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वीडियो एडिटर: दीप्ति रामदास
कैमरा: मुकुल भंडारी
आपको जिस इंक्रीमेंट की उम्मीद थी वो मिली नहीं. ऊपर से कंपनी के HR से लेकर बॉस तक ने हिंट दे दिया है कि इंक्रीमेंट छोड़िए इसकी खैर मनाइए कि नौकरी बची हुई है. और सच्चाई भी यही है कि नौकरियां जा रही हैं. बेरोजगारी रिकॉर्ड स्तर पर है. नई नौकरियां भी कम ही मिल रही हैं. ये सब मंदी के मौसम के साइनबोर्ड्स हैं. सरकार से तो कुछ करने की उम्मीद ही कर सकते हैं लेकिन खुद कुछ न किया तो आपकी फाइनेंशियल सेहत बिगड़ सकती है. तो क्या करें कि इस 'आर्थिक इमरजेंसी' में आपकी घर का बजट न बिगड़े.
क्विंट हिंदी की स्पेशल सीरीज ‘पैसा है तो संभव है’ के सातवें एपिसोड में जानिए कि पांच उपाय जो आपको ‘आर्थिक इमरजेंसी’ यानी मंदी से बचाएंगे.
इनमें Little बही खाता बुक, बचत की चुस्की, इमरजेंसी फंड, फाइनेंशियल Weight-Loss और Latte Factor शामिल हैं, जो आपका पैसा बचाएंगे भी और बढ़ाएंगे भी.
सबसे पहले खरीदिए एक डायरी और इसमें लिखिए कि आज सुबह से आपने क्या-क्या खर्चा किया है. हर रोज लिखिए, एक महीने तक लिखिए और देखिए कि आप कहां-कहां खर्च कर रहें हैं? कितनी सैलरी आ रही है और कितना पैसा निकल रहा है?
अगर ये ओल्ड स्कूल लगता है तो डे टू डे खर्चों को ट्रैक करने के लिए प्लेस्टोर से कोई ऐप डाउनलोड करें जो आपके पैसे को मैनेज करने में मदद कर सकता है.
चाय हो या कॉफी उसे एक बार में तो गटक कर नहीं पीते उसका मजा लेने के लिए एक एक घूंट लेना पड़ता है. खर्चों को ट्रैक करने के बाद जो बचत आप करेंगे इसका मजा भी छोटे-छोटे SIP में लीजिए. SIP मतलब Systematic Investment Plan. इसके डिसिप्लीन के जरिये इक्विटी म्युचुअल फंड में मासिक निवेश करने की शुरुआत कीजिए. ये रकम छोटी सी भी हो सकती है लेकिन एक सिस्टमैटिक निवेश की शुरुआत जरूरी है. इक्विटी म्युचुअल फंड आपका पैसा स्टॉक मार्केट के इंडिविज्युअल शेयर्स में नहीं बल्कि चुनिंदा शेयर्स के एकजुट फंड्स में डालता है.
बाजार के रोज के उतार-चढ़ाव से आप बचेंगे क्योंकि इस निवेश का फायदा आपको लंबे समय तक रखने पर ही होता है. एसेट मैनेजमेंट कंपनियों के एक्सपर्ट्स- जिन्हें फंड मैनेजर्स कहा जाता है वो कंपनियों के शेयर्स को ट्रैक करके फंड्स तैयार करते हैं.
500 रुपये की छोटी सी किस्त से शुरुआत की जा सकती है और अगर पिछले सालों के रिटर्न का एवरेज निकालें तो करीब 12 से 15% का रिटर्न देने में म्युचुअल फंड्स कामयाब रहे हैं. बाजार का सेंटिमेंट खराब होने पर म्युचुअल फंड्स ने निगेटिव रिटर्न भी दिया है लेकिन अगर लॉन्ग टर्म के लिए होल्ड करेंगे तो निगटिव रिटर्न की चुभन कम होगी, क्योंकि कमपाउंड इंट्रेस्ट का फायदा भी मिलता है. इसलिए इनमें निवेश का टाइम हॉराइजन कम से कम 3 से 5 साल होना ही चाहिए.
अगर आप हर महीने केवल 500 रुपये ही एक SIP में डालें और 12% की रिटर्न के आधार पर आपके 5 साल में लगाए गए 30,000 रुपये बन जाएंगे. इंट्रेस्ट के फायदे के साथ 41,243 रुपये यानी कमाई 11,243 रुपये की. यहां मूल निवेश केवल 500 रुपये पर कैलकुलेट किया गया है, अगर आप 500 से ज्यादा लगाएंगे तो ज्यादा फायदा भी कमाएंगे. तो अपनी बचत को बस अकाउंट में सोये न रहने दें बल्कि इसे काम पर लागइए ताकि आप ले सकें बचत की जोरदार चुस्की.
बेहद जरूरी है कि आप अपनी कमाई, खर्चे और सेविंग के बीच इमरजेंसी फंड जरूर रखें.
कितना होना चाहिए इमरजेंसी फंड?
