हमारी खराब छवि बनेगी. लेकिन बैकग्राउंड देखते हुए आनेवाले दिनों में एक मजबूत मैनेजमेंट की तरह अगर इस केस को हैंडल नहीं किया गया तो ये सिस्टेमिक जोखिम और बढ़ सकता है.
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