रुपया बुरी तरह टूट रहा है. अभी एक डॉलर करीब 72 रुपए को छू रहा है. कुछ विशेषज्ञों का अंदाजा है कि ये 73-74 तक भी जा सकता है. सिर्फ आठ महीनो में 12% की ये गिरावट अभूतपूर्व है. दुनिया का जितना भी उभरता हुआ बाजार है उनकी करेंसी की तुलना में भारत का रुपया सबसे ज्यादा टूटा है.
एक्स्पोर्ट में कमजोरी है और इंपोर्ट बिल बढ़ता जा रहा है यानी व्यापार घाटा भी रिकार्ड तोड़ रहा है.
साल 2016-17 में एक्सपोर्ट- 275 अरब डॉलर और इंपोर्ट – 385 अरब डॉलर था. साल 2017-18 पर नजर डालें, एक्सपोर्ट- 302 अरब डॉलर और इंपोर्ट- 462 अरब डॉलर है.
क्रूड के दाम भी चढ़ रहे हैं, इसलिए पेट्रोल और डीजल के दामों में आग लगी हुई है. रुपया कमजोर है तो इम्पोर्ट बिल और बढ़ेगा. बाॅन्ड मार्केट में यील्ड 8% से ऊपर बढ़ रहा है, ये भी बता रहा है कि इकनाॅमी को लेकर सबको चिंता है.
क्यों टूट रहा है रुपया?
आप कह सकते हैं कि “ग्लोबल कारण हैं, अमेरिका-चीन का ट्रेड वॉर और इमर्जिंग मार्केट्स की करेंसी टूट रही है तो आप भारत में सरकार को दोष मत कीजिए. क्योंकि ग्लोबल हालात ही खराब है. देखिए हम तो 8.2 % से ग्रो कर रहे हैं.”
लेकिन ये आधा सच है. एक और सच है कि जब वक्त मुश्किल है तो हम अपने पैर पर कुल्हाड़ी कैसे मारें?
तो ये लीजिए सेबी का फरमान- उसने कहा है कि
भारत के शेयर बाजार में विदेशी निवेशक तो पैसा ला सकता है लेकिन अगर कोई फंड मैनेजर भारतीय है- NRI है, तो वो ये पैसा नहीं ला सकता. क्योंकि शक है कि ये राउंड ट्रिपिंग है यानी भारत के लोग चोरी से पैसा बाहर ले गए और वही चोर दरवाजे यानी फॅारेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट के जरिए पैसा वापस ला रहे हैं.
इस फरमान से बाजार में चिंता हुई है. ऐसे भी इस साल नेट FII आउट्फ्लो है यानी बाजार में निवेश आ कम रहा है, जा ज्यादा रहा है. जिस NRI के देशप्रेम का गुणगान हमने पिछले पांच सालों में सुना अब वो संदिग्ध है. अब वो अर्बन नक्सल की तरह NRI नक्सल हो गया है. चोर और ईमानदार दोनों एक ही थैली में हैं.
अब ये मत कहो कि इतना सख्त KYC- नो योर कस्टमर कानून के बावजूद हम चोर को अलग और ईमानदार को अलग क्यों नहीं कर सकते? नए कायदे-कानून की क्यों जरुरत है? क्योंकि ये काम कठिन है. नारा आसान है. हमारे रेगुलटेर और अफसर ये फर्क नहीं समझ रहे कि फंड की ओनरशिप, फंड की बेनेफिशियरी एक अलग चीज है और फंड मैनेजर या कंट्रोलर अलग चीज है.
SEBI का कहना है कि बाजार की चिंता बेकार है. लेकिन विदेशी निवेशक इस सफाई से संतुष्ट नहीं हैं और भारत में निवेश बंद करने और दूसरे बाजारों में पैसा ले जाने की सोच रहे हैं. अभी भारत को डॉलर चाहिए. रुपया टूटने से एक्सपोर्ट कोई तेजी से नहीं बढ़ने वाला क्योंकि हम कम्पेटिटिव नहीं हैं और क्वालिटी की भी समस्या है. महंगा क्रूड इम्पोर्ट बिल बढ़ाएगा. इस से महंगाई बढ़ेगी. रिजर्व बैंक रुपए को थामने नहीं आएगा. उसको आना भी नहीं चाहिए. एक अंदाजा है कि जब तक डॅालर 74-75 रुपए तक नहीं हो जाता तब तक RBI कोई दखलअंदाजी नहीं करेगी. महंगाई बढ़ेगी तो RBI ब्याज दर फिर बढ़ा सकता है. उधर पेट्रोल प्रोडक्ट पर सरकार इतना ज्यादा एक्साइज वसूल करती है. पब्लिक मांग कर रही है कि दाम कम करें. इस बात पर लोग अभी अनुमान ही लगा रहे हैं कि क्या एक्साइज ड्यूटी कम करने पर खासकर राज्य के चुनाव से पहले सरकार सोचेगी या नहीं.
यानी ग्रोथ के लिए प्राइवेट सेक्टर को जो पूंजी चाहिए वो और महंगी होगी. डूबे कर्जों की वसूली की रफ्तार सुस्त है और देश चुनाव के दोराहे पर खड़ा हो गया है. यानी इन्वेस्टमेंट और ग्रोथ साइकल को चलाने के फैसले तब तक निवेशक नहीं करेंगे, जब तक राजनीतिक तस्वीर साफ नहीं हो जाती लेकिन ये सब चिंता हम भोले लोगों की है. चुनाव ग्रोथ के आंकड़ों से नहीं जीते जाते, उनको जीतने के औजार और हथियार कुछ और होते हैं.
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