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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इब्राहिम
"सब जगह केंद्र सरकार का बरियारी चल रहा है.. नीतीश जी मांग रहे हैं भैंटिलेटरवा तो देते ही नहीं हैं. एक महीना गुजर गया.. कोरोना के वजह से अब हदस गया है बिहार.." वेट... 'बरियारी' मतलब पावर, ताकत. strength. 'हदस' गए हैं मतलब petrified, डर गए. अब आप सोच रहे होंगे ये सब क्या है.. तो दरअसल, बता दें कि कोरोना को देखते हुए बिहार सरकार ने केंद्र सरकार से 100 वेंटिलेटर की मांग की थी, लेकिन सवा महीने बीत जाने के बाद भी 100 तो दूर एक भी वेंटिलेटर मिला नहीं. नीतीश कुमार एक नहीं कई बार तकाजा कर चुके हैं. बिहार में बीजेपी और जेडीयू की सरकार है मतलब याराना है, दोस्ती है, फिर भी उनकी बात अनसुनी रह गई.
लॉकडाउन और कोरोना से निपटने को लेकर पीएम मोदी ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्री के साथ 11 मई को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मीटिंग की. जिसमें बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने लॉकडाउन बढ़ाने की मांग के साथ-साथ एक बार फिर पीएम मोदी से सौ वेंटिलेटर देने की अपनी पुरानी मांग को दोहराया.
नीतीश कुमार ने यही मांग 2 अप्रैल भी पीएम के साथ मीटिंग में उठाई थी. फिर उनकी बातें क्यों नहीं सुनी गई?
चलिए अब आपको बिहार के दोस्ताना गठबंधन में हेल्थ सेक्टर से बैर की कहानी भी बताते हैं.. बिहार में 12 मई तक 800 से ज्यादा कोरोना के केस आ चुके हैं. एक मई को जहां 425 केस थे वहीं ये 11 दिनों में बढ़कर करीब डबल हो गए. बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने खुद माना है कि 4 मई से 11 मई तक बिहार में एक लाख लोग आए हैं. उनमें से 1900 लोगों की रैंडम टेस्टिंग कराई गई है. जिसमें 148 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं. एक लाख लोगों में सिर्फ 1900 लोगों की टेस्टिंग?
हैरान करने वाली बात है. बता दें कि बिहार के हेल्थ मिनिस्टर बीजेपी कोटा से आते हैं, मंगल पांडे. मंत्री जी ने दावा किया कि बिहार में डोर टू डोर स्क्रीनिंग कार्य में अभी तक 61, 23, 344 परिवारों के लगभग 10 करोड़ 11 लाख लोगों की स्क्रीनिंग पूरी हो चुकी है. मतलब करीब-करीब पूरा बिहार. लेकिन इस दावे के बाद भी कोरोना के केस बढ़ते जा रहे हैं.
चलिए बिहार के हेल्थ सिस्टम का प्रिसक्रिपशन दिखाते हैं आपको.
सरकारी आंकड़ों की मानें तो बिहार में हर एक सरकारी अस्पताल पर करीब 92582 लोग निर्भर हैं जबकि इसका राष्ट्रीय औसत 50355 व्यक्ति है. WHO के मुताबिक 1000 लोगों की आबादी पर कम से कम एक डॉक्टर होना चाहिए लेकिन बिहार में करीब 43000 लोगों पर एक डॉक्टर है. अस्पतालों के बेड की बात की जाए तो प्रति बेड 9100 लोग हैं.
सवाल ये है कि जब लोकसभा चुनाव में 50-50 स्टाइल में टिकट शेयर करने का प्रेशर बना सकते हैं, मंत्री पद बांटने में कोई ना नुकूर नहीं तो लोगों की जिंदगी के लिए टेस्टिंग किट और वेंटिलेटर पर बेचैनी क्यों नहीं? कोरोना ना गठबंधन प्रेम देखता है ना सुशासन पॉलिटिक्स.
चुनावी भाषणों में बिहार के नाम पर बोली लगती है तो बीमारी से लड़ने के लिए वेंटिलेटर, टेस्टिंग किट जैसी इलाज में मदद करने वाली गोली क्यों नहीं? इस लापरवाही की वजह से कहीं ऐसा ना हो कि आने वाले चुनाव में बिहार की जनता बिहारी स्टाइल में 'हमुच' दे.. और 'हौंक' भी..जब नेता वोट मांगने जाएं तो बिहार का वोटर पूछे-जनाब ऐसे कैसे?
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