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वीडियो | प्रदूषण के खतरे से क्यों दूर नहीं हो पा रही दिल्ली? 

World Environment Day: क्यों है दिल्ली सबसे प्रदूषित शहर

मैत्रेयी रमेश
फीचर
Updated:
5 जून को मनाया जाता है विश्व पर्यावरण दिवस
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5 जून को मनाया जाता है विश्व पर्यावरण दिवस
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: प्रशांत चौहान

कैमरापर्सन: अभिषेक रंजन

5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है. लेकिन मैं दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर में रहती हूं. काश, मैं आपको अपना शहर दिखा सकती, लेकिन तभी जब यहां का स्मॉग साफ होता. ..हां, मैं बात कर रही हूं दिल्ली की.

एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) की रीडिंग 100 या उससे नीचे होना सामान्य माना जाता है लेकिन दिल्ली में, नाॅर्मल दिनों में ये 300 तक भी पहुंच चुका है. ये खतरनाक है.

और बुरे दिनों में, यानी जब सर्दियां होती हैं या जब किसान फसल की पराली जलाते हैं, तो ये नंबर बढ़ जाते हैं. करीब 700-800-900-1000 तक.

मैं स्मोकिंग नहीं करती, लेकिन मुझे लगता है कि मैं भी शुरु तो कर ही सकती हूं, क्योंकि इस प्रदूषित हवा में सांस लेना 50 सिगरेट पीने के बराबर है!
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ये पाॅल्यूशन हर दिन दिल्ली में 33 लोगों की जान ले रहा है. ये नंबर आपको झटका नहीं देती? ये भी जान लीजिए कि एयर पाॅल्यूशन से एक साल में 12,000 लोग मरते हैं- जो हर साल रोड एक्सीडेंट से होने वाली मौतों की संख्या का 6 गुना है!

70, 80 के दशक या साल 2000 तक भी, दिल्ली के लिए चीजें इतनी खराब नहीं थी. ये घुटन पिछले 10 सालों में शुरू हुई.

इसकी सबसे बड़ी वजह है सितंबर से नवंबर के बीच फसलों की पराली जलाना. इन महीनों में एयर क्वालिटी में गिरावट आनी शुरू होती है.

दूसरी गिरावट दिसंबर-जनवरी में देखने को मिलती है, जब ठंडी हवा पाॅल्यूटेंट्स यानी प्रदूषण फैलाने वाले तत्वों को फैलने से रोकती है. इसे सीधे शब्दों में कहें, तो गर्म धुआं ठंडी हवा में फंस जाता है, ढक्कन की तरह काम करता है और धुंध को बढ़ने और हवा के साथ बहने से रोकता है.

तीसरी गिरावट गर्मियों के महीनों के दौरान होती है- यानी अप्रैल से जून.

2018 में, दिल्ली में 10 दिनों से भी कम समय तक के लिए साफ सांस लेने लायक हवा थी. जी हां, 10 से कम!

समझने के लिए, हमें शहर से थोड़ा हटकर इसे देखना होगा. पंजाब या हरियाणा में किसान खेतों में कटाई के बाद आग लगाते हैं- क्योंकि ये एक सस्ता तरीका है, जिससे कचरे से आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है.

बस यहीं से हवा के साथ ऊपर धुआं मिलने लगता है. दिल्ली, या पूरा उत्तरी मैदानी इलाका एक बेसिन की तरह है, जो जलाए गए पराली के धुएं से भर जाता है. चूंकि पाॅल्यूटेंट से हवा गंदी और मोटी हो जाती है, इसलिए ये शहर से बाहर नहीं निकल पाती. लेकिन सारा दोष ज्योग्राफी और किसानों पर ही क्यों मढ़ा जाए? दिल्ली वालों को भी दोषी मानना पड़ेगा.

  • तेजी से गाड़ियों की संख्या बढ़ रही है
  • ओपन कंस्ट्रक्शन
  • जनसंख्या
  • पेड़ों की कटाई

तो उपाय क्या है?

स्पाइडरमैन लोगो वाली फैंसी मास्क खरीदना? हाउस प्लांट्स? एयर प्यूरीफायर? या हमारा घरों से बाहर न निकलना?

नहीं! ये बस खानापूर्ति वाले उपाय हैं. हमें असल में जो सवाल पूछने चाहिए, वे हैं:

  • बुरी तरह प्रदूषण से घिरी नई पीढ़ी के बच्चों को इससे बचाने के लिए हमारे पास आखिर क्या रास्ता है?
  • जुर्माना वसूलने के अलावा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को असल में क्या करने की जरूरत है?
  • सरकार एयर पाॅल्यूशन को नेशनल इमरजेंसी मानकर कोई उपाय क्यों नहीं कर रही है?
  • पाॅल्यूशन कंट्रोल लॅा का मकसद क्या है, जब वो लागू ही नहीं होते?
  • सरकार पेड़ों की कटाई कब बंद करेगी?

नागरिक और सरकार इसपर गंभीर कब होंगे, कब तक दिल्लीवासियों को इस गैस चेंबर में रहना होगा?

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Published: 04 Jun 2019,05:29 PM IST

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