Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019हाय हिंदी प्रेम का खेल, UPSC से UP बोर्ड तक हिंदी वाले हो रहे फेल

हाय हिंदी प्रेम का खेल, UPSC से UP बोर्ड तक हिंदी वाले हो रहे फेल

क्या इस देश को एक भाषा की जरूरत है?

शादाब मोइज़ी
वीडियो
Published:
(फोटो: क्विंट हिंदी)
i
null
(फोटो: क्विंट हिंदी)

advertisement

वीडियो एडिटर: अभिषेक शर्मा

"हिंदी हमारी मातृभाषा है, हिन्दी विश्व में बोली जाने वाली प्रमुख भाषाओं में से एक है. विश्व की प्राचीन, समृद्ध और सरल भाषा है." बचपन में हिंदी पर निबंध सुनाने को कहा जाता, तो हम बुलेट ट्रेन की स्पीड से ये सुनाकर आगे बढ़ जाते. लेकिन जब बड़े हुए, तो पता चला कि हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा नहीं है. जी हां, सच ये है कि हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं, राजभाषा है.

अब एक बार फिर हिंदी पर बहस चल रही है, हिंदी वाले हिंदी सर्वोपरि, शक्तिमान, संस्कृति का गौरव, हिंदी-हिंदू-हिंदुस्तान का नारा लगाने लगे. हाल ऐसा कि जैसे अब बस हिंदी बोलेंगे और देश में बेरोजगारी खत्म हो जाएगी. हिंदी का विरोध करने वाले भी टेंशन में, मानो बस हिंदी ही बचेगी और सारी भाषाएं लुप्त हो जाएंगी. लुप्त मतलब गायब.

देश के गृह मंत्री अमित शाह ने भी हिंदी की तारीफ करते हुए कह दिया, "देश की एक भाषा होना अत्यंत आवश्यक है, जो विश्व में भारत की पहचान बने. देश को एकता की डोर में बांधने का काम अगर कोई एक भाषा कर सकती है, तो वो हिंदी है." गृह मंत्री के इस हिंदी प्रेम या कहें तर्क पर सवाल उठने लगे कि क्या अगर हिंदी नहीं बोलेंगे, तो एकता की डोर टूट जाएगी? क्या दुनिया में देश की पहचान नहीं बनेगी? अब अगर हिंदी ही हिंदुस्तान होगा, तो देश के बाकी भाषाओं को बोलने वाले तो पूछेंगे ही जनाब ऐसे कैसे?

2011 की जनगणना के मुताबिक-

  • भारत में लगभग 121 भाषाएं हैं
  • जिनमें से 22 भाषाएं संविधान के Eighth Schedule में मौजूद हैं
  • भारत में करीब 68 लिपियां हैं.
  • देश में 35 से ज्यादा भाषाओं में अखबार छपते हैं
  • 43 फीसदी लोगों की मातृभाषा हिंदी है
  • 57 फीसदी लोग बांग्‍ला, मराठी, तमिल, तेलुगू, गुजराती उर्दू जैसी अलग-अलग भाषाएं बोलते हैं.

मतलब ये कि भारत में हिंदी सबसे ज्यादा लोग बोलते हैं, लेकिन हर राज्य के लोगों की पहली भाषा हिंदी नहीं है. अब जब एक देश, एक भाषा की बात हो रही है, तो इस भाषा के हाल से भी वाकिफ होना चाहिए..

हिंदी वालों का हाल-बेहाल

देश के सबसे बड़े हिंदीभाषी प्रदेश में ही हिंदी का बुरा हाल है. उत्तर प्रदेश बोर्ड में साल 2019 में करीब 10 लाख छात्र अपनी मातृभाषा हिंदी में अनुत्तीर्ण हो गए. मतलब फेल हो गए...

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

UPSC में हिंदी वाले भटकते रह गए

बात अब UPSC वाली हिंदी की भी कर लेते हैं. सिविल सर्विसेज एग्जाम में हिंदी मीडियम वालों की 'बदहाली' की कहानी नई नहीं है. इस साल मेरिट लिस्‍ट में हिंदी मीडियम से सबसे ज्‍यादा स्‍कोर करने वाले ने 337वीं रैंक पाई है, जो अब तक का सबसे खराब रिजल्‍ट है.

मसूरी के लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी LBSNAA की वेबसाइट के मुताबिक,

2013 में हिंदी मीडियम में सिविल की परीक्षा पास करने वाले स्टूडेंट्स 17%  थे. ये आंकड़ा 2014 में 2.11% रहा. 2015 में 4.28% था, वहीं 2016 में 3.45% और 2017 में 4.06 %. वहीं 2018 में हिंदी मीडियम में सिलेक्ट होने वाले उम्मीदवारों का परसेंट घटकर 2.16 रह गया.

