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वीडियो एडिटर: अभिषेक शर्मा
"हिंदी हमारी मातृभाषा है, हिन्दी विश्व में बोली जाने वाली प्रमुख भाषाओं में से एक है. विश्व की प्राचीन, समृद्ध और सरल भाषा है." बचपन में हिंदी पर निबंध सुनाने को कहा जाता, तो हम बुलेट ट्रेन की स्पीड से ये सुनाकर आगे बढ़ जाते. लेकिन जब बड़े हुए, तो पता चला कि हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा नहीं है. जी हां, सच ये है कि हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं, राजभाषा है.
अब एक बार फिर हिंदी पर बहस चल रही है, हिंदी वाले हिंदी सर्वोपरि, शक्तिमान, संस्कृति का गौरव, हिंदी-हिंदू-हिंदुस्तान का नारा लगाने लगे. हाल ऐसा कि जैसे अब बस हिंदी बोलेंगे और देश में बेरोजगारी खत्म हो जाएगी. हिंदी का विरोध करने वाले भी टेंशन में, मानो बस हिंदी ही बचेगी और सारी भाषाएं लुप्त हो जाएंगी. लुप्त मतलब गायब.
देश के गृह मंत्री अमित शाह ने भी हिंदी की तारीफ करते हुए कह दिया, "देश की एक भाषा होना अत्यंत आवश्यक है, जो विश्व में भारत की पहचान बने. देश को एकता की डोर में बांधने का काम अगर कोई एक भाषा कर सकती है, तो वो हिंदी है." गृह मंत्री के इस हिंदी प्रेम या कहें तर्क पर सवाल उठने लगे कि क्या अगर हिंदी नहीं बोलेंगे, तो एकता की डोर टूट जाएगी? क्या दुनिया में देश की पहचान नहीं बनेगी? अब अगर हिंदी ही हिंदुस्तान होगा, तो देश के बाकी भाषाओं को बोलने वाले तो पूछेंगे ही जनाब ऐसे कैसे?
2011 की जनगणना के मुताबिक-
मतलब ये कि भारत में हिंदी सबसे ज्यादा लोग बोलते हैं, लेकिन हर राज्य के लोगों की पहली भाषा हिंदी नहीं है. अब जब एक देश, एक भाषा की बात हो रही है, तो इस भाषा के हाल से भी वाकिफ होना चाहिए..
देश के सबसे बड़े हिंदीभाषी प्रदेश में ही हिंदी का बुरा हाल है. उत्तर प्रदेश बोर्ड में साल 2019 में करीब 10 लाख छात्र अपनी मातृभाषा हिंदी में अनुत्तीर्ण हो गए. मतलब फेल हो गए...
बात अब UPSC वाली हिंदी की भी कर लेते हैं. सिविल सर्विसेज एग्जाम में हिंदी मीडियम वालों की 'बदहाली' की कहानी नई नहीं है. इस साल मेरिट लिस्ट में हिंदी मीडियम से सबसे ज्यादा स्कोर करने वाले ने 337वीं रैंक पाई है, जो अब तक का सबसे खराब रिजल्ट है.
मसूरी के लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी LBSNAA की वेबसाइट के मुताबिक,
हाय ये कैसा हिंदी प्रेम है, जिसमें दुनिया में इससे पहचान बनानी है, लेकिन अपने ही देश में इसकी दुर्दशा ऐसी है कि इसके पढ़ने वालों की दिशा और दशा दोनों खराब नजर आ रही है.
इसके बाद हिंदी से असल में प्यार कम राजनीति की बू या कहें दुर्गन्ध आती है. चलिए अब हिंदी की राजनीति को भी समझते हैं..
बीजेपी की तरफ से यूं ही नहीं हिंदी पर प्यार आया है. हिंदी सत्ता दिलाती है. देश में 10 राज्य हिंदी बेल्ट कहलाते हैं. जहां हिंदी अग्रिम पंक्ति में मतलब पहले लाइन में लगी मिल जाती है..
तो कुल मिलाकर बीजेपी को हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान का नैरेटिव अभी सेट करने में फायदा है. यहां वोटरों को भावनात्मक मुद्दों पर एकसाथ लाने का फॉर्मूला हिट नजर आता है.
अब सवाल है कि एक क्या इस देश को एक भाषा की जरूरत है या अनेक भाषा की? क्या सच में हिंदी दुनिया में भारत को पहचान दिला सकती है? सच तो ये है कि ये बहस इस देश के लिए खतरनाक है, क्योंकि बहस को भटकाकर हमने हिंदी को बांग्ला या तमिल के खिलाफ खड़ा कर दिया है.
जिस देश में हर 100 किलोमीटर पर रहन-सहन, खान-पान, भाषा बदल जाती हो, वहां हिंदी भी खुद को किसी पर थोपे जाने के खिलाफ ही खड़ी होगी.
कड़वा सच ये है कि भाषा नेता नहीं बनाते. वो तो आम आदमी बनाता है और जिस देश में कोस-कोस पे नई भाषा, नए अल्फाज नुमाया होते हों, वहां हम सोच भी कैसे सकते हैं कि किसी एक भाषा का वर्चस्व हो जाए.
ऐसे भी आप कौन-सी हिंदी का इस्तेमाल करेंगे? सरकारी या हिंगलिश? चुनाव आयोग की वेबसाइट हो या मेट्रो में जरूरी सूचना. अभिप्रेत, पठित धारा, उपधारा, प्रवृत, शासकीय प्रयोजन जैसे कठिन, दुर्लभ शब्द. हां, वही मुश्किल वर्ड्स.
हिंदी को आसान कीजिए, हर भाषाओं में पंख लगने दीजिए, एक डाल से दूसरे डाल पर बैठने दीजिए, कोयल से मैना और कौवे से बगुला बनने की जिद छोड़ दीजिए. हिंदी-हिंदू-हिंदुस्तान नहीं, सिर्फ हिंदुस्तान रहने दीजिए... नहीं तो दुनिया पूछेगी- जनाब ऐसे कैसे?
हिंदी पर अपने बयान से उठे विवाद को शांत करने का प्रयास करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री शाह ने बीते बुधवार को रांची में एक कार्यक्रम में कहा कि उन्होंने देश में कहीं भी हिंदी थोपने की बात नहीं की. शाह ने कहा कि उन्होंने सिर्फ हिंदी को दूसरी भाषा के तौर पर इस्तेमाल की वकालत की.
शाह ने कहा कि वह लगातार क्षेत्रीय भाषाओं को मजबूत करने की वकालत कर रहे हैं.
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