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शेयर बाजार में इस हाहाकार के लिए क्या यही कंपनी है जिम्मेदार? 

इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड यानी IL&FS 30 साल पुराना फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन है

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शुक्रवार को अचानक शेयर बाजार में भारी अफरातफरी फैल गई. बीएसई का सूचकांक एक ही घंटे में 1500 प्वाइंट यानी 4 फीसदी गिर गया और थोड़ी ही देर में रिकवर कर गया. एक घंटे में 1500 प्वाइंट गिरावट किसी बड़े खतरे का इशारा कर रहे थी.गिरावट की एक बड़ी वजह यस बैंक के शेयरों का टूटना था.

लेकिन बाजार पर एक और गंभीर खतरा का असर दिखा. उस दिन दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड के 300 करोड़ के बांड डीएसपी म्यूचुअल फंड ने बाजार मूल्यों से कम पर बेच दिया था. इससे बाजार में दहशत फैल गई और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC), बैकों और दूसरे वित्तीय संस्थाओं के शेयर धड़ाधड़ गिरने लगे.

दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड के बांड को बेचे जाने को इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज यानी IL&FS की खराब हालत से जोड़ कर देखा जा रहा था. डीएसपी के पास IL&FS के 630 करोड़ रुपये के बांड हैं. लगभग 91 हजार करोड़ रुपये के कर्ज में फंसी IL&FS पर दिवालिया होने का खतरा मंडरा रहा है. इसने पूरे इंडियन फाइनेंशियल मार्केट को चिंता में डाल दिया है. आइए जानते हैं कि कितना बड़ा है IL&FS संकट और क्या होगा इसका असर.

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क्या है IL&FS?

इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड यानी IL&FS 30 साल पुराना फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन है

इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड यानी IL&FS 30 साल पुराना फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन है,जो इन्फ्रास्ट्रक्चर यानी देश की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को कर्ज देता है.

अपनी वेबसाइट में इसने दावा किया है इसने देश में एक 1.8 खरब रुपये की परियोजनाओं को विकसित करने और फाइनेंस करने में मदद की है. इसके सबसे बड़े शेयरहोल्डरों में हैं- एलआईसी ,एसबीआई और जापान का ओरिक्स कॉरपोरेशन. समूह की 169 सब्सिडियरी, सहायक कंपनियां और ज्वाइंट वेंचर हैं और विश्लेषकों का कहना है.

क्यों संकट में है IL&FS?

इसकी सबसे बड़ी वजह है कि समूह का कैश संकट. नई इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं की कमी और लगातार बढ़ती ब्याज दर की वजह से इसके पास फंड की कमी हो गई है. खुद इसके कई इन्फ्रास्ट्रक्चर खास कर सड़क और बंदरगाह परियोजनाएं बढ़ती लागतों, जमीन अधिग्रहण और अप्रूवल में देरी की वजह से फंस गई हैं. इस पर 91 हजार करोड़ रुपये का लोन है.

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क्यों इसे कहा जा रहा है भारत का लेहमैन संकट?

इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड यानी IL&FS 30 साल पुराना फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन है

अपने कर्ज उतारने में नाकाम होने पर IL&FS ने अपने शेयरहोल्डरों से बेलआउट मांगा. लेकिन शेयरहोल्डरों ने उसे अपनी परिसंपत्ति बेच कर संकट से निकलने को कहा. अगर IL&FS दिवालिया हुई तो इसके शेयरहोल्डर्स का पैसा डूब जाएगा. इसमें सबसे बड़ी शेयरहोल्डर्स (25.34 फीसदी शेयर) एलआईसी है. ऐसा हुआ तो एलआईसी को करारा झटका लगेगा, जिसमें भारी मात्रा में आम लोगों का पैसा लगा है. IL&FS के इस संकट ने क्रेडिट मार्केट में दहशत फैला दी . शुक्रवार को कई फाइनेंशियल कंपनियों और बैंकों के शेयर इस संकट की वजह से जबरदस्त ढंग से गिर गए और शेयर बाजार में इसने कोहराम मचा दिया.IL&FS का संकट सरकार के लिए अब भारी चिंता बन गया है.