हाय ये कैसा हिंदी प्रेम है, जिसमें दुनिया में इससे पहचान बनानी है, लेकिन अपने ही देश में इसकी दुर्दशा ऐसी है कि इसके पढ़ने वालों की दिशा और दशा दोनों खराब नजर आ रही है.

इसके बाद हिंदी से असल में प्यार कम राजनीति की बू या कहें दुर्गन्ध आती है. चलिए अब हिंदी की राजनीति को भी समझते हैं..

क्यों बीजेपी हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान के नारों पर आगे बढ़ना चाहती है?

बीजेपी की तरफ से यूं ही नहीं हिंदी पर प्यार आया है. हिंदी सत्ता दिलाती है. देश में 10 राज्य हिंदी बेल्ट कहलाते हैं. जहां हिंदी अग्रिम पंक्ति में मतलब पहले लाइन में लगी मिल जाती है..

बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, हरियाणा, दिल्ली. इसके अलावा हिमाचल, उत्तराखंड, गुजरात को भी हिंदी से बैर नहीं है. मतलब करीब 50 फीसदी वोटर.. इन राज्यों में 229 लोकसभा सीटे हैं, जहां बीजेपी की पकड़ मजबूत है. साथ ही इनमें से 4 राज्य झारखंड, हरियाणा, दिल्ली और बिहार में 2019 और 2020 में चुनाव होने हैं.

तो कुल मिलाकर बीजेपी को हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान का नैरेटिव अभी सेट करने में फायदा है. यहां वोटरों को भावनात्मक मुद्दों पर एकसाथ लाने का फॉर्मूला हिट नजर आता है.

क्या इस देश को एक भाषा की जरूरत है?

अब सवाल है कि एक क्या इस देश को एक भाषा की जरूरत है या अनेक भाषा की? क्या सच में हिंदी दुनिया में भारत को पहचान दिला सकती है? सच तो ये है कि ये बहस इस देश के लिए खतरनाक है, क्योंकि बहस को भटकाकर हमने हिंदी को बांग्‍ला या तमिल के खिलाफ खड़ा कर दिया है.

जिस देश में हर 100 किलोमीटर पर रहन-सहन, खान-पान, भाषा बदल जाती हो, वहां हिंदी भी खुद को किसी पर थोपे जाने के खिलाफ ही खड़ी होगी.

यूएन हो या दुनिया का कोई भी मंच विवेकानंद से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी में भाषण दे चुके हैं. और जिन्हें उनकी भाषा समझनी और सुननी थी, उन्होंने अनुवाद मतलब ट्रांसलेशन का इस्तेमाल कर लिया.

कड़वा सच ये है कि भाषा नेता नहीं बनाते. वो तो आम आदमी बनाता है और जिस देश में कोस-कोस पे नई भाषा, नए अल्फाज नुमाया होते हों, वहां हम सोच भी कैसे सकते हैं कि किसी एक भाषा का वर्चस्व हो जाए.

कौन सी हिंदी चाहिए?

ऐसे भी आप कौन-सी हिंदी का इस्तेमाल करेंगे? सरकारी या हिंगलिश? चुनाव आयोग की वेबसाइट हो या मेट्रो में जरूरी सूचना. अभिप्रेत, पठित धारा, उपधारा, प्रवृत, शासकीय प्रयोजन जैसे कठिन, दुर्लभ शब्द. हां, वही मुश्किल वर्ड्स.

हिंदी को आसान कीजिए, हर भाषाओं में पंख लगने दीजिए, एक डाल से दूसरे डाल पर बैठने दीजिए, कोयल से मैना और कौवे से बगुला बनने की जिद छोड़ दीजिए. हिंदी-हिंदू-हिंदुस्तान नहीं, सिर्फ हिंदुस्तान रहने दीजिए... नहीं तो दुनिया पूछेगी- जनाब ऐसे कैसे?

हिंदी पर हंगामे के बाद शाह ने दी थी सफाई

हिंदी पर अपने बयान से उठे विवाद को शांत करने का प्रयास करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री शाह ने बीते बुधवार को रांची में एक कार्यक्रम में कहा कि उन्होंने देश में कहीं भी हिंदी थोपने की बात नहीं की. शाह ने कहा कि उन्होंने सिर्फ हिंदी को दूसरी भाषा के तौर पर इस्तेमाल की वकालत की.

शाह ने कहा कि वह लगातार क्षेत्रीय भाषाओं को मजबूत करने की वकालत कर रहे हैं.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT