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प्रोड्यूसर: कौशिकी कश्यप
कैमरा: मुकुल भंडारी
वीडियो एडिटर: मोहम्मद इरशाद आलम
पब्लिक सेक्टर बैंकों में इस साल अप्रैल से सितंबर तक 95 हजार करोड़ रुपए की धोखाधड़ी की बात सामने आई है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 19 नवंबर को संसद में इस बात की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि इस फाइनेंशियल ईयर के पहले 6 महीने में सरकारी बैंकों में 95,800 करोड़ रुपये का फर्जीवाड़ा हुआ है.
नीरव मोदी जैसे केस, गलत तरीके से लिया गया लोन, ATM से पैसे चोरी करने जैसे मामले इस फर्जीवाड़े में शामिल हैं. आपको बता दें, 100 करोड़ से ऊपर के फर्जीवाड़े के मामले 4 साल बाद पकड़ में आते हैं.
देश की सुस्त अर्थव्यवस्था में बैंकिंग सेक्टर पहले से ही संकट जैसे हालात से जूझ रहे हैं. कर्ज लेन-देन का चक्र बंद पड़ा है. करीब 9.5 लाख करोड़ रुपये एनपीए के तौर पर सिस्टम में फंसे हैं. सरकार तक की साल साल भर से पेमेंट रुकी हुई है. ऐसे में एसएमई की सोचिए, वो भी एनपीए हो सकता है.
मंदी से निकलने के लिए PSU बैंक के फंसे पैसों को निकालने की जरूरत है, क्रेडिट फ्लो को चालू करने की जरूरत है.
इस बीच पिछले दिनों RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी ये कह दिया कि- "सरकारी बैंक में गवर्नेंस मजबूत करने की जरूरत है." यानी एक कड़ी चेतावनी की जरूरत है.
माना जा रहा था कि इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड ( IBC ) के लागू होने से बैंकों के फंसे कर्ज की वसूली प्रक्रिया में तेजी आएगी और बैंकों की माली हालत मजबूत होगी लेकिन कानूनी चक्कर और धीमी प्रक्रिया की वजह से IBC का फायदा नजर नहीं आया. इसके तहत 2500 मामले तय हुए. 3-4 साल की मेहनत और सिर्फ 37% रिकवरी हुई है.
एक छोटा लेकिन गंभीर फैक्ट जान लें कि देश के 2 बड़े सरकारी बैंक के चीफ एग्जीक्यूटिव का पद पिछले 1 महीने से खाली पड़ा है. ऐसा लग रहा है जैसे सरकार इसे लेकर कोई गंभीरता नहीं दिखा रही.
टेलीकॉम, रियल इस्टेट, रिन्यूएबल पावर, रोड सेक्टर पर बैंकों के लिए नया NPA बनने का खतरा मंडरा रहा है. ऐसे में ये आंकड़े और बैंकिंग क्राइसिस की वजह से अर्थव्यवस्था में बदलाव और भी मुश्किल है!
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