दरअससल यह बड़ा वित्तीय संकट शुक्रवार को उसी वक्त शुरू हो गया था जिस दिन इसने कहा था कि  यह आईडीबीआई का कर्ज नहीं चुका सकता. इसके पहले भी वह कई कॉमर्शियल पेपर के मामले में डिफॉल्ट कर चुका था. IL&FS के इस कैश संकट  की वजह से बड़ी रेटिंग एजेंसियों ने इसे डाउनग्रेड करना शुरू किया. दरअसल IL&FS  समूह की कंपनी  IL&FS यानी IFIN के सीईओ रमेश बावा और पांच डायेक्टरों के इस्तीफा देने से यह संकट और बढ़ गया. चूंकि यह बड़ा वित्तीय संकट ऐसे वक्त में उभर कर सामने आया है, जब दुनिया ग्लोबल वित्तीय फर्म लेहमैन ब्रदर्स के ध्वस्त होने ग्लोबल वित्तीय संकट में फंस गई थी. इसलिए इसे भारतीय लेहमैन ब्रदर्स क्राइसिस कहा जा रहा है.

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इसका क्या असर पड़ा है?

इस संकट से भारतीय क्रेडिट मार्केट में फंड यानी कर्ज की लागत बढ़ गई है. अब बढ़ी लागतों की वजह से पीएम नरेंद्र मोदी के कई इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के सामने संकट पैदा हो गया है. इनमें हर साल 20,000 किलोमीटर नेशनल हाईवे और 28 बड़े शहरों में वित्त वर्ष के आखिर तक रिंग रोड बनाना शामिल है. अब इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनियों के लिए फंड की कमी पैदा हो जाएगी.

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आम निवेशकों पर क्या असर पड़ेगा ?

दरअसल IL&FS ने अगस्त से कर्ज अदा करने में देरी शुरू की.पहले कॉमर्शियल पेपर और फिर शॉट टर्म कर्ज डिफॉल्ट करने शुरू किए. इससे कॉमर्शियल पेपर का मार्केट खराब हो जाएगा. दरअसल कॉमर्शियल पेपर म्यूचुअल फंड कंपनियां पैसा लगाती हैं, जिनमें आम निवेशक पैसा लगाते हैं.

बैंक में जमा पैसे कम ब्याज और महंगाई में निवेश रिटर्न कम होने की वजह से म्यूचुअल फंड में आम निवेशकों का निवेश बढ़ा है. इस संकट ने मनी मैनेजरों को सावधान किया और IL&FS से प्रभावित कुछ फंडों में निवेश प्रवाह कम कर दिया.

दरअसल इस संकट से उन सभी वित्तीय कंपनियां और बैंक प्रभावित होंगे जो IL&FS से जुड़े हैं. इससे इन्फ्रास्ट्रक्चर फंडिंग मार्केट में कर्ज महंगा हो जाएगा.

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IL&FS के लिए आगे क्या रास्ता है?

अब IL&FS को बचाना सरकार की जिम्मेदारी है.बैंकों और वित्तीय संस्थानों ने IL&FS के साथ प्रोजेक्ट में भी पैसा लगाया है.

मूडी का अनुमान बैंकिंग सिस्टम में IL&FS का कर्ज 1 से 2% के बीच है. हालांकि इस पर किसी तरह के फ्रॉड के आरोप नहीं लगे हैं. लेकिन मिस मैनेजमेंट का मामला तो निश्चित तौर पर है. यह अपने एसेट बेच कर पैसा जुटाना चाहती है. और कई कंपनियां इसकी हिस्सेदारी खरीदना भी चाहती है. लेकिन रिजर्व बैंक इसे फेल नहीं होने देगा क्योंकि उसकी निगाह में इसे बचाना जरूरी है. अगर यह फेल हुई तो कई कंपनियों को नुकसान पहुंचेगा.

केयर रेटिंग का कहना है कि IL&FS को अपना एसेट बेच कर स्ट्रेटजिक पार्टनर को समय रहते ले आना चाहिए. भारत में मूडीज की यूनिट ने IL&FS की एसेट क्वालिटी पर सवालिया निशान लगाया है. ब्लूमबर्गक्विंट के ओपनियन कॉलमनिस्ट एंडी मुखर्जी का कहना है कि म्यूचुअल फंड के आम निवेशकों में दहशत न फैले इसके लिए एलआईसी को इसे बचाने के लिए आगे आना होगा. क्योंकि यह इसकी सबसे बड़ा हिस्सेदार है.

(इनपुट: ब्लूमबर्ग क्विंट)

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