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वीडियो एडिटर: दीप्ति रामदास
अगर आप पैसा बचाना चाहते हैं तो ये बहुत जरूरी है कि आप जानकारी के साथ फैसला लें और आपके जिस फैसले का असर आपके पैसों पर पड़ता है, वहां आप अपने अधिकारों को जानें. अधिकारों का हनन करते हुए कोई आपके जेब पर भारी नुकसान जड़ सकता है. तो ये आपके साथ, ना हो, खासतौर से आप अगर बैचलर हों.
क्विंट हिंदी की इस स्पेशल सीरीज ‘पैसा है तो संभव है’ के तीसरे एपिसोड में समझिए, कैसे हमारे न्यू एज मॉडर्न सोसायटी में ‘बैचलर्स नॉट अलाउड’ वाली दादागिरी चलती है. लेकिन ये कब तक चलेगी और क्यों चलेगी. बैचलर्स के क्या हैं हक?
‘बैचलर्स नॉट अलाउड’ सोसायटी का अन-रिटन रूल है जो बैचलर्स की एक अदद घर की तलाश को बेहद मुश्किल बना देता है. अंग्रेज चले गए लेकिन अपनी कुछ बातें छोड़ गए. ब्रिटिश राज में कई ‘हाय एंड क्लब्स’ में ये तख्ता आम था- ‘Inidians not allowed’. अफसोस 21वीं सदी की कई सोसायटियों में जो हो रहा है, उससे ब्रिटिश राज की याद ताजा हो जाती है.
फिर क्यों किसी बैचलर और बैचलेरेट को इस भेदभाव से गुजरना पड़ता है? क्या ये असंवैधानिक नहीं है?
फिल्म आर्टिकल 15 में आयुष्मान खुराना का डायलॉग याद है- “धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी भी आधार परराज्य अपने किसी भी नागरिक से कोई भेदभाव नहीं करेगा. ये मैं नहीं कह रहा, ये भारत के संविधान में लिखा है.”
सिर्फ किरायेदार ही नहीं बल्कि मकान मालिक पर भी सोसायटी इस तरह के नियम थोप कर दबाव नहीं बना सकती कि आप अपना फ्लैट किसी बैचलर या बैचलेरेट को किराये पर नहीं दे सकते. ऐसा करना सरासर गलत है.
प्रॉपर्टी पर सोसायटी का कोई मालिकाना हक नहीं होता. ये प्रॉपर्टी के मालिक पर निर्भर करता है कि वो अपना घर किसे किराये पर दें. मुंबई की आकृति अनेरी को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी के ऐसे ही दोहरे रवैये पर सिंथिया और सैलवेडोर पिंटो ने एक केस जीता. पिंटो दंपत्ति ने अपने 2 फ्लैट, बैचलर्स को रेंट पर दिया था. ये रेंट इनकी कमाई का एकमात्र जरिया था. सोसायटी ने एकाएक तुगलकी फरमान जारी करते हुए सारे बैचलर्स को सोसायटी से निकालने का आदेश दे दिया. डिस्ट्रिक्ट और स्टेट कंज्यूमर फोरम दोनों ने सोसायटी के इस तरीके को गलत माना. मकान मालिक और किरायेदार के बीच अगर सारी बात साफ है तो इसमें सोसायटी टांग नहीं अड़ा सकती.
पुलिस वेरिफिकेशन के बाद दोनों ही पक्षों में घर और रेंट के टर्म्स एंड कंडिशन में सहमति बन जाती है तो कॉन्ट्रैक्ट तैयार होगा और डील पक्की. इसमें सोसायटी की न कोई भूमिका है न कोई अधिकार. सोसायटी नियमों का हवाला देकर तय नहीं कर सकती कि उस घर में कौन रहेगा, कौन नहीं. अगर मकान मालिक और किरायेदार राजी हैं तो सोसायटी की आनाकानी का कोई सवाल ही नहीं उठता.
‘को-ऑपरेटिव सोसायटीज एक्ट’ के तहत हर सोसायटी को अपने नियम बनाने का अधिकार है.
हर सोसायटी के अपने बाय-लॉ होते हैं लेकिन ये नियम कोई कानून नहीं. ऐसा भी नहीं कि इसे चुनौती नहीं दी जा सकती है. बाय-लॉ का हवाला देकर किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकार को नहीं छीना जा सकता है. सोसायटी के नियम बस रोजमर्रा की जिंदगी को आसान बनाने के लिए होते हैं. मसलन साफ-सफाई, पार्किंग और मेंटेनेंस जैसी सुविधाओं की देख-रेख. न कि ये तय करना कि फ्लैट में रहनेवाले कैसे हों.
अगर किरायेदार, चाहे बैचलर या फैमिली जो भी हो किसी तरह की गैर-कानूनी गतिविधि करते हुए पकड़े जाते हैं तो सोसायटी उन्हें निकालने का स्टैंड ले सकती है.
कोई भी सोसायटी या मकान मालिक बैचलर से ज्यादा मेंटेनेंस फीस नहीं वसूल सकते. कई सोसायटीज में ये चलन भी देखने को मिलता है कि अगर आप सिंगल हैं तो आपको ज्यादा मेंटेनेंस देना होगा.
इस तरह की वसूली के सामने घुटने मत टेकिए.
लेट नाइट पार्टी, शराब और असमय दोस्तों का आना जाना- ये हैं वो सवाल जिसका सामना घर ढूंढने वाले हर सिंगल को करना पड़ता है. इन ग्राउंड्स पर ही बैचलर्स को फ्लैट मिलने में सबसे ज्यादा दिक्कत आती है लेकिन क्या इस आधार पर इन्हें कमपार्टमेन्टलाईज करके उनसे रहने का हक छीन लेना सही है?
क्या आपके आसपास जो फैमिलीज हैं वो कभी लेट नाइट पार्टी नहीं करतीं?
कभी न कभी तो उनके घर भी असमय दोस्त, रिश्तेदार पहुंचते होंगे?
हां, अगर इन हरकतों से सोसायटी की शांति भंग होती है तो सजा उन्हें मिलनी चाहिए न कि पहले ही सारे बैचलर्स को बिना जुर्म के ही गुनहगार मानकर ब्लैकलिस्ट कर दें.
इस भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने के 4 रास्ते हैं.
1) आप पुलिस कंप्लेन कर सकते हैं.
2) आप सोसायटी के खिलाफ केस कर सकते हैं. भारतीय संविधान के आर्टिकल 19(1)(E) के मुताबिक भारत के हर नागरिक को देश के किसी भी इलाके में रहने और बसने का अधिकार है. संविधान में आपका ये अधिकार आपके मैरिटल स्टेटस से नहीं जुड़ा हुआ है.
3) रजिस्ट्रार ऑफ को-ऑपरेटिव में भी आप सोसायटी के इस तरह के भेदभावपूर्ण रवैये की शिकायत कर सकते हैं.
4) हाइकोर्ट में रिट पीटिशन डालकर आपअपने मौलिक अधिकार के हनन की बात रख सकते हैं.
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