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लोकसभा से दंड प्रक्रिया (पहचान) विधेयक (Criminal Procedure Bill) 2022 को मंजूरी मिल गई है. सदन में इस बिल पर बहस के बीच कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि बंदी पहचान से जुड़ा बिल असंवैधानिक और क्रूर है. इस पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि बिल किसी दुरुपयोग के लिए नहीं लाया गया है और ना ही इससे किसी भी डेटा के दुरुपयोग की संभावना है.
मनीष तिवारी ने कहा कि साल 1920 में ब्रिटिश सरकार आजादी के योद्धाओं को धमकाने, डराने और उन्हें प्रताड़ित करने के लिए लेकर आई थी. ब्रिटिश सरकार की मंशा थी कि लोगों में एक डर पैदा किया जाए कि अगर आपके फिंगर प्रिंट्स ले लिए जाएंगे, आपकी तस्वीर खींच ली जाएंगी, वो तस्वीर थानों में लगाई जाएंगी, आपके फिंगर प्रिंट सर्कुलेट किए जाएंगे तो आपको ना कोई नौकरी मिल पाएगी और ना ही आप कोई व्यवसाय कर पाएंगे. इन सब हथकंडों के पीछे साम्राज्यवादी सरकार की मंशा आजादी के आंदोलन को कमजोर करने की थी.
तिवारी ने कहा कि आज 102 साल बाद जब उस कानून को रद्द करके सरकार एक नया कानून लेकर आई है तो ये उम्मीद की जा रही थी कि वो कानून उदारवादी होगा. पिछली एक शताब्दी में जो मानवीय अधिकारों में तरक्की हुई है उसको संज्ञान में लेगा. पूरी दुनिया में एक न्याय संगत कानून है कि अगर कोई अपराधी भी है तो उसे मानवीय तरीके से सलूक किया जाए. इस कानून से ये उम्मीद थी कि इन सब बातों का भी इस कानून में ध्यान रखा जाएगा. दुर्भाग्यपूर्ण बात ये है कि जो ये विधेयक है वो किसी भी मापदंड के ऊपर खरा नहीं उतरता है.
कांग्रेस नेता ने कहा कि भारत के संविधान में तीन धाराएं हैं धारा-14, धारा-19 और धारा-21. इन धाराओं को संविधान का गोल्डन ट्रायंगल माना गया है कि जो मौलिक अधिकार हैं, जो भारत के संविधान ने भारत के नागरिकों के लिए दिए हैं. यही नहीं हमारे संविधान ने भारत के नागरिकों के अलावा और भी लोगों को दिए हैं. लेकिन, ये जो विधेयक है इन तीनों धाराओं का अवमानना करता है.
मनीष तिवारी ने कहा कि साल 1973 में सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश दिया था. उस आदेश का नाम है केशवानंद भारती बनाम भारत सरकार. उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर इस सदन में किसी एक राजनीतिक दल को 543 में 543 सीट भी मिल जाए, राज्यसभा में 238 में से 238 सीट भी मिल जाए. जो विधानसभाएं हैं उनमें दो तिहाई बहुमत भी मिल जाए, बावजूद संविधान के कुछ ऐसे अंश हैं जिसको ये सदन नहीं बदल सकता. जिनको सुप्रीम कोर्ट ने मूल अधिकार करार दिया था. लेकिन, ये विधेयक उन मौलिक अधिकारों की अवमानना करता है.
मनीष तिवारी ने कहा कि दंड प्रक्रिया (पहचान) विधेयक 2022 का क्लाज 2(B) जो मेजरमेंट को परिभाषित करता है. इसमें आरोपी व्यक्ति को उंगलियों के निशान, हथेली का निशान, पैरों के मेजरमेंट निशान, आईरिस और रेटीना स्कैन, हस्ताक्षर, लिखावट आदि व्यवहारिक सबूत देने होंगे. उन्होंने कहा कि ये जो परिभाषा है यह बहुत ही व्यापक है.
तिवारी ने कहा कि इस बिल का जो 5वां क्लाज है वो सीधे-सीधे मजिस्ट्रेट को अधिकार देता है कि वो ये निर्देश दे सकता है कि सरकार किसी भी व्यक्ति को उसके इच्छा के विरुद्ध ये सारे सैंपल ले सकती है. जो सीधा-सीधा अनुच्छे 20 का उल्लंघन है. ऐसे में इस विधेयक के जरिए आप उस आरोपी के संवैधानिक हक को छीन रहे हैं. कांग्रेस नेता तिवारी ने कहा कि ऐसा लगता है कि सरकार एक सर्विलांस स्टेट की नींव रख रही है.
अमित शाह ने कहा कि वह सदन के समक्ष दण्ड प्रक्रिया (पहचान) विधेयक 2022 लेकर आए हैं जो 1920 के बंदी शनाख्त कानून को रिप्लेस करेगा. 1920 से स्थापित बंदी शनाख्त कानून समय की दृष्टि से, विज्ञान की दृष्टि से, दोष सिद्ध करने के लिए अदालतों को जिस रह के नतीजे चाहिए वे उपलब्ध कराने में और लॉ इनफोर्समेंट एजेंसियों की ताकत बढ़ाने में आज एक समय से कालबाई हो गया है.
लोकसभा में अमित शाह ने कहा कि पुरानी तकनीक से हम नेक्स्ट जेनेरेशन क्राइम को हैंडल नहीं कर सकते. हमें नेक्स्ट जेनेरेशन क्राइम को अभी से रोकने का प्रयास करना होगा. हमने बहुत सारे इनीशिएटिव लिए हैं, इसे होलिस्टिक व्यू से देखने की जरूरत है.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि यह बिल देश में दोष सिद्धि के प्रमाण को बढ़ाकर गुनाहों को सीमित करने के एकमात्र उद्देश्य से लाया गया है. यह बिल FIR और आरोपों को दोष सिद्धि के माध्यम से जिन्होंने गुनाह किया है उसे सजा दिलाकर समाज में एक कठोर संदेश देने के लिए लाया गया है. उन्होंने कहा इसके पीछे कोई और उद्देश्य नहीं है.
शाह ने कहा कि कैदी की सहमति के बगैर नार्को एनालिसिस और ब्रेन मैपिंग नहीं होगा और ना ही हमारी कोई ऐसी मंशा है. धरना प्रदर्शन करने पर अगर कोई गिरफ्तार होता है तो कोई सैंपल नहीं देना होगा.
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