आप अपने रोज के खर्चों को कैलकुलेट करें और एक फीगर सामने रखे जिससे आपका गुजारा चलता है और बफर फंड का आधार यही होगा. 6 महीने के गुजारे का खर्च आपके पास रहना चाहिए जिसमें आपका अगर कोई लोन है तो उसकी किस्त को भी शामिल करें.
मान लीजिए कि आप 25,000 रुपये महीने में खर्च करते हैं तो इस बफर फंड में आपके पास 1,30,000 होने ही चाहिए. इमरजेंसी फंड के पैसों का एक हिस्सा आप सेविंग अकाउंट में रखें ताकि इसे तुरंत निकाल सकें क्योंकि इमरजेंसी फंड में लिक्विडिटी रहनी चाहिए. लेकिन इसके अलावा 2 जगह इस फंड को पार्क कर सकते हैं. इसे फिक्स्ड डिपॉजिट बना सकते हैं. आप स्वीप-इन अकाउंट की सुविधा लें. इसका मतलब है कि FD का इंट्रेस्ट मिलता रहेगा पर जब जरूरत होगी तो आप इसे आसानी से निकाल पाएं.
दूसरा ऑप्शन जहां आपको FD के 4-6% से ज्यादा इंट्रेस्ट मिलेगा. लिक्विड फंड. ये एक तरह का डेट फंड हैं जिन्हें अल्ट्रा शॉर्ट म्युचुअल फंड भी कहा जाता है. इनकी मैच्योरिटी छोटी होती है. ये 3 महीने की मैच्योरिटी रखते हैं और इनपर इंट्रेस्ट 7-8% तक मिलता है. इनसे आप पैसे जल्दी रीडीम कर सकते हैं क्योंकि इनमें कोई लॉक इन पीरियड नहीं होता और 3 महीने की मैच्यरिटी के बाद आप इसे फिर रिइन्वेस्ट करके कमपाउंड इंट्रेस्ट पा सकते हैं.
फाइनेंशियल वेट लॉस क्योंकि मंदी के मैराथन में जितने हल्के रहेंगे उतना भाग पाएंगे और एक्स्ट्रा वजन आपको धीमा कर देगा. EMI पर लेटेस्ट स्मार्टफोन, लोन पर फ्रिज और जाने-माने ब्रांड्स की शॉपिंग का लंबा-चौड़ा क्रेडिट कार्ड का बिल जिसे आपने EMI में कंवर्ट कर लिया, इस एक्स्ट्रा वजन को ढोना भारी पड़ेगा. जिंदगी को डेट फ्री बनाइए. इस तरह की उधारी से बचिए. आइडियल तो यही होगा कि जो पैसे आपके पास नहीं हैं उतना खर्च ही न करें और अगर इसमें फंस गए हैं तो लाइफस्टाइल में कटौती भी करनी पड़े तो कीजिए और इनसे जल्द से जल्द छुटकारा पाइए.
उन्हें पे-अप कीजिए.
हर रोज ऑफिस में आप जब लंच के 2 घंटे बाद एक क्विक टी ब्रेक लेते हैं तो साथ में कभी चिप्स, कभी भेलपुरी, कभी झालमूड़ी खा लिया- 20 रुपये का खर्चा. तो महीने में करीब 25 दिन का खर्चा बनेगा 500 रुपये और साल में 6000 आप इस ब्रेक पर खर्च कर रहें हैं. इसे अगर बचाएंगे, निवेश करेंगे जिसपर पावर ऑफ कमपाउंडिंग का फायदा भी मिलेगा तो आपका पैसा भी तरक्की करेगा और आपका बैंक बैलेंस भी बढे़गा.
यही है ‘Latte factor’ और इस कैलकुलेशन को ‘The Latte factor’ नाम की बुक में फाइनेंशियल राइटर डेविड बाक ने समझाया है कि रोज के छोटे-मोटे खर्चे जो बेहद मामूली ही क्यों न हो उसे अगर सालाना खर्च के तौर पर कैलकुलेट करें और बचाएं तो ये आपके लिए वेल्थ क्रिएट करने की क्षमता रखता है.
अगर आप महीने में 4 बार बाहर खाना खाते हैं जिसका बिल 2500 के आसपास आता है तो साल में इसका टोटल खर्चा आएगा 1,20,000. अब इसे आप कट डाउन कीजिए और महीने में केवल 2 बार खाइए तो साल में 60,000 की बचत. अब इस पैसे को आप 5 साल के लिए निवेश करते हैं. मान लेते हैं 10% का इंट्रेस्ट मिल रहा है तो कमपाउंड इंट्रेस्ट के साथ आपके 60,000 बन जाएंगे 96,631 यानी 36,631 का फायदा.
तो ऐसे ही अपने खर्चों पर ‘Latte factor’ का फॉर्मूला अप्लाई कीजिए और जहां कट डाउन कर सकते हैं, कट डाउन करके पैसों को काम पर लगाइए.
तो जुट जाएं फाइनेंशियल प्लानिंग में!